पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/७७७

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७७४ पूंजीवादी उत्पादन बाब प्रकृति के एक नियम के अनुसार "निवास के साधनों" पर बवाव गलने लगते हैं।) गफ्टर हण्टर ने कहा है : “बाहिर है, कोई ऐसा भी स्थान होना चाहिये, जहां से ये गरीब लोग यहां पाते हैं, और चूंकि उसे में बेकारों के भत्ते जैसी कोई पाकर्षक बीच भी नहीं है, इसलिये किसी दूसरे अनुपयुक्त स्थान से प्रतिकर्षण के फलस्वरूप वे यहां पाते होंगे। यदि उनमें से हर प्रादमी को अपने काम की जगह के नवीक घर मिल जाता, तो जाहिर है कि वह बेडसे को न पसन्द करता, जहां उसे जमीन के अपने टुकड़े के लिये काश्तकार से बुगुनी रकम बेनी पड़ती है।" गांव छोड़कर लोगों का लगातार शहरों में जाकर बसते जाना, खेतों के संकेद्रण, जोतने योग्य जमीन के चरागाहों में परिवर्तित हो जाने, मशीनों के उपयोग मादि के परिणामस्वरूप बेहात में अतिरिक्त जनसंख्या का लगातार बढ़ते जाना और खेतिहर प्राबादी के घरों के गिरा दिये जाने के फलस्वरूप उसका बराबर बेदखल होते जाना-ये सारी बातें साथ-साथ होती है। कोई इलाका मनुष्यों से जितना ज्यादा खाली होता है, वहां "सापेक्ष अतिरिक्त जनसंख्या" उतनी ही अधिक होती है, रोजगार के साधनों पर उसका दबाव उतना ही ज्यादा होता है, रहने के घरों की तुलना में खेतिहर मावारी उतने ही निरपेन ढंग से बढ़ जाती है और इसलिये गांवों में स्थानीय ढंग की अतिरिक्त भावादी तथा मनुष्यों को जानवरों की तरह ढूंस-ठूसकर भरना तथा बीमारियों को जन्म देना भी उतना ही अधिक बढ़ जाता है। विखरे हुए, छोटे-छोटे गांवों और छोटे-छोटे बेहाती कस्बों में लोगों का इस तरह जमाव हो जाना इस बात का नतीजा है कि खमीन की सतह से लोगों को जबर्दस्ती हटा दिया जाता है। हालांकि खेतिहर मजदूरों की संख्या बराबर घटती जाती है और उनकी पैदावार की राशि बराबर बढ़ती जाती है, फिर भी चूंकि उनमें बेकारों की संख्या बराबर बढ़ती जाती है, इस कारण उनमें मुहताजी पैदा हो जाती है। उनकी मुहताची अन्त में उनके घरों से निकाल दिये जाने का कारण बन जाती है और यह खास वजह होती है, जिससे उनको इतने खराब किस्म के घरों में रहना पड़ता है और बो उनकी प्रतिरोध की शक्ति को प्राखिरी तौर पर समाप्त कर देती है तथा उनको समीन के मालिकों और काश्तकारों का महन गुलाम बना देती है। इस प्रकार, कम से कम मजदूरी पाना . 1कम्मी का यह विधाता द्वारा निर्धारित काम इस स्थिति में भी उसे एक अनोखी गरिमा प्रदान कर देता है। वह दास नहीं है, बल्कि शान्ति-काल का सैनिक है; और वह विवाहित मनुष्यों के लिये बनाये गये उन घरों में स्थान पाने का अधिकारी है, जिनको जमींदार बनायेगा, -वही जमींदार, जो कम्मी को उसी तरह श्रम करने के लिये बाध्य करता है, जिस तरह देश सैनिक को बाध्य करता है। जिस प्रकार सैनिक को उसके काम का दाम बाजार-भाव के अनुसार नहीं मिलता , उसी प्रकार कम्मी को भी नहीं मिलता। सैनिक की तरह उसे भी युवावस्था में ही पकड़ लिया जाता है, जब उसे किसी बात का ज्ञान नहीं होता और जब वह केवल अपने धंधों से और अपने गांव से ही परिचित होता है। सैनिक पर भर्ती का कानून और गदर का कानून जो असर गलते हैं, वही प्रसर बाल-विवाह की प्रथा और बसने के विभिन्न कानूनों की प्रक्रियायें बेत-मजदूर पर गलती है।" (ग) हण्टर, उप • पु०, पृ. १३२।) कभी-कभी कोई जमींदार प्रसाधारण रूप से कोमल-हदय होता है, तो उसे खुद अपने पैदा किये हुए अकेलेपन पर दुःख होने लगता है। जब लाई लीसेस्टर को होल्कहम की पूर्ति पर बधाई दी गयी, तो उन्होंने कहा : "अपने इलाके में अकेले बड़े