७८६ पूंजीवादी उत्पादन अनुबड पायों पर १८६० १८६१ अनुसूची "क" बमीन का लगान. १,३८,९३,८२९ १,३०,०३,५५४ अनुसूची "" काश्तकारों का मुनाफा २७,६५,३८७ २७,७३,६४४ अनुसूची उद्योगों प्रादि का मुनाफा. ४८,९१,६५२ ४८,३६,२०३ Il 60 समस्त अनुसूचियर्या- २,२६,६२,८८५ २,२६,९८,३९४ इंगलणकी मण्डी में मांस, ऊन प्रादि का भाव बढ़ जाने के फलस्वरूप इस प्रतिरिक्त पैदावार का मुद्रा-मूल्य उसकी राशि से भी अधिक तेजी से बढ़ गया है। उत्पादन के वे बिखरे हुए साधन, जो खुद उत्पादकों के लिये रोजगार तथा जीवन-निर्वाह के साधनों का काम करते हैं और दूसरे लोगों के श्रम का अपने साथ समावेश करके स्वयं अपने मूल्य का विस्तार नहीं करते, वे उसी तरह पूंजी की मद में नहीं पाते, जिस तरह वह पैदावार माल की मद में नहीं पाती, जिसे उसका पैदा करने वाला खुब खर्च कर गलता है। यदि एक तरफ पावादी के कम होने के साथ-साथ खेती में लगे हुए उत्पावन के साधनों में भी कमी मा गयी, तो दूसरी तरफ़ लेती में लगी हुई पूंजी बढ़ गयी, क्योंकि उत्पादन के बिखरे हुए साधनों के एक भाग का संकजण हो गया और वह पूंजी में बदल गया। मायरलेज में खेती के बाहर, उद्योग तथा व्यापार में जो पूंजी लगी हुई है, उसका संचय पिछली दो बशानियों में धीरे-धीरे हमा है और संचय की इस क्रिया के दौरान में बार-बार और बहुत बड़े-बड़े उतार-चढ़ाव माते रहे हैं। मगर इस पूंजी के अलग-अलग संघटकों का संकंग उतनी ही ज्यादा तेजी से हुआ है। और उसमें निरपेक्ष डंग की वृद्धि भले ही बहुत कम हुई हो, पर बेश की घटती हुई पावावी के अनुपात में वह बहुत बढ़ गयी है। प्रतः यहाँ हम अपनी प्रांतों के सामने और बड़े पैमाने पर एक ऐसी प्रक्रिया को सम्पन्न होते हुए देखते हैं, जिससे बेहतर कोई बीच परंपरानिष्ठ प्रशास्त्र को अपनी इस कढ़ि के समर्थन के लिये नहीं मिल सकती थी कि गरीबी निरपेक्ष अतिरिक्त जन-संस्था से उत्पन्न होती है और जब मावादी का एक हिस्सा उजड़ जाता है, तो संतुलन फिर ठीक हो जाता है। इस सम्बंध में प्रापर- लेज का यह प्रयोग १४ वीं शताब्दी के मध्य के उस प्लेग से कहीं अधिक महत्व रखता है, जिस- माल्यूस के अनुयायी इतनी प्रशंसा किया करते हैं। यहां हम यह और बता दें कि यदि केवल स्कूल के मास्टर का भोलापन ही यह गलती कर सकता था कि उनीसवीं सदी की उत्पादन और मावादी की परिस्थितियों को १४ वीं सदी के मापदम से मापने लगे, तो दूसरी ओर यह
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