पूंजीवादी संचय का सामान्य नियम ७५५ से १८ पोज १६ शिलिंग ४ पेन्स की कमी पूरी की जाती थी।' १७९५ में कमी मजदूरी के से भी कम पी, १८१४ में मजदूरी के माथे से भी ज्यादा की कमी रह जाती थी। यह बात स्वत:स्पष्ट है कि ईडन के काल में भी खेतिहर मजदूर के मॉपड़े में जो पोड़ा सा पाराम विलाई देता था, वह ऐसी परिस्थितियों में १८१४ तक गायब हो गया था। तभी से काश्तकार के पास जितनी तरह के जानवर होते हैं, उनमें से मजदूर पर-या instrumentum vocale (अमूक पौधार ) पर- सबसे ज्यादा खुल्म हो रहा है, उसे सबसे खराब भोजन मिलता है और उसके साथ सबसे अधिक पाशविक व्यवहार किया जाता है। जब तक कि “१८३० के स्विंग उपद्रवों ने हमारे सामने (अर्थात् , शासक वर्गों के सामने) मलते खलिहानों के प्रकाश में यह बात स्पष्ट नहीं कर दी कि खेतिहर इंगलैण्ड की सतह के नीचे भी वैसी ही गरीबी और वैसा ही भयानक, विद्रोही असंतोष सुलग रहे हैं, जैसे प्रौद्योगिक इंगलेन की सतह के नीचे सुलग रहे है"', तब तक चुपचाप यही हालत चलती रही। इसी समय संग्लर ने हाउस माफ कामन्स में बोलते हुए खेतिहर मजदूरों को "सफेद चमड़ी वाले गुलामों" ("white slaves") का नाम दिया था, और एक विशप ने यही नाम हाउस माफ़. लाईस में बोहराया था। उस काल के सबसे उल्लेखनीय प्रशास्त्री, ई. जी. बेकशील ने लिखा है: "दक्षिणी इंगलब का किसान ... न तो स्वतंत्र मनुष्य है और न ही वास है; वह मुहताज है। अनाज सम्बंधी कानूनों के मंसूज होने के ठीक पहले जो जमाना पाया, उसने तिहर मजदूरों की हालत पर नयी रोशनी गली। एक पोर तो मध्य वर्गीय प्रचारकों का हित यह प्रमाणित करने में था कि अनाज सम्बंधी कानूनों से उन लोगों की बहुत कम रक्षा हुई है, जो सचमुच अनाज पैदा करते हैं। दूसरी ओर, भूस्वामी प्रमिजात वर्ग फ्रेक्टरी-व्यवस्था की वो तीव निन्दा कर रहा था और ये सर्वथा भ्रष्ट, हृदयहीन और कुलीन कहलाने वाले प्रावारा लोग कारखानों में काम करने वाले मजदूरों के साथ जो दिखावटी सहानुभूति प्रकट कर रहे तवा फैक्टरी-कानून बनवाने के लिये जिस "कूटनीतिक उत्साह" का प्रदर्शन कर रहे थे, उसे देख-मेलकर प्रौद्योगिक पूंजीपति-वर्ग कोष से मागबबूला हो रहा था। अंग्रेजी की एक पुरानी कहावत है कि “जब चोरों में खटपट हो जाती है, तब भले लोगों की बन पाती है।" और सचमुच, इस प्रश्न को लेकर कि शासक वर्ग के इन दो गुटों में से कौनसा मजदूरों का अधिक लज्जाजनक ढंग से शोषण करता है, उनके बीच जो सगड़ा मि गया था और जिसके सिलसिले में इतना शोर मचाया जा रहा था और इतना तैश दिलाया जा रहा था, उससे बोनों की असलियत सामने मा गयी थी। कंपटरियों के खिलाफ अभिजात-वर्गीय लोकोपकारियों के इस प्रान्दोलन के प्रधान सेनापति शेषटेसबरी के पलं बे, बो लाई ऐशले भी कहलाते थे। चुनाचे १८४५ में "Morning Chronicle* खेतिहर मजदूरों की दशा पर प्रकाश गलने . . 1 Parry, उप. पु., पृ. ८६ । 'उप० पु., पृ० २१३ ॥ 'S. Laing, उप० पु०, पृ० ६२ । • "England and America" ("इंगलैण्ड और अमरीका'), London, 1833, बण्ड १, पृ. ७॥ 48
पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/७५८
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।