पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/७६१

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७५८ पूंजीवादी उत्पादन U . बबल गया था। हम यह पहले ही बता चुके हैं कि इसके साथ-साथ खेती में काम करने वाले व्यक्तियों की कुल संख्या घट गयी। जहाँ तक बास लेत-मजदूरों का सम्बंध है, १८५१ में हर उन के मेतिहर मजदूरों और मजदरिनों की कुल संख्या १२,४१,३६६ वी और १८६१ में वह घटकर ११,६३,२१७ रह गयी थी। इसलिये, अंग्रेस रजिस्ट्रार जनरल ने कही कहा है कि १८०१ के बाद से काश्तकारों और नेत-मजदूरों की संख्या में जो वृद्धि हुई है, वह खेती की उपज की वृद्धि के अनुपात में कुछ भी नहीं है; परन्तु यह व्यनुपात एकदम अन्तिम काल में प्रषिक देखने में पाया, जब कितिहर जन-संख्या में गेस कमी होने के साथ-साथ खेती का रकबा बढ़ गया, पहले से अधिक गहन लेती होने लगी, समीन के साथ समाविष्ट और उसके विकास में लगी हुई पूंची का अभूतपूर्व संचय हुमा, परती की उपज में ऐसी वृद्धि हुई, जिसकी इंगलब की खेती इतिहास में दूसरी मिसाल नहीं मिलती, सामी जमाबंदियां फूलकर गुवारा हो गयीं और पूंजीवापी कास्तकारों का धन बढ़ने लगा। इसके साथ- साप यदि हम यह भी याद करें कि इस काल में मंडियों का-जैसे शहरों का-विराम विस्तार हमा और स्वतंत्र व्यापार का राज्य रहा, तो secundum artem (मडान्तिक दृष्टि से) यह सोचना अस्वाभाविक न होगा कि post tot discrimina rerum (इतने दिनों बाद प्राचिर) लेतिहर मजदूर होन्मुक्त कर देने वाली परिस्थितियों में रहने लगा होगा। लेकिन प्रोफेसर रोजर्स इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि लेत-मजदूर के १४ वीं शताबी के उत्तराई तथा १५ वीं शताब्दी के पूर्वजों की बात तो जाने दीजिये, पान के अंग्रेज लेत-मजदूर की हालत १७७० से १७५० तक के पूर्वजों तुलना में भी प्रसाधारण रूप से खराब हो गयी है, “किसान फिर कृषि-बाल बन गया है," और कृषि-वास भी ऐसा, जिसको पहले से खराब भोजन और पहले से खराब कपड़ा मिलता है। लेतिहर मजदूरों के निवास स्थानों के सम्बंध में अपनी पुगान्तरकारी रिपोर्ट में ग. भूलियन हन्टर ने कहा है: "hind" (मेत-महबूर का नाम, बो कृषि-मास प्रथा के काल से विरासत में मिला है) "का पर्चा इस प्राधार पर निर्धारित किया जाता है कि वह कम से कम कितनी रकम में जिन्दा रह सकता उसे कितनी मजदूरी और मामय मिलना चाहिये, इसका हिसाब इस मापार पर नहीं लगाया जाता कि उसकी मेहनत से कितना मुनाका हासिल किया जा सकता है। ती के हिसाब-किताब में उसे तो शून्य मान लिया जाता है" और उसके (बीवन निर्वाह के) - ... ... 'गड़रियों की संख्या १२,५१७ से बढ़कर २५,५५६ हो गयी। 'Census (जन-गणना), उप० पु०, पृ. ३६ । Rogers, उप० पु०, पृ. ६९३, पृ० १०। मि० रोजर्स उदारपंथी मत के अर्थशास्त्री पौर कोबडेन और बाइट के व्यक्तिगत मित्र है, और इसलिये यह सम्भव नहीं है कि वह laudator temporis acti (प्राचीन काल के पुजारी) हों।

  • "Public Health. Seventh Report" ('सार्वजनिक स्वास्थ्य की सातवीं रिपोर्ट'),

London, 1865, पृ. २४२ । इसलिये, ज्यों ही यह सुनायी देता है कि मजदूर पहले से कुछ ज्यादा कमा लेता है, त्यों ही अगर जमींदार अपना किराया बढ़ा देता है, या कारतकार मगर इस बहाने से कि “मजदूर की पत्नी को कुछ काम मिल गया है," उसकी मजदूरी कम कर देता है, तो कोई पाश्चर्य की बात नहीं है। (उप० पु०१)