७५६ पूंजीवादी उत्पादन वाले. जो लेख प्रकाशित करता था, उनमें इन महोदय की अक्सर पर्चा रहती थी। यह पत्र उन दिनों देश का सबसे महत्वपूर्ण उदारपंची पत्र था। उसने अपने विशेष प्रतिनिधियों को खेतिहर इलाक़ों की जांच करने के लिये भेजा। उन्होंने केवल सामान्य विवरण लिखकर या प्रांकड़े जमा करके ही सन्तोष नहीं किया, बल्कि उन्होंने मजदूरों के जिन परिवारों के बयान लिये, उनके तथा इन परिवारों के जमींदारों के नाम भी छाप दिये। निम्नलिखित सूची में विलाया गया है कि ब्लैनफोर्ड, विमबोर्न और पूल के पड़ोस में तीन गांवों में मजदूरों को कितनी मजदूरी मिलती थी। ये गांव मि. जी. बैंक्स और शेफ्टेसबरी के पर्ल की सम्पत्ति थे। पाठक देखेंगे कि बैंक्स की तरह ही अंग्रेज. धर्म-सुधारकों का यह नेता, "low church" का यह पोप भी मकान के किराये के नाम पर मजदूरों की मजदूरी का एक बड़ा हिस्सा बुर हड़प जाता था। (देखिये पृ० ७५७१) मनान सम्बंधी कानूनों के मंसूज हो जाने से इंगलैग की खेती को पाश्चर्यजनक प्रोत्साहन मिला। इस युग की विशेषताएं भी बहुत बड़े पैमाने पर पानी की निकासी का बन्दोबस्त, बांधकर खिलाने और चारे की फसलों की बनावटी खेती के नये तरीकों का प्रयोग, यांत्रिक ढंग से साब देने के उपकरणों का इस्तेमाल, चिकनी मिट्टी वाली भूमि को नये तरीके से तैयार करना, रासायनिक खादों का पहले से प्रषिक प्रयोग, भाप के इंजन और हर प्रकार की नयी मशीनों का इस्तेमाल और माम तौर पर पहले से अधिक गहन लेती। राजकीय कृषि- परिषद के अध्यक्ष मि० पुसी ने ऐलान किया है कि नयी मशीनों के इस्तेमाल से खेती का (सापेन) खर्चा लगभग पापा कम हो गया है। दूसरी मोर, धरती की असली उपन तेजी से बढ़ी। नये तरीके के लिये यह बिल्कुल बरूरी था कि फ्री एकर पहले से ज्यादा पूंजी लगायी जाये, जिसके फलस्वरूप लेतों का संकेद्रण और तेजी के साथ होने लगा। साथ ही १९४६ और १८५६ के बीच खेती के रकबे में ४,६४,११९ एकर का इचाका हो गया। इसमें पूर्वी काउष्टियों का वह बड़ा इलाका शामिल नहीं है, जहां पहले सिर्फ खरगोशों को पालने के महाते और घटिया किस्म की चरागाहें थी पर जो बाद को अनाज के शानदार खेतों में . . . , - भू-स्वामी अभिजात वर्ग ने इसके लिये राज्य के कोष से बहुत सारा धन बहुत सस्ते सूद पर उधार ले लिया, जिसे काश्तकारों को सूद की बहुत ऊंची दर के साथ प्रदा करना पड़ रहा है। जाहिर है, यह काम भू-स्वामी अभिजात वर्ग ने संसद के जरिये किया था। 'मध्य-वर्गीय काश्तकारों की संख्या में कितनी कमी मा गयी है, यह खास तौर पर जन- गणना की इस मद के प्रांकड़ों से मालूम किया जा सकता है : "काश्तकार का बेटा, पोता, भाई, भतीजा, बेटी, पोती, बहिन, भतीजी," या, एक शब्द में, उसके अपने परिवार के सदस्य, जो उसके लिये काम करते हैं। १८५१ में २,१६,८५१ व्यक्ति इस मद में माते थे, १९६१ में उनकी संख्या केवल १,७६,१५१ रह गयी। १८५१ से १८७१ तक २० एकड़ से कम के फ़ामों की संख्या में १०० से अधिक की कमी हो गयी, ५० एकड़ से ७५ एकड़ तक के कामों की संख्या ८,२५३ से ६,३७० रह गयी और १०० एकड़ से कम के बाकी सब फ्रामों का भी यही हाल हुमा। दूसरी पोर, इन्हीं बीस वर्षों में बड़े कामों की संख्या बढ़ गयी। ३०० एकड़ से ५०० एकड़ तक के फार्मों की तादाद ७,७७१ से बढ़कर ८,४२० हो गयी, ५०० एकड़ से ऊपर के फार्म २,७५५ से बढ़कर ३,९१४ और १,००० एकड़ से ऊपर के फ्राम j४९२ से बढ़कर ५८२ हो गये। . .
पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/७५९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।