पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/७९४

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पूंजीवादी संचय का सामान्य नियम ७६१ " , . निकलता है कि असल मजदूरी कुछ भी हो, नकद मजबूरी में बर वृद्धि हुई होगी। के पहले मखदूर जब अपने मॉपड़े में रहता था,.. जिसके साथ एक सया भाषी एकड़ या एकड़ भर बमीन भी होती थी, और वह. उसपर मालू की कुछ फसल पैदा कर सकता था। वह सुपर पाल सकता था और मुर्गियां रख सकता था... लेकिन अब मजदूरों को रोटी खरीदनी पड़ती है और उनके पास ऐसा कोई कूमा-करकट भी नहीं होता, जिसे वे सुपर या मुर्गियों को लिला सकें, और इसलिये वे सुमर, मुगी या अण्डे बेचकर कुछ नहीं कमा सकते।"1 असल में, खेतिहर मजदूर पहले सबसे छोटे काश्तकारों के समान होते थे और मोटे तौर पर मनोले और बड़े फ्रामों के, जिनपर उनको काम मिल जाता था, पृष्ठदल का काम करते थे। यह बात तो केवल १८४६ की बुर्घटना के बाद ही देखने में पायी है कि ये लोग विशुद्ध रूप से मजदूरी करने बालों के वर्ग का, उस विशेष वर्ग का भाग बनते जा रहे हैं, जिसका मजदूरी देने वाले अपने मालिकों के साथ केवल मुद्रा का ही सम्बंध होता है। हम जानते हैं कि १८४६ में उनके घरों की क्या हालत थी। तब से उनकी हालत और भी खराब हो गयी है। लेतिहर मजदूरों का एक भाग, हालांकि उसकी संख्या दिन प्रति दिन कम होती जा रही है, मान भी काश्तकारों की जमीन पर बने हुए, भीड़ से भरे उन घरों में रहता है, जिनकी भयानकता के सामने इंगलंग के खेत मजदूरों के खराब से खराब घर भी अच्छे लगेंगे। और अल्स्टर के कुछ इलाकों को छोड़कर बाकी जगह पाम तौर पर यही हालत है, जैसे दक्षिण की कोकं, लिमेरिक, किलकेली इत्याविकाउण्टियों में पूर्व में विकलो बेक्सफ़ोर्ड प्रादि में; पायरलैण्ड के मध्य में किंग्स एम पीन्स काउन्टी, बलिन प्रावि में उत्तर में औन, एन्ट्रीम, टिरोन इत्यादि में; पश्चिम में स्लिगो, रोसकोमन, मेयो, गैलवे मादि में। एक इंस्पेक्टर ने "लेतिहर मजदूरों के झोंपड़े ईसाइयत और इस देश की सभ्यता के माथे पर कलंक का टीका है। इन बड़बों को मजदूरों के लिये और भी पाकर्षक बनाने के वास्ते, प्रति प्राचीन काल से उनके साथ जुड़े हुए जमीन के टुकड़ों को भी सुनियोजित ढंग से बत कर लिया जाता है। "केवल इस विचार ने कि समीदारों और उनके कारिंदों ने उनपर इस प्रकार का प्रतिबंध लगा रखा है,.. मजदूरों के विमानों में उन लोगों के विक्स, जिनके बारे में उनका खयाल है कि वे लोग मजदूरों के साथ एक पुलाम नस्ल जैसा... व्यवहार करते हैं, विरोष और असंतोष की भावनाएं पैदा कर दी है। ती में वो कान्ति हुई, उसने पहला काम यह किया कि मन के क्षेत्र में बड़े मोपड़ों को नष्ट कर दिया। यह चीन बहुत ही बड़े पैमाने पर हुई, और इस तरह हुई, जैसे किसी ने ऊपर से इसका हुक्म दिया हो। पुनांचे बहुत से मजदूरों को गांवों और शहरों में प्राथम खोजना पड़ा। वहां उनको फूलेकरकट की तरह सबसे स्थावा गंदे मुहल्लों की प्रटारियों, बड़वों, तहखानों पौर कोनों में भर दिया गया। यद्यपि अंग्रेजों का मस्तिष्क बातीय पूर्वग्रहों से संकुचित रहता है। तथापि वे यह मानते हैं कि प्रायरलेड के लोगों का अपने घरसार से एक अजीब लगाव होता है और उनके घरेलू बीवन में एक उल्लेखनीय हॉत्फुिल्लता तथा निर्मलता होती है। परन्तु इन्हीं मायरलेस सयों के हजारों परिवारों को उनकी भूमि से उतारकर यकायक पाप की नगरी में . . , . ... "3 . , उप. पु., पृ० २६,१। 'उप. पु., पृ. १२। 'उप. पु., पृ० १२॥ .