पूंजीवादी उत्पादन . . . सम्बंध द्वारा उनको अभिव्यंजना के सिवा और कहीं पर है, यानी उनके लिये वे रोड के बाबार-भावों के सिवा और कहीं नहीं है। मैकलिमोर, जिन्होंने लोम्बार स्ट्रीट के गड़बड़ विचारों को अत्यन्त पन्डिताक पोशाक पहनाने का काम अपने कंधों पर लिया है, अंधविश्वासी व्यापारवादियों और स्वतन्त्र व्यापार के बापत फेरीवालों के बीच एक सफल वर्णसंकर हैं। 'ख' के साथ 'क' के मूल्य के सम्बंध को व्यक्त करने वाले समीकरण में 'क' के मूल्य को 'ख' के रूप में जो अभिव्यंजना निहित है, उससे यह बात स्पष्ट हो गयी है कि इस सम्बंध में 'क' का शारीरिक रूप केवल एक उपयोग मूल्य की तरह सामने जाता है और 'ख' का शारीरिक रूप केवल मूल्य के रूप अपवा शकल की तरह सामने पाता है। इस तरह, हरेक माल के भीतर उपयोग-मूल्य और मूल्य के बीच जो विरोष अथवा व्यतिरेक निहित है। वह उस समय स्पष्ट रूप में सामने आ जाता है, जब दो मालों के बीच इस प्रकार का सम्बंध स्थापित कर दिया जाता है कि जिस माल का मूल्य व्यक्त करना होता है, वह प्रत्यक्ष ढंग से महज उपयोग-मूल्य की तरह सामने पाता है, और जिस माल के रूप में इस मूल्य को व्यक्त करना होता है, वह प्रत्यक्ष ढंग से महा विनिमय-मूल्य की तरह सामने पाता है। इसलिये किसी भी माल के मूल्य का प्राथमिक रूप वह प्राथमिक रूप है, जिसमें कि उस माल में निहित, उपयोग मूल्य और मूल्य का व्यतिरेक प्रकट होता है। मम की प्रत्येक पैदावार समाज को सभी अवस्थानों में उपयोग-मूल्य होती है। किन्तु यह पैदावार सामाजिक विकास के एक खास ऐतिहासिक युग के प्रारम्भ हो जाने पर ही माल बनती है,-अर्थात् जब वह युग पारम्भ हो जाता है, जिसमें किसी भी उपयोगी चीन के उत्पादन पर खर्च किया गया श्रम उस पोल के एक वस्तुगत गुण के रूप में-यानी उसके मूल्य के रूप में- व्यक्त होने लगता है। प्रतएव इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि प्राथमिक मूल्य-रूप ही वह पाविम रूप है, जिसमें श्रम की पैदावार इतिहास में पहले-पहल माल की तरह सामने भाती है, और ऐसी पैदावार मूल्य-रूप के विकास के साथ-साथ और समान गति से धीरे-धीरे माल का रूप धारण करती जाती है। मूल्य के प्राथमिक रूप की त्रुटियां पहली दृष्टि में ही दिखाई दे जाती है वह महज एक बीजाणु है, और वाम-रूप की परिपक्वता प्राप्त करने के लिये इसका अनेक रूपान्तरणों में से गुजरना जरूरी है। 'क' नामक माल के मूल्य की 'ख' नामक किसी भी अन्य माल के रूप में अभिव्यंजना केवल 'क' के उपयोग-मूल्य से उसके मूल्य के भेद को स्पष्ट करती है, और इसलिये वह क' का महन ख' नामक एक ही अन्य माल से विनिमय का सम्बंध स्थापित करती है। लेकिन यह अभिव्यंजना सभी मालों के साथ 'क' को गुणात्मक समता और परिमाणात्मक मनुपातिता व्यक्त करने से भी बहुत दूर है। किसी भी एक माल के प्राथमिक सापेक्ष मूल्य- प के साथ किसी एक और माल का एक अकेला सदृश सम-मूल्य कम होता है। प्रतएव, कपड़े के मूल्य की सापेन अभिव्यंजना में कोट अकेले एक माल के सम्बंध में-यानी अकेले कपड़े के सम्बंध में-ही सम-मूल्य का म पारण करता है, या यूं कहिये कि सीधे तौर पर केवल कपड़े के साथ ही विनिमय करने के योग्य बनता है। इस सब के बावजूद, मूल्य का प्राथमिक प एक सहन संक्रमण बारा प्रषिक पूर्वस म बदल जाता है। यह सच है कि प्राथमिक पारा 'क' नामक किसी माल का मूल्य
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