८४४ पूंजीवादी उत्पादन . - . उनको शहर में घुस जाने दिया। इन्होंने शहर में प्रवेश करते ही पहले उसी गवर्नर के मकान पर पढ़ाई की और उसे कत्ल कर दिया, ताकि उसके विश्वासपात की कीमत के रूप में २१,८१५ पौड न देने पड़ें। ग्च लोगों ने जहां कहीं कदम रखा, वहीं तबाही मा गयी और बस्ती उजाड़ हो गयी। १७५० में बाबा के बाजूबांगी प्रान्त की पावादी ८०,०००वी, १८११ सक वह फेवल १८,००० रह गयी। कितना मधुर व्यवसाय या यह ! जैसा कि सुविदित है, अंग्रेजों की ईस्ट इमिया कम्पनी का हिन्दुस्तान में राजनीतिक शासन तो था ही, इसके अलावा उसको चाय के व्यापार का, चीन के साथ सभी प्रकार का व्यापार करने का और योरप से माल लाने और योरप में माल ले जाने का एकाधिकार भी मिला हुमा था। परन्तु हिन्दुस्तान के समुद्री किनारे के व्यापार और पूर्वी द्वीपों के पारस्परिक व्यापार और साथ ही हिन्दुस्तान के अन्दरूनी व्यापार पर भी कम्पनी के ऊंचे कर्मचारियों का एकाधिकार था। नमक, अफ्रीम, पान और अन्य मालों के व्यापार का एकाधिकार धन की प्रक्षय खान का काम करता था। इन चीजों के दाम जुन कम्पनी के कर्मचारी निश्चित करते थे और प्रभागे हिन्दुओं को इच्छानुसार लूटते थे। इस प्राइवेट व्यापार में गवर्नर-जनरल भी भाग लेता था। उसके रुपा-पात्रों को इतनी अच्छी शो पर ठेके मिल जाते थे कि वे, कीमियागरों से अधिक होशियार होने के कारण, मिट्टी से सोना बनाया करते थे। चौबीस घण्टे के अन्दर कुकुरमुत्तों की तरह ढेरों बोलत बटोर ली जाती थी; एक शिलिंग भी पेशगी के रूप में लगाना नहीं पड़ता पा और प्रादिम संचय धड़ल्ले से चल निकलता था। वारेन हेस्टिंग्स के मुकदमे में इस तरह अनेक मामले सामने पाये थे। एक उदाहरण देखिये। सुलीवान नामक एक व्यक्ति को भारत के एक ऐसे भाग में, जो प्रतीम के इलाके से बहुत दूर था, सरकारी काम पर भेजा जा रहा पा। चलते समय उसे अफीम का ठेका दे दिया गया। सुलीवान ने अपना ठेका दिन नामक एक व्यक्ति को ४०,००० पोज में बेच दिया। बिन ने उसी रोख उसे ६०,००० पोम में किसी अन्य व्यक्ति के हाथ बेच दिया, और इस पाखिरी खरीदार ने, निसने सचमुच ठेके को कार्यान्वित किया, बताया कि इतने ऊंचे दाम देने के बाद भी वह ठेके से बहुत भारी मुनाफा कमाने में कामयाब हुआ है। संसद के सामने पेश की गयी एक सूची के अनुसार, १७५७ से १७६६ तक कम्पनी तथा उसके कर्मचारियों को हिन्दुस्तानियों से ६०,००,००० पौड उपहारों के रूप में प्राप्त हुए थे। १७६९ पौर १७७० के बीच अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान का सारा चावल खरीद लिया और उसे अत्यधिक ऊंचे दाम पाये बिना बेचने से इनकार करके वहां अकाल पैदा कर दिया।' पादिवासियों के साथ सबसे बुरा व्यवहार, बाहिर है, केवल निर्यात-व्यापार के लिये लगाये गये बागानों वाले उपनिवेशों में किया जाता था,-जैसे बेस्ट इन्डीच में,-और मैक्सिको तपा हिन्दुस्तान से पनी पौर घने बसे हुए देशों में भी, जो अंधाधुंध लूटे जा रहे थे। लेकिन जिनको सचमुच उपनिवेश कहा जा सकता था, उनमें भी प्रारिम संचय का ईसाई स्वल्प प्रसन्न वा। प्रोटेस्टेन्ट मत के उन गम्भीर कला-विनों ने-न्यू इंगलग के प्यूरिटनों ने-१७०३ में अपनी assembly (परिषद) के कुछ प्रध्यादेशों के द्वारा अमरीकी प्राविवासियों को मारकर उनकी सोपड़ी की त्वचा लाने या उन्हें बिन्दा पकड़ लाने के लिये प्रति प्राबिवासी ४० पोड पुरस्कार 1१८६६ में अकेले उड़ीसा नामक प्रान्त में दस लाख से अधिक हिन भूब से मर गये। पर फिर भी जीवन के लिये प्रावश्यक वस्तुएं बहुत ऊंचे दामों में भूचे लोगों के हाथों बेचकर सरकारी खजाने को बढ़ाने की कोशिश की गयी।
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