७७० पूंजीवादी उत्पादन वाटर ईटन । यहाँ मावावी को बढ़ते हुए देखकर समीवारों ने लगभग २० प्रतिशत मकानों नष्ट कर दिया है। एक गरीब मजदूर को काम करने के वास्ते ४ मील पैदल चलकर जाना होता है। उससे प्रश्न किया गया कि क्या उसे अपने काम के स्थान के नजदीक कोई घर नहीं मिल सकता। उसने जवाब दिया: "नहीं, वे लोग इतने मूल नहीं है कि इतने बड़े परिवार वाले प्रादमी को घर किराये पर बेंगे।" टिंकर्स एज (विलो के पास)। सोने का एक कमरा, जिसमें ४ वयस्क व्यक्ति और ४ बच्चे रह रहे थे, ११ फुट लम्बा और ६ फुट चौड़ा था, और उसके सबसे ऊंचे हिस्से की ऊंचाई ६ फुट ५ इंच थी। एक और कमरा ११ फुट ३ इंच लम्बा, ६ फुट चौड़ा और ५ कुट १० इंच ऊंचा था, जिसमें ६ व्यक्तियों ने प्राय ले रखा था। जेल में एक कैदी के लिए कम से कम जितना स्थान प्रावश्यक समझा जाता है, इनमें से प्रत्येक परिवार के पास उससे कम स्थान पा। किसी घर में एक से अधिक सोने का कमरा नहीं था। किसी में पिछवाड़े की तरफ बरवासा नहीं था। पानी की बहुत कमी थी। साप्ताहिक किराया १ शिलिंग ४ पेन्स से २ शिलिंग तक पा। १६ घरों को देखा गया ; उनमें केवल १ पुरुष ऐसा मिला, जो १० शिलिंग प्रति सप्ताह कमा लेता था। ऊपर जिन परिस्थितियों का वर्णन किया गया है, उनमें प्रत्येक व्यक्ति को हवा की उतनी ही मात्रा मिलती थी, जितनी उसे उस स्थिति में मिलती, जब कि उसे रात भर एक ४ फुट लम्बे, ४ फूट चौड़े और ४ फुट ऊंचे बक्स में बन्द करके रखा जाता। परन्तु जो घर बहुत पुराने पड़ गये थे, उनमें, उनके बनाने वालों की इच्छा के विपरीत, हवा पाने के कुछ रास्ते खुल जाते थे। (४) कैमिाजशायर गैम्बलिंगे कई जमींदारों को सम्पत्ति है। इस गांव में जितने खराब cots (एकमखिले घर) है, उतने खराब और कहीं नहीं हैं। सूखी घास की बुनाई यहां बहुत होती है। गैम्बलिंगे में "एक प्राणघातक पकन, गन्दगी के सामने प्रात्मसमर्पण कर देने की एक निराशा-भरी भावना" छायी हुई है। उसके बीच के भाग में यदि लापरवाही का राज है, तो उत्तर और दक्षिण के छोर के भागों में सांप का राज है, जहां घर सड़-गलकर टूटते जा रहे हैं। अन्यत्रवासी समीदार इस गरीब गांव का सारा खून से ले रहे हैं। किराये बहुत ऊंचे हैं। ८ या ९ व्यक्ति सोने के एक कमरे में भर दिये जाते हैं; दो जगहों पर देखा गया कि एक छोटी सी कोठरी है, उसमें ६ बयस्क रह रहे हैं, जिनमें से हरेक के पास एक-एक, दो-दो बच्चे हैं। . (५) एस्सेक्स इस काउण्टी के बहुत से गांवों में रहने वालों की संख्या और घरों की संख्या साथ-साथ कम होती जा रही है। किन्तु कम से कम २२ गांव ऐसे हैं, जिनमें घरों के गिरा दिये जाने से पाबादी का बढ़ना नहीं रुका है और न ही इन गांवों से लोगों का निष्कासन हुमा है, जो पान तौर पर "गांव छोड़कर शहर चले जाने" के नाम से होता है। किंचिंगहो नामक गांव में, जिसका सवा ३,४३ एकर है, १८५१ में १४५ घर थे, जबकि १८६१ में वहां केवल ११० घर रह गया । लेकिन लोग गांव छोड़कर नहीं जाना चाहते थे, और यहां तक कि इस परिस्थिति में भी उनकी संख्या में वृद्धि हो गयी। रेम्सडेन केस में १८५१ में २५२ व्यक्ति ६१ घरों में रहते
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