पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/८५

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८२ पूंजीवादी उत्पादन . मन के अन्य सभी प्रकारों के साथ समानता का स्प-प्राप्त कर लेती है। मूल्य को सामान्य रूप देने वाले प्रसंख्य समीकरण कपड़े में निहित मम का दूसरे हरेक माल में निहित श्रम के साब समीकरण कर देते हैं, और इस प्रकार के बुनाई के भम को अभिन्नित मानव-श्रम की अभिव्यक्ति का सामान्य रूप बना देते हैं। इस ढंग से मालों के मूल्यों के रूप में मूर्त श्रम न केवल अपने नकारात्मक रूप में सामने प्रा जाता है, जिसमें वास्तविक कार्य के प्रत्येक मूर्त प तथा उपयोगी गुण का प्रमूर्तिकरण कर दिया जाता है, बल्कि उसको अपनी सकारात्मक प्रकृति भी स्पष्ट रूप में प्रकट हो जाती है। सामान्य मूल्य-रूप में वास्तविक श्रम के सभी प्रकार सामान्यतः मानव-श्रम होने के-या मानव-श्रम-शक्ति का व्यय होने के-अपने समान स्वरूप में परिणत हो जाते हैं। सामान्य मूल्य-रूप, जिसमें श्रम से पैदा होने वाली तमाम वस्तुओं को अभिन्नित मानव- मम के जमाव मात्र के रूप में व्यक्त किया जाता है, अपनी बनावट से ही यह बात स्पष्ट कर देता है कि वह मालों की दुनिया का सामाजिक सारांश है। अतएव, यह रूप निर्विवाद उंग से यह बात स्पष्ट कर देता है कि मालों की दुनिया में सभी प्रकार के श्रम में मानव- मम होने का जो गुण समान रूप से मौजूद होता है, उसीसे उसको विशिष्ट सामाजिक स्वरूप प्राप्त होता है। २) मूल्य के सापेक्ष रूप और सम-मूल्य रूप का अन्योन्यामित विकास . . . मूल्य के सापेक्ष म्प के विकास की स्थिति सम-मूल्य रूम के विकास की स्थिति के अनुरूप होती है। परन्तु हमें यह बात याद रखनी चाहिये कि सम-मूल्य रूप का विकास केवल सापेक्ष म के विकास की ही अभिव्यक्ति एवं परिणाम होता है। किसी एक माल का प्राथमिक, अपवा इक्का-मुक्का, सापेल म किसी और माल को एक पृषक सम-मूल्य बना देता है। सापेक मूल्य का विस्तारित रूप, जिसमें एक माल का मूल्य बाकी सब मालों के रूप में व्यक्त होता है, इन तमाम बाकी मालों को अलग-अलग प्रकार के विशिष्ट सम-मूल्यों का रूप प्रदान कर देता है। और, अन्त में, एक खास प्रकार का माल सार्वत्रिक सम-मूल्य का स्वरूप प्राप्त कर लेता है, क्योंकि बाकी तमाम माल उससे उस पदार्थ का काम लेने लगते हैं, जिसके रूप में वे सब के सब अपना मूल्य व्यक्त करते हैं। मूल्य-रूप के दो ध्रुव है: मूल्य का सापेक्ष सौर सम-मूल्य म। उनके बीच को विग्रह है, वह स्वयं मूल्प-रूप के विकास के साथ-साथ विकसित होता है। पहला रूप है: २० गव कपड़ा = १ कोट। उसमें अभी से यह विपह मौजूद है, हालांकि उसने पनी टिकाऊ प नहीं प्राप्त किया है। इस समीकरण को पाप से बायीं से बायीं मोर या बायीं से बायीं ओर पढ़ते हैं, उसके अनुसार कपड़े और कोट की भूमिकाएं बदल जाती है। एक सूरत में कपड़े का सापेक मूल्य कोट के कम में व्यक्त होता है। दूसरी सूरत का सापेक्ष मूल्य कपड़े के रूप में व्यक्त होता है। प्रतएव, मूल्य के इस पहले म में ध्रुवीय व्यतिरेक को समझ पाना कठिन है। म 'ब' में एक समय में केवल एक ही प्रकार का माल अपने सापेक्ष मूल्य को पूरी तरह विस्तृत कर सकता है, और वह यह विस्तारित म केवल इसलिये और केवल इसी हब तक प्राप्त करता है कि बाकी सब माल उसके सम्बंध में सम- मूल्यों का काम करने लगते हैं। . कोट