माल ३) मूल्य के सम्पूर्ण अथवा विस्तारित रूप की त्रुटियां - . मूल्य की सापेक अभिव्यंजना सब से पहले तो इसलिये अपूर्ण है कि उसको व्यक्त करने पाला क्रम अन्तहीन होता है। हर नये प्रकार का माल तैयार होने के साथ-साथ मूल्य की एक नयी अभिव्यंजना की सामग्री तैयार हो जाती है और इस तरह मूल्य का प्रत्येक समीकरण जिस श्रृंखला की एक कड़ी मात्र है, वह श्रृंखला किसी भी क्षण और लम्बी सिंच सकती है। दूसरे, यह मूल्य की बहुत सी असम्बर और स्वतंत्र अभिव्यंजनामों से जुड़कर बनी मानों बहुरंगी पच्चीकारी होती है। और माखिरी बात यह है कि यदि, जैसा कि वास्तव में होता है, बारी-बारी से हर माल का सापेक्ष मूल्य इस विस्तारित रूप में व्यक्त होता है, तो उनमें से प्रत्येक के लिये एक भिन्न सापेन मूल्य-रूप तैयार हो जाता है, जो मूल्य की अभिव्यंजनामों का एक अन्तहीन क्रम होता है। विस्तारित सापेक्ष मूल्य-रूप की त्रुटियां उसके सवा सम-मूल्य रूप में भी मलकती है। चूंकि हर अलग-अलग माल का शारीरिक रूप असंख्य अन्य विशिष्ट सम-मूल्य मों में से एक होता है, इसलिये कुल मिलाकर हमारे पास समवत् सम-मूल्य स्मों के सिवा और कुछ नहीं बचता, जिनमें से प्रत्येक दूसरों का अपवर्जन कर देता है। इसी प्रकार प्रत्येक विशिष्ट सम-मूल्य में निहित विशिष्ट प्रकार का मूर्त, उपयोगी श्रम भी केवल एक खास प्रकार के श्रम के रूप में ही सामने पाता है, और इसलिये वह सामान्य मानव-श्रम के सर्वतः पूर्ण प्रतिनिधि के रूप में सामने नहीं पाता। यह तो सच है कि सामान्य मानव-षम अपने नाना प्रकार के विशिष्ट, मूर्त रूपों की सम्पूर्णता में पर्याप्त अभिव्यक्ति प्राप्त कर लेता है। परन्तु, इस रूप में, एक अन्तहीन कम के रूप में उसकी अभिव्यंजना सवा अपूर्ण रहती है और उसमें एकता का प्रभाव रहता है। किन्तु विस्तारित सापेन मूल्य-रूप पहले प्रकार की प्राथमिक सापेन अभिव्यंजनाओं-अपवा समीकरणों-के जोड़ के सिवा और कुछ नहीं है, जैसे कि २० गड कपड़ा१कोट, २० गड कपड़ा=१० पौण्ड चाय इत्यादि। इनमें से प्रत्येक में उसका उल्टा समीकरण भी निहित है: १ कोट = २० गा कपड़ा, १० पौम चाय = २० गत कपड़ा इत्यादि। . सब मालों सच तो यह है कि जब कोई व्यक्ति अपने कपड़े का बहुत से दूसरे मालों के साप विनिमय करता है और, इस तरह, अपने कपड़े मूल्य को अन्य मालों की एक श्रृंखला के रूप में व्यक्त करता है, तब इससे लाजिमी तौर पर यह नतीजा भी निकलता है कि अन्य विभि मालिक उन मालों का कपड़े के साथ विनिमय करते हैं और अपने विभिन्न भालों के मूल्यों को उस एक ही माल के म में-पानी कपड़े के रूप में व्यक्त करते हैं। प्रतएव, यदि हम इस श्रृंखला को-अर्थात् २० गम कपड़ा-१ कोट, या=१० पौण चाय इत्यादि को- उलट , अर्वात् यदि हम उस विपरीत सम्बंध को व्यक्त करें, जो कि इस श्रृंखला में पहले से निहित है, तो हमें मूल्य का सामान्य म मिल जाता है। .
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