पूंजीवादी संचय का सामान्य नियम . निराने, गोड़ने, साव गलने, पत्थरों को हटाने इत्यादि के लिये। यह सारा काम टोलियां, या मुले गांवों में रहने वाले मजदूरों के संगठित गत्ये करते हैं। हर टोली में १० से ४० या. ५० व्यक्ति तक होते हैं, जिनमें स्त्रियां, मड़के और लड़कियां (लड़के-लड़कियों की मायु १३ से १८ वर्ष तक होती है, हालांकि १३ वर्ष की प्रायहोने पर लड़कों को प्रायः जवाब दे दिया जाता है) तथा (६ से १३ वर्ष तक के बच्चे और बच्चियां दोनों होते हैं। टोली का एक मुखिया (gang-master) होता है, जो सदा कोई साधारण खेत- मखदूर ही होता है; पाम तौर पर उनमें से कोई ऐसा बदमाश, निकम्मा, बेपेन्दी का लोटा पौर शराबी पावमी इस काम के लिये छांटा जाता है, जिसमें थोड़ी उद्यमशीलता और योग्यता हो। वही टोली को भर्ती करता है, और टोली काश्तकार के मातहत नहीं, बल्कि इस मुखिया के मातहत ही काम करती है। मुखिया प्रायः कास्तकार काम का ठेला ले लेता है। उसकी प्राय,-जो प्रायः एक साधारण खेतिहर मजदूर की माय से बहुत अधिक नहीं होती,' -लगभग पूरी तरह इस बात पर निर्भर करती है कि उसमें अपनी टोली से कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा श्रम करा लेने की कितनी योग्यता है। कास्तकारों का अनुभव है कि स्त्रियां केवल पुरुषों की देख-रेख में ही बत्तचित होकर काम करती हैं, लेकिन स्त्रियों और बच्चों को यदि एक बार काम में लगा बीजिये, तो फिर,-जैसा कि यूरिये ने भी लिखा है,-वे अंधाधुंध काम करते जाते हैं और अपने को एकदम सपा गलते हैं, जबकि वयस्क पुरुष ज्यादा चालाक होता है और अपनी शक्ति को कम से कम खर्च करता है। टोली का मुखिया एक फार्म से दूसरे फार्म में घूमता रहता है और इस तरह अपनी टोली को साल में ६-८ महीने काम में लगाये रखता है। इसलिए मजदूरी करने वाले परिवारों के लिए किसी खास काश्तकार के यहां काम करने की अपेक्षा, जो केवल कभी-कभार बच्चों को नौकर रखता है, टोली के मुखिया के जरिये काम हासिल करने में अधिक लाभ तथा सुनिश्चितता रहती है। इससे खुले गांवों में टोली के मुखिया का इतना पावर्वस्त मसर कायम हो जाता है कि बच्चों को भी पाम तौर पर उसके परिये ही नौकर रखाया जा सकता है। बच्चों को व्यक्तिगत रूप से, अपनी टोली से अलग, काश्तकारों के यहां नौकर रखवाना मुखिया का दूसरा पंचा होता है। इस प्रणाली की "श्रुटियो" ये है कि बच्चों और लड़के-लड़कियों से बहुत ज्यादा काम लिया जाता है, उनको रोजाना बहुत दूर चलकर काम पर जाना पड़ता है, क्योंकि उनके घरों से फार्म ५-५, ६-६ और कभी-कभी तो ७७ मील दूर होते हैं, और टोली का जीवन बच्चों के माचार-विचार के लिये बहुत घातक होता है। मुखिया को हालांकि कुछ इलाकों में "the driver" कहा जाता है और उसके पास सदा एक लम्बी.डी भी रहती है, फिर भी वह उसका इस्तेमाल बहुत कम करता है और उसके खिलाफ बुरे व्यवहार की शिकायतें बहुत कम सुनी जाती हैं। बह एक जनवादी सम्राट या हैमेलिन के पार पाइपर की तरह होता है। इसलिये, उसके वास्ते अपनी प्रजा का स्नेहपात्र होना प्रावश्यक होता है। इस स्नेह का पापार वह पाकर्षक यायावर बीवन होता.है, जो उसकी देख-रेख में उसकी प्रथा को उपलब्ध होता है। एक अनगढ़ सी स्वतंत्रता, निन्दादिली से भरा हुमा शोर-शराबा और पशिष्टता की तमाम सीमानों को पार कर जाने वाली शोली-इन बातों से टोली का जीवन पाकर्षक बन जाता है। ग्राम तौर . लेकिन कुछ टोलियों के मुखिया पांच-पांच सौ एकड़ के कास्तकार या मकानों की पूरी लाइन के मालिक बन बैठे हैं।
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