पूंजीवादी संचय का सामान्य नियम ७३७ में होता है, और मकान किराये पर उठाकर लोगों को लूटने वाले गरीबी की खानों से जितना कम खर्च करके जितना ज्यादा मुनाफा कमाते हैं, उतने कम वर्ष से उतना ज्यादा मुनाफा पोतोसी की चांदी की खानों के मालिक भी नहीं कमा पाते थे। पूंजीवादी संचय का प्रात्म-विरोधी स्वरूप और इसलिये माम तौर पर पूंजीवादी सम्पत्ति-सम्बंधों का भी प्रात्म-विरोधी स्वरूप यहां इतने स्पष्ट रूप में सामने पा जाता है कि इस विषय की सरकारी रिपोर्ट तक "सम्पत्ति तथा उनके अधिकारों" की तीन एवं परम्परागोही मालोचनामों से भरी हुई है। उद्योग के विकास, पूंजी के संचय और शहरों के विकास तथा "सुधार" के साथ-साथ यह बुराई ऐसा भयानक रूप धारण कर लेती है कि १८४७ पोर १८६४ के बीच केवल छूत की बीमारियों के र से, जो कि "संभात लोगों" को भी नहीं छोड़ती है, संसद ने सफाई के बारे में कम से कम १० कानून बनाये और लिवरपूल, ग्लासगो प्रावि कुछ शहरों के सहमे हुए पूंजीपतियों ने अपनी नगरपालिकामों के परिये सोरवार कदम उठाये। फिर भी ग. साइमन ने अपनी १९६५ की रिपोर्ट में कहा है: “यदि मोटे तौर पर देखा जाये, तो हम कह सकते हैं कि इंगलैंड में इन बुराइयों पर कोई नियंत्रण नहीं है।" १८६४ में प्रिवी काउंसिल के भावेश पर खेतिहर मजदूरों के रहने के स्थानों की जांच की गयी, १८६५ में शहरों के ज्यादा गरीब वर्गों के रहने के घरों की जांच की गयी। ग० बूलियन हण्टर के इस प्रशंसनीय कार्य के निष्कर्ष हमें "Public Health" ("सार्वजनिक स्वास्थ्य') की सातवीं (१८६५) और पाठवीं (१८६६) रिपोर्टों में मिलते हैं। लेतिहर मजदूरों का मैं बाव को विक काँगा। शहरी मजदूरों को क्या हालत थी, इसके विषय में मैं पहले ग० साइमन की एक सामान्य टिप्पणी उद्धृत करूंगा। उन्होंने लिखा है: "यद्यपि मेरा सरकारी दृष्टिकोण केवल भौतिक बातों से ही सम्बंध रखता है, तथापि साधारण मानवता का तकाजा है कि इस बुराई के दूसरे पहलुओं को अनदेखा न किया जाये जब रहने के घरों में बहुत ज्यादा भीड़ हो जाती है, तब उसके परिणामस्वरूप अनिवार्य रूप से सारा संकोच इस बुरी तरह खतम हो जाता है, बेहों और दैहिक व्यापारों की ऐसी प्रशोभनीय गड़बड़ पैदा हो जाती है और दैहिक एवं लैंगिक नग्नता का ऐसा उद्घाटन होता है कि उसे मनुष्योचित न कहकर पाशविक कहना ज्यादा सही होगा। ऐसे घातक प्रभावों से प्रभावित होना पतन के गढ़े में गिर जाना है, और जिनपर ये प्रभाव लगातार काम करते रहते हैं, उनके लिये यह गढ़ा अधिकाधिक गहरा होता जाता है। जो बच्चे ऐसे घरों में पैदा होते हैं, वे बहुधा जन्म लेते ही इस गड़े में गिर पड़ते हैं। और यदि कोई यह चाहता है कि ऐसी परिस्थितियों में रहने वाले व्यक्ति अन्य बातों में कभी सभ्यता के उस वातावरण तक पहुंचने की चेष्टा करेंगे, जिसका मूल शारीरिक एवं नैतिक स्वच्छता है, तो उसके मन की इच्छा हरगिज-हरगिन पूरी नहीं हो पायेगी।" . . , . . . 1"श्रमजीवी वर्ग के रहने के स्थानों के सम्बन्ध में जैसे ऐलानिया ढंग से और जितनी बेशर्मी के साथ सम्पत्ति के अधिकारों की वेदी पर व्यक्तियों के अधिकारों का बलिदान किया गया है, वैसा अन्यत्र कहीं नहीं हुमा। हर बड़े शहर को नर-बलि देने का स्थान समझा जा सकता है, जहां लोभ के देवता की भेंट के रूप में हजारों को साल भाग में जलना पड़ता है।" (S. Laing, उप० पु०, पृ० १५०।)
- " Public Health, eighth report, 1866" ('arcofara father of 910ff
रिपोर्ट, १९६६'), पृ. १४, नोट । 47-45 .