७३८ पूंजीवादी उत्पादन .. भीड़ से भरे हुए ऐसे घरों के मामले में, जो इनसानों के रहने के लिये सर्वथा अनुपयुक्त है, पहला नम्बर लन्दन का है।ग. हन्टर ने लिखा है : "दो बातें बिल्कुल स्पष्ट है। एक यह कि लन्दन में लगभग बस-पस हजार व्यक्तियों को कोई २० ऐसी बड़ी-बड़ी बस्तियां हैं, जिनकी हालत इतनी खराब है कि वैसी हालत मैंने इंगलैग में और कहीं नहीं देती, और बह लगभग पूर्णतया रहने के बुरे स्थानों के कारण है। दूसरी बात यह है कि २० वर्ष पहले की तुलना में प्राव इन बस्तियों के घरों में कहीं ज्यादा भीड़ है और वे कहीं अधिक दूट-फूट गये हैं। "कोई प्रतिशयोक्ति न होगी, यदि हम यह कहें कि लन्दन और न्यूकैसल के कुछ हिस्सों में लोग नरक का जीवन बिताते हैं।" इसके अलावा, लन्दन का जितना "सुवार" होता जाता है, उसकी पुरानी सड़कें और मकान जितने नष्ट होते जाते हैं, राजधानी में कारखानों की संख्या तथा मनुष्यों की भीड़ जितनी बढ़ती जाती है मौर, अन्त में, भूमि के लगान के साथ-साथ मकानों का किराया जितना ज्यादा होता जाता है, उतना ही वहां के मजदूरवर्ग का अपेक्षाकृत साता-पीता भाग तवा छोटे दुकानदार और निम्न मध्य वर्ग के अन्य तत्व भी रहने के घरों के मामले में इसी प्रकार की नारकीय परिस्थितियों के शिकार होते जाते हैं। "किराये इतने बढ़ गये हैं कि मेहनत करने वाले बहुत कम मादमी ऐसे हैं, जो एक से ज्यादा कमरे किराये पर ले सकते हैं। लन्दन में लगभग कोई मकान ऐसा नहीं है, जिसके ऊपर कई-एक "middlemen" ('विधवइयों") का बोझा न हो। कारण कि लन्दन में समीन का नाम उसकी वार्षिक प्राय की तुलना में हमेशा बहुत ज्यादा होता है और इसलिये हर जरीवार यह सट्टा लगाता है कि कुछ समय बाद वह जमीन के लिये पूरी के नाम (jury price) बसूल करने में कामयाब हो जायेगा (अब बमीन पर खबर्दस्ती प्रषिकार कर लिया जाता है, तब बूरी उसका बाम निर्धारित करती है) या पड़ोस में कोई बड़ा कारखाना बन जाने के कारण जमीन के मूल्य में असाधारण वृद्धि हो जायेगी। इसका नतीजा यह हमा है कि "पट्टों के अन्तिम अंशों" को खरीदने का बाकायदा एक व्यापार चल पड़ा है। "मो भा लोग यह पंधा करते हैं, वे जो कुछ करते हैं, उनसे उसी की पाशा की जानी चाहिये - जब तक किरायेदार उनकी मुट्ठी में . . पीढ़ी से, . 1 उप० पु०, पृ. ८६।- इन बस्तियों के बच्चों का जिक्र करते हुए डा० हण्टर ने लिखा है : “गरीबों की धनी बस्तियों के इस युग के प्रारम्भ होने के पहले बच्चों को किस तरह पाला जाता था, यह बताने वाला प्रब कोई जिन्दा नहीं है। और बच्चों की इस मौजूदा जो ऐसी परिस्थितियों में बड़ी हो रही है, जैसी परिस्थितियां इस देश में पहले कभी नहीं देखी गयी थीं; जो माधी-पाधी रात तक हर उम्र के अधनंगे, नशे में चूर, गंदी बातें करने वाले झगड़ालू व्यक्तियों के साथ बैठी रहती है और जो इस तरह भविष्य में खतरनाक वर्गों" में अपनी गिनती कराने के लिये अभी से शिक्षा प्राप्त कर रही है,- इस पीढ़ी से भविष्य में किस प्रकार के व्यवहार की माशा की जानी चाहिये, अभी से यह बताने के लिये भविष्यवक्ता होने की मावश्यकता नहीं है।" (उप० पु०, पृ० ५६।) 'उप० पु०, पृ० ६२ ।
- "Report of the Officer of Health of St. Martins-in-the-Fields, 1865"
('सेंट मार्टिन्स-न-दि-फील्ड्स के स्वास्थ्य-अफसर की रिपोर्ट, १९६५')। .