पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/८१

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७८ पूंजीवादी उत्पादन के जमाव के रूप में सामने पाता है। कारण कि इस मूल्य को पैदा करने में जो भम खर्च हमा है, वह अब साफ़-साफ़ उस अम के रूप में प्रकट होता है, जो हर प्रकार के अन्य मानव-श्रम के बराबर है, चाहे वह मम सिलाई का भम हो, या हल चलाने का, या सान सोदने का, या और किसी प्रकार का, और चाहे वह श्रम कोटों के रूप में प्रथवा अनाज के रूप में, लोहे के रूप में और या सोने के रूप में मूर्त रूप धारण करता हो। अब कपड़े का अपने मूल्य के रूप के फलस्वरूप अन्य प्रकार के किसी एक माल के साथ नहीं, बल्कि मालों की पूरी दुनिया के साथ एक सामाजिक सम्बंध स्थापित हो जाता है। माल के रूम में कपड़ा इस दुनिया का नागरिक है। साथ ही मूल्य के समीकरणों का यह अन्तहीन क्रम बताता है कि जहां तक किसी माल के मूल्य का सम्बंध है, इसका कोई महत्त्व नहीं है कि वह किस बास रूप या प्रकार के उपयोग मूल्य में प्रकट होता है। २० गड कपड़ा-१ कोट, इस पहले रूप में बहुत सम्भव है कि यह एक विशुद्ध रूप से पाकस्मिक घटना हो कि इन दो मालों का निश्चित मात्रामों में विनिमय हो सकता है। इसके विपरीत, दूसरे रूप में वह पृष्ठभूमि हमें तुरन्त दिखाई दे जाती है, जो इस घटना को निर्धारित करती है और जो इस माकस्मिक रूप से बुनियादी तौर पर भिन्न है। कपड़े का मूल्य परिमाण में अपरिवर्तित रहता है, चाहे वह कोटों के रूप में व्यक्त किया गया हो, या कहवे के, या लोहे के और या असंख्य अन्य मालों के, जिनके अलग-अलग मालिकों की संख्या भी इतनी ही बड़ी होती है। दो मालों के दो मालिकों के बीच अकस्मात स्थापित हो जाने वाला सम्बंध अब गायब हो जाता है। यह बात स्पष्ट हो जाती है कि मालों का विनिमय उनके मूल्य के परिमाण का नियमन नहीं करता, बल्कि, इसके विपरीत, उनके मूल्य का परिमाण उनके विनिमय के अनुपातों का नियंत्रण करता है। . . २) विशिष्ट सम-मूल्य रूप कपड़े के मूल्य की अभिव्यंजना में कोट, चाय, अनाज, लोहा प्रावि प्रत्यक माल सम- मूल्य के रूप में और इसलिये एक ऐसी वस्तु के रूप में सामने आता है, जो मूल्य है। इनमें से प्रत्येक माल का शारीरिक रूप अब बहुत से सम-मूल्य म्मों में से एक विशिष्ट सम-मूल्य म की तरह सामने पाता है। इसी तरह इन अलग-अलग मालों में निहित नाना प्रकार का मूर्त उपयोगी मन प्रब केवल इन नाना स्मों में मूर्त या प्रकट होने वाला अभिन्नित मानव- मम माना जाता है। तथा उनके अनुयायियों की रचनामों के सिलसिले में'। 'मत-निर्माण प्रादि सम्बंधी निबंधावली' के लेखक द्वारा लिखित], London, 1825, पृ. ३९।) इस गुमनाम रचना के लेखक एस० बेली थे। अपने जमाने में इस रचना ने इंगलैण्ड में बहुत हलचल पैदा की थी। बेली का ख़याल था कि इस तरह एक ही मूल्य की अनेक सापेक्ष अभिव्यंजनामों की ओर संकेत करके उन्होंने यह साबित कर दिया था कि मूल्य की अवधारणा को किसी भी प्रकार निर्धारित करना असम्भव है। उनके अपने विचार चाहे जितने संकुचित रहे हों, फिर भी उन्होंने रिकार्डो के सिद्धान्त की कुछ गम्भीर त्रुटियों पर उंगली रख दी थी। इसका प्रमाण यह है कि रिकानें के अनुयायियों ने बड़ी कटुता के साथ उनपर हमला किया था। मिसाल के लिये, देखिये "Westminster Review "I