पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/७६९

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पूंजीवादी उत्पादन ... ... - मजदूर को उसी जमीन पर रहने को कोई स्थान मिल जाता है, जिसे वह गोतता-बोता है, तब घर के मामले में ग्राम तौर पर उसकी स्थिति वैसी हो जाती है, तो उसके उत्पादक उद्योग को देखते हुए होनी चाहिये। यहां तक कि राजकुमारों की जागीरों पर भी. मजदूर का झोंपड़ा खराब से खराब ढंग का हो सकता है। कुछ पीवार है, जो मजदूर पौर उसके परिवार के लिये गंदे से गंदे प्रस्तबल को भी बहुत अच्छा समझते हैं, मगर जब किराये का सवाल पाता है, तो उसकी बाल उतार लेने में भी संकोच नहीं करते।' मुमकिन है कि यह केवल एक कमरे का मॉपड़ा हो, जिसमें न तो अंगीठी हो, न पाखाना हो, न कोई खिड़की हो ; गोहड़ के सिवा पानी का भी कोई इन्तजाम न हो, और कोई बगीचा भी न हो, - मगर मजबूर लाचार है, वह इस अन्याय के विरुद्ध कुछ नहीं कर सकता ... francut into wina (the Nuisances Removal Acts) कोरे कागज के टुकड़े बनकर... रह गये हैं, क्योंकि इन कानूनों का अमल में पाना बहुत हब तक उन मकान- मालिकों पर ही निर्भर करता है, जिनसे इस मजदूर ने यह बड़बा किराये पर ले न्याय का तकावा है कि अब सुन्दर, किन्तु अपवार-स्वल्प वृक्ष्यों की मोर से ध्यान हटाकर उन तयों की पोर लोगों का ध्यान प्राकर्षित किया जाये, - .और अनुत्रास ... . . - . 1 हालत में रहते हुए भी सचमुच बड़े ही पाश्चर्यजनक ढंग से अपनी ईमानदारी तथा चरित्र की शुद्धता को सुरक्षित रखते हैं। पर इन भटियारखानों में पहुंचकर वे भी एकदम चौपट हो जाते हैं। मकानों के किराये से अपनी थैलियां भरने वालों, छोटे जमींदारों और खुले गांवों को देखकर छिः छिः करने का अभिजात-वर्गीय रक्त-शोषकों में, जाहिर है, बड़ा चलन है । पर वे अच्छी तरह जानते हैं कि उनके "बन्द गांव" और "नुमायशी गांव" खुले गांवों के जन्म स्थान है, और वे उनके बिना कायम नहीं रह सकते। "यदि छोटे मालिक न होते , तो ... अधिकतर मजदूरों को, जिन फ़ार्मों पर वे काम करते हैं, उनके पेड़ों के नीचे सोना पड़ता।" (उप. पु., पृ० १३५) “खुले" और "बन्द" गांवों की यह व्यवस्था सभी मध्यदेशीय काउण्टियों में और सारे पूर्वी इंगलैण्ड में पायी जाती है। वह मालिक . प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष ढंग से मुनाफ़ा कमाता है, जो किसी पादमी को १० शिलिंग प्रति सप्ताह पर नौकर रखता है और फिर उस गरीब मजदूर से ४ पौण्ड या ५ पौण्ड सालाना उस घर के किराये के वसूल कर लेता है, जिसकी कीमत स्वतंत्र मण्डी में २० पौण्ड भी नहीं होगी। लेकिन इस घर की कीमत जबर्दस्ती बढ़ा दी जाती है, और वह इसलिये कि उसका मालिक किसी भी समय अपने किरायेदार से यह कह सकता है कि 'या तो मेरे घर में रहो और या कहीं और जाकर नौकरी तलाश करो, और याद रखो कि मैं तुम्हें परित्र-प्रमाणपत्र भी नहीं दूंगा'.. ... मान लीजिये कि कोई मादमी थोड़ा ज्यादा कमाने के उद्देश्य से रेल की लाइन बिछाने का काम करना चाहता है या पत्थर की बान में नौकरी करना चाहता है। तब फिर वही मालिक उससे कहेगा : 'या तो जितनी मजदूरी में देता हूं, उतनी लेकर मेरे यहां काम करो और या एक हफ्ते का नोटिस देकर मेरे घर से निकल जामो; और अपना सुपर भी साथ लेते जामो, और तुम्हारे बगीचे में जो भालू लगे हुए है, उनको भी जिस भाव पर बने, बेच गलो।' पौर यदि मालिक का हित इसमें हो, तो वह (यानी कास्तकार ) काम छोड़ने की सजा के रूप में मजदूर से थोड़ा ज्यावा किराया वसूल कर सकता है।" (ग. हण्टर, उप.पु., पृ. १३२।)