पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/७७९

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७७६ पूंजीवादी उत्पादन . और मजदूरों के प्राविषय की परस्पर विरोधी शिकायतें एक साथ पढ़ने को मिलती है। मजदूरों की प्रस्थायी अथवा स्थानीय मांग से मजबूरी की बर नहीं बढ़ती, बल्कि उसका केवल यही असर होता है कि स्त्रियों और बच्चों को भी खेतों में झोंक दिया जाता है और जिस मायु पर उनका शोषण प्रारम्भ हो जाता है, वह अधिकाधिक नीचे गिरती जाती है। और जैसे ही स्त्रियों और बच्चों का पहले से बड़े पैमाने पर शोषण होने लगता है, वैसे ही यह बीच खुब पुरुष मजदूरों को फालतू बना देने और उनकी मजदूरी को बढ़ने से रोकने का एक नया साधन बन जाती है। इंगलैण के पूर्वी भाग में इस cercle vicleux (प्राण-लेवा चक) का एक नया फल उत्पन्न हुआ है। वह है तथाकषित gang-system (टोलियों की प्रणाली), जिसका प्रब में संक्षेप में वर्णन करूंगा। टोलियों की प्रणाली लगभग अनन्य रूप से लिंकनशायर, हल्टिंगडनशायर, फैमिाजशायर, नोरक्रोक, सक्रोक और नोटिंघमशायर में तवा कहीं-कहीं पर पड़ोस की नोम्पटन, बड़े फोर्ट और स्टलैण्ड नामक काउष्टियों में पायी जाती है। हम लिंकनशायर को उदाहरण के रूप में लेंगे। इस काउन्टी का एक बड़ा हिस्सा नयी बमीन का है, जहां पहले बलवल था। अपर जिन पूर्वी काउष्टियों का नाम लिया गया है, उन्हीं की भांति इसकी जमीन भी अभी हाल ही में समुद्र में से निकाली गयी है। पानी की निकासी के मामले में भाप के इंजन ने बड़े-बड़े चमत्कार कर दिखाये हैं। जहां कुछ समय पहले बलबल या रेतीले किनारे थे, वहां अब अनाज के विशाल त लहलहा रहे हैं और इन टुकड़ों के लगान की दर और सब समीनों की दर से ऊंची है। मानव-श्रम से एक्सहोल्म के द्वीप में तथा देष्ट नदी के तट पर बसे अन्य गांवों में जो कछार की भूमि उपलब्ध हुई है, वहां भी पान इसी प्रकार का दृश्य दिखाई देता है। जैसे-जैसे मये फार्म खुलते गये, बैसे- वैसे न सिर्फ नये घर नहीं बने, बल्कि पुराने घरों को तोड़-तोड़कर गिरा दिया गया, और मजदूरों को मीलों दूर, खुले गांवों से पहाड़ियों में चक्कर लगाती हुई लम्बी सड़कों को ते करके यहां काम करने के लिये पाना पड़ा। पुराने दिनों में शीत ऋतु की अनवरत बाढ़ से गरकर भागने वाले लोगों को केवल इन्हीं गांवों में प्राधय मिलता था। ४०० से १,००० एकड़ तक के फ्रामों पर जो मजदूर रहते हैं (वे "confined labourers" ["बन्न मजदूर"] कहलाते हैं), उनसे खेती का केवल उसी तरह का काम लिया जाता है, जो स्थायी ढंग का कठिन काम है और जिसे घोड़ों की मदद से करना पड़ता है। हर १०० एकड़ पर प्रोसतन मुश्किल से एक घर होता है। मिसाल के लिए, भूतपूर्व बलदल में खेती करने वाले एक कास्तकार ने जांच-पायोग के सामने बयान देते हुए कहा पा: "मैं ३२० एकड़ जमीन पर खेती करता हूं। यह सारी जमीन लेती- योग्य है। मेरे फार्म पर एक भी मॉपड़ा नहीं है। पानकल मेरे फार्म पर केवल एक मजदूर काम करता है। ४ साईस भी फार्म पर ही रहते हैं। हल्का काम हम लोग टोलियों से करवाते है। यहां की परती के लिये बहुत सारे हल्के ढंग के श्रम की पावश्यकता पड़ती है, वैसे - 1 "Sixth and last Report of the Children's Employment Commission" ('बाल-सेवायोजन आयोग की छठी पौर. अन्तिम रिपोर्ट'), जो मार्च १८६७ के अन्त में प्रकाशित हुई थी। इसमें केवल बेतिहर मजदूरों की टोलियों की प्रणाली (gang-system) का ही वर्णन है। 8 "Children's Employment Commission: Sixth - Report" ('Terharutora प्रायोग की छठी रिपोर्ट'), गवाह का बयान, नं. १७३, पृ. ३७ ।