पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/७४२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पूंजीवादी संचय का सामान्य नियम ७३९ . रहते हैं, तब तक वे उनसे जितना बसून कर सकते हैं, करते हैं और अपने उत्तराधिकारियों के वास्ते कम से कम उनके पास छोड़ते हैं।"1 किराया हातेवार बसूला जाता है, इसलिये इन भा पुरुषों को इसका कोई खतरा नहीं रहता कि उसका किराया मारा जायेगा। शहर में रेल की लाइनें बिछ जाने के कारण लन्दन के पूर्वी भाग में हाल में "यह दृश्य देखने में पाया है कि शनिवार की रात को बहुत से परिवार अपने इने-गिने सामान की पोटली सिर पर रखे हुए घर-उपर धूम रहे हैं और सिवाय मुहताबजाने के और कोई स्थान उनके सिर छिपाने के लिये नहीं है।" मुहतागवानों में पहले से ही भीड़ लगी हुई है, और संसब जिन "सुधारों" की अनुमति दे चुकी है, वे सभी प्रारम्भ ही हुए हैं। यदि मजदूरों के पुराने घर गिरा दिये जाते हैं, तो अपने पुराने मुहल्लों को छोड़ते नहीं, स्यावा से ज्यावा वे उसकी सीमा पर जाकर बस जाते हैं और यथासम्भव उसके नवदीक ही रहते हैं। "जाहिर है कि वे अपने कारखानों के प्यादा से ज्यादा नदीक रहने की कोशिश करते हैं। एक मुहल्ले के रहने वाले उस मुहल्ले के या अधिक से अधिक प्रगले मुहल्ले के मागे नहीं पाते और दो कमरों के बजाय एक-एक कमरे में ही रहना शुरू कर देते हैं, और यहां तक कि एक कमरे में भी काफी सारे लोग रहने लगते है विस्थापित लोगों को पहले से ज्यादा किराया देने पर भी वैसा घर नहीं मिलता, जैसा कि मामूली सा घर छोड़ पाये हैं . स्ट्रेस के ... पाचे मजदूरों को काम पर जाने के लिये दो-दो मील पैदल चलना पड़ता है। यही स्ट्रेस लन्दन की एक मुख्य पर बड़ी सड़क है, जिसको देखकर पागन्तुक लन्दन की समृद्धि से सहज ही प्रभावित हो जाता है। पर वह इस बात का भी एक अच्छा उदाहरण है कि इस शहर में इनसानों को कैसे ठसाठस भर दिया गया है। स्वास्थ्य-अफसर ने हिसाब लगाया था कि इस सड़क के एक मुहल्ले में ५८१ व्यक्ति प्रति एकड़ भरे हुए हैं, हालांकि टेम्स नदी का भाषा पाट भी इस हिसाब में शामिल है। यह बात स्वत:स्पष्ट है कि सफाई का प्रत्येक ऐसा कदम, बो रहने के अयोग्य मकानों को गिराकर मजदूरों को एक मुहल्ले से भगा देता है, और लन्दन में अभी तक यही होता रहा है, उसका महब यही नतीजा होता है कि किसी और मुहल्ले में मजदूरों की पौर भी स्थावा भीड़ हो जाती है। गफ्टर हन्टर मे लिखा है: "या तो यह मिया एक बेहगी होने के नाते अपने पाप बन्द हो जायेगी और या जनता की बया (1) प्रभावपूर्ण उंग से बढ़ जायेगी और वह इस पिम्मेदारी को समलेगी-जिसे अब बिना किसी प्रतिशयोक्ति के राष्ट्रीय जिम्मेवारी कहा जा सकता है-कि जिन लोगों के पास पूंजी नहीं है और जो इस कारण पर अपने लिये प्रामय का प्रबंध नहीं कर सकते, पर जो अपने पापभातामों को फिस्तों के म में पुरस्कृत कर सकते हैं, उनके लिये पामय का प्रबंध करना समाज का काम है।" लीजिये, इस पूंजीवादी न्याय की प्रशंसा कीजिये। अब जमीन के मालिक की, मकान के मालिक की या व्यवसायी मारमी की सम्पत्ति "नगर-सुधार के लिये, -जैसे रेल की लाइन 1"Public Health, eighth report, 1866" ('सार्वजनिक स्वास्थ्य की पाठवीं रिपोर्ट, १८६६'), पृ. ९१। 'उप० पु०, पृ. ८८। 'उप. पु., पृ. ८८। 'उप. पु., पृ. ८६। 47"