खेतिहर प्राबादी की जमीनों का अपहरण ८११ सामूहिक सम्पत्ति,-जिसे हमें उस राजकीय सम्पत्ति से सदा अलग करके देखना चाहिये, जिसका अभी-अभी वर्णन किया गया है,-एक पुरानी ट्यूटोनिक प्रथा थी, वो सामन्तवाद की रामनामी प्रोदकर जीवित पी। हम यह देख चुके हैं कि किस प्रकार १५ वीं शताब्दी के अन्त में इस सामूहिक सम्पत्ति का बलपूर्वक अपहरण प्रारम्भ हुमा वा और १६ वीं शताब्दी में जारी रहा था और किस तरह उसके साथ-साथ पाम तौर पर खेती की जमीन परागाहों की जमीनों में बबली गयी थीं। परन्तु उस समय यह क्रिया व्यक्तिगत हिंसक कार्यों के द्वारा सम्पन्न हो रही थी, जिनको रोकने के लिये कानून बना-बनाकर के सौ वर्ष तक बेकार कोशिश होती रही। १८ वीं शताब्दी में जो प्रगति हुई, वह इस रूप में व्यक्त होती है कि कानून खुब लोगों की जमीनें पुराने का साधन बन जाता है, हालांकि बड़े-बड़े काश्तकार अपने छोटे-छोटे स्वतंत्र उपायों का प्रयोग भी जारी रखते हैं। इस लूट का संसदीय रूप सामूहिक समीन घेरने के कानूनों (Acts for enclosures of Commons) या उन अध्यादेशों की शक्ल में सामने प्राता है, जिनके द्वारा सीवार जनता की समीन को अपनी निजी सम्पत्ति घोषित कर देते हैं और जिनके द्वारा वे जनता की सम्पत्ति का अपहरण कर लेते हैं। सर एफ० एम० ईन ने सामूहिक सम्पत्ति को उन बड़े बनीवारों की निजी सम्पत्ति साबित करने की कोशिश की है, जिन्होंने सामन्ती प्रभुमों का स्थान ले लिया है। मगर जब वह यह मांग करते हैं कि "सामूहिक समीनों को घेरने के लिये संसब को एक सामान्य कानून बनाना चाहिये" (और इस तरह जब वह यह स्वीकार कर लेते हैं कि सामूहिक सम्पत्ति निजी सम्पत्ति में रूपान्तरित करने के लिये पावश्यक है कि संसद में कानून बनाकर उसका हात् अपहरण कर लिया जाये), और इसके अलावा जब वह संसब से उन गरीबों की पति-पूर्ति करने के लिये भी कहते हैं, जिनकी सम्पत्ति छीन ली गयी है, तब वह वास्तव में अपने पूर्ततापूर्ण तर्क का जुर ही सडन कर गलते हैं।' एक पोर, स्वतंत्र किसानों का स्थान कच्चे मासामियों (tenants at will), साल-साल भर के पट्टों पर समीन बोतने वाले छोटे काश्तकारों और समीवारों की बया पर निर्भर रहने वाले बासों से लोगों की भीड़ ने ले लिया। दूसरी ओर, राजकीय जागीरों की चोरी के साथ-साथ सामूहिक जमीनों की सुनियोजित लूट ने खास तौर पर उन बड़े फ्राों का प्राकार बढ़ाने में मदद गी, जो १८ वीं शताब्दी में पूंजीवादी फार्म या सौवागारों के फार्म कहलाते थे, और साथ ही . . . 'काश्तकार लोग झोपड़ों में रहने वाले मजदूरों को अपने बाल-बच्चों के सिवा किसी और प्राणी को झोंपड़ों में रखने की मनाही कर देते हैं। इसके लिये बहाना यह बनाया जाता है कि यदि मजदूर जानवर या मुर्गी प्रादि रखेंगे, तो वे काश्तकारों के खलिहानों से अनाज चुरा-चुराकर उन्हें खिलायेंगे। काश्तकार लोग यह भी कहते हैं कि मजदूरों को गरीब बनाकर रखो, तो वे मेहनती बने रहेंगे, इत्यादि। लेकिन मुझे यकीन है कि असली बात यह है कि काश्तकार लोग इस तरह सारी सामूहिक जमीन केवल अपने अधिकार में रखना चाहते हैं। ("A Political Inquiry into the Consequences of Enclosing Waste Lands" ["परती जमीन घेरने के परिणामों की एक राजनीतिक जांच'], London, 1785, पृ० ७५५) 'Eden, उप० पु., भूमिका । 3 "Capital Farms" ("पूंजीवादी फ़ार्म")- यह नाम देखिये "Two letters on the Flour Trade and the Dearness Corn. By a person in business" ['è o 19r ata अनाज की महंगाई के बारे में इस धंधे में लगे हुए एक व्यक्ति के दो पत्र'] (London, 1785, 9° १९, २०) में। • "Merchant Farms" ["सौदागरों के फार्म "]- यह नाम "An Enquiry into the Causes of the Present High Price of Provisions" ['बाय-वस्तुओं के वर्तमान ऊंचे
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