८१२ पूंजीवादी उत्पादन . खेतिहर मावादी को कल-कारखानों वाले उद्योगों में काम करने के लिये "उन्मुक्त करके" सर्वहारा में परिणत कर दिया। लेकिन १८ वीं शताब्दी में अभी तक १९ वीं शताब्दी की भांति पूरे तौर पर यह बात नहीं स्वीकार की थी कि राष्ट्र का धन और जनता की गरीबी-ये दोनों एक ही बीच है। चुनांचे उस समाने के पार्षिक साहित्य में "enclosure of commons" ("सामूहिक समीनों को घेरने") के प्रश्न के सम्बंध में हमें बड़ी गरम बहसें सुनने को मिलती है। मेरे सामने बो डेरों सामग्री पड़ी हुई है, उसमें से मैं केवल कुछ उद्धरण ही यहां पेश कलंगा, जिनसे उस काल की परिस्थिति पर पर्याप्त प्रकाश पड़ जायेगा। एक व्यक्ति ने बड़े कोष के साथ लिखा है: “हेर्टफोशायर के कुछ गांवों में प्रोसतन ५० एकर से १५० एकड़ तक के २४ फ्रामों को तोड़कर तीन फ्रानों में इकट्ठा कर दिया गया है।" " नाम्पटनशायर और लीसेस्टरशायर में बहुत बड़े पैमाने पर सामूहिक जमीनों को घेर लिया गया है, और इस रेवन्दी के फलस्वरूप जो नयी समीदारियां कायम हुई है, उनमें से अधिकतर को परागाहों में बदल दिया गया है। इसका नतीजा यह हुमा है कि जिन समीदारियों में पहले हर साल १,५०० एकर जमीन बोती जाती थी, उनमें प्रब ५० एकड़ समीन भी नहीं होती जाती... पुराने रहने के घरों, खलिहानों, अस्तबलों प्रादि के ध्वंसावशेष" ही अब यह बताते हैं कि वहां कभी कुछ लोग रहा करते थे। "कुछ खुले खेतों वाले गांवों में सौ घर और परिवार...कम होते-होते पाठ या बस रह गये है... जिन गांवों में केवल १५ या २० वर्ष से ही घेराबन्दी हुई है, उनमें से अधिकतर में खुले खेतों के जमाने में जितने भूमिधर रहा करते थे, अब उनकी तुलना में बहुत कम किसान रह गये हैं। यह कोई बहुत प्रसाधारण बात नहीं है कि वो इलाका पहले २० या ३० काश्तकारों और इतने ही छोटे मासामियों (tenants) और मालिकों के कब्जे में था, उसे ४ या ५ बड़े खीवारों ने घेरकर अपनी चरागाहों में बदल दिया है। और इस तरह इन सारे काश्तकारों, छोटे प्रासामियों और मालिकों की और उनके परिवारों की और बहुत से अन्य परिवारों की, जो मुख्यतया इन लोगों के लिये काम किया करते थे और इनपर निर्भर करते थे,-इन सब को जीविका छूट जाती है। न केवल उस समीन पर, जो परती पड़ी ईबी, बल्कि उस बमीन पर भी, जिसे लोग सामूहिक ढंग से जोता करते थे या जिसको कुछ खास व्यक्ति प्राम-समुदाय को एक निश्चित लगान देकर जोतते पे, पास-पड़ोस के समीदार धेरेवन्दी के बहाने कन्या कर लेते थे। "मैं यहां खुले खेतों और ऐसी बमीनों के घेरे जाने का विक कर रहा हूं, जिनमें पहले ही काफी सुधार किया जा चुका . . 999 दामों के कारणों की एक जांच'] (London, 1767, पृ० ११, फुटनोट) में मिलता है।- यह सुन्दर पुस्तक, जो बिना किसी नाम के प्रकाशित हुई थी, रैवेरण्ड नथेनियल फोस्टर की रचना है। 1 Thomas Wright, "A Short Address to the Public on the Monopoly of Large Farms" (टोमस राइट, 'बड़े फार्मों के एकाधिकार के विषय में जनता से एक संक्षिप्त निवेदन'), 1779, पृ. २,३।
- Rev. Addington, "Inquiry into the Reasons for or against Enclosing
Open Fields" (रैवरेण ऐलिंग्टन, 'खुले बेतों को घेरने के पक्ष और विपक्ष की दलीलों का विवेचन'), London, 1772, पृ० ३७, ४३, विभिन्न स्थानों पर। . .