८१६ पूंजीवादी उत्पादन उसका केवल रूप बदल दिया। जो नाम मात्र का अधिकार था, उसे उन्होंने खुद अपनी मर्जी से निजी सम्पत्ति के अधिकार में बदल दिया, और इससे चूंकि उनका खुद अपने कबीलों के लोगों के साथ टकराव हुमा, इसलिये उन्होंने इन लोगों को बर्दस्ती समीनों से भगाने का निश्चय कर लिया। प्रोफेसर न्यूमैन ने लिखा है : “इस तरह तो इंगलैण का राजा यह दावा कर सकता था कि उसे अपनी प्रजा को समुद्र में धकेल देने का अधिकार है।" स्कोटल में यह कान्ति बेम्स द्वितीय के पुत्र और पौत्र के समर्थकों के अन्तिम विद्रोह के बाद प्रारम्भ हुई थी। सर जेम्स स्टीवर्ट' और जेम्स ऐन्डर्सन' की रचनाओं में हम उसके प्रथम चरण का अध्ययन कर सकते हैं। १८ वीं शताब्दी में अपनी जमीनों से लड़े हए केल्ट लोगों को देश छोड़कर चले जाने की भी मनाही कर दी गयी, ताकि उनके सामने ग्लासगो तथा अन्य प्रौद्योगिक नगरों में जाकर रहने के सिवा और कोई चारा न रह जाये। १९ वीं शताब्दी में किस तरह के तरीके इस्तेमाल किया जाते हैं, इसके एक उदाहरण के रूप में केवल सबरलग की ग्वेन द्वारा की गयी "सफाई"
1F. W. Newman, उप० पु०, पृ० १३२ । 'स्टीवर्ट ने लिखा है : “यदि पाप इन जमीनों के विस्तार के साथ उनके लगान की तुलना करें" (यहां उसने लगान नामक मार्थिक परिकल्पना में उस खिराज को भी शामिल कर लिया है, जो कबीले के लोग अपने मुखिया को दिया करते थे), "तो आप पायेंगे कि लगान बहुत कम मालूम होता है । यदि पाप लगान की तुलना इस बात से करेंगे कि फार्म के सहारे कितने मनुष्यों का पेट पलता है, तो आप यह पायेंगे कि किसी अच्छे उपजाऊ प्रान्त की एक जागीर पर जितने लोगों का लालन-पालन होता है, स्कोटलण्ड के पर्वतीय प्रदेश में उतने ही मूल्य की जागीर से उससे शायद दस-गुने अधिक लोगों का जीवन-निर्वाह होता है।" (J. Steuart, उप० पु०, खण्ड १, अध्याय XVI [सोलह], पृ० १०४।)
- James Anderson, “Observations on the Means of Exciting a Spirit of Nati-
onal Industry, &c." (जेम्स ऐंडर्सन , 'राष्ट्रीय उद्योग की भावना पैदा करने के साधनों के विषय में कुछ टिप्पणियां , इत्यादि'), Edinburgh, 1777. 'जिन लोगों की जमीनें जबर्दस्ती छीन ली गयी थीं, उनको १८६० में धोखा देकर कनाडा भेज दिया गया। कुछ लोग पहाड़ों में भाग गये और आस-पास के द्वीपों को चले गये। पुलिस ने उनका पीछा किया। उसके साथ उनकी मार-पीट भी हुई। पर आखिर वे भाग जाने में कामयाब हुए। १८१४ ऐडम स्मिथ के टीकाकार बुकानन ने लिखा है : “स्कोटलैण्ड के पर्वतीय प्रदेश में सम्पत्ति की प्राचीन प्रणाली पर नित नये प्रहार हो रहे है ... जमींदार पुश्तैनी प्रासामी का कोई खयाल नहीं करता" (यहां पुश्तैनी प्रासामी नामक परिकल्पना का ग़लती से प्रयोग किया गया है), "बल्कि अपनी जमीन उसे देता है, जो सबसे ऊंचा लगान देने को तैयार होता है। यदि यह प्रादमी सुधारक होता है, तो वह तुरन्त ही एक नये ढंग की खेती चालू कर देता है। पहले जमीन पर छोटे प्रासामियों या मजदूरों की एक बड़ी संख्या बिखरी रहती थी, और पाबादी जमीन की उपज के अनुपात में होती थी। अब सुधरी हुई खेती और बड़े हुए लगान की नयी प्रणाली के अनुसार कम से कम खर्चा करके ज्यादा से ज्यादा उपज पैदा की जाती है, और इस उद्देश्य से , जो मजदूर अनावश्यक होते हैं, उनको जमीन से हटा दिया जाता है और इस तरह आबादी को उस संख्या से घटाकर, जिसकी जमीन परवरिश कर सकती है, उस संख्या 8 .