७२६ पूंजीवादी उत्पादन अनुभाग ५ -पूंजीवादी संचय के सामान्य नियम के उदाहरण (क) इंगलैण में १५४६ से १८६६ तक पूंजीवादी संचय का अध्ययन करने के लिये माधुनिक समाज का और कोई काल इतना उपयोगी नहीं है, जितना पिछले २० वर्ष का काल है। लगता है, जैसे इस काल को कहीं पर फोरजुनेटस की पैली पड़ी हुई मिल गयी थी। लेकिन अन्य सब देशों की अपेक्षा सब से अच्छा उदाहरण फिर इंगलैग में ही मिलता है। वह इसलिये कि दुनिया की मण्डी में उसका सर्वप्रमुख स्थान है। वही एक ऐसा देश है, जहां पूंजीवादी उत्पावन का पूर्ण विकास हुआ है, और अन्तिम कारण यह कि १८४६ से वहां स्वतंत्र व्यापार का स्वर्ण-युग कायम हो गया है, जिसके फलस्वरूप प्रामाणिक प्रशास्त्र का पाखिरी सहारा भी दूट गया है। इंगलैण्ड में उत्पावन ने जो प्रचण प्रगति की है, और उसमें भी इन बीस वर्षों के काल का उत्तरार्ष पूर्वार्ष से जिस तरह बहुत मागे निकल गया है, उसकी भोर भाग ४ में पर्याप्त संकेत किया जा चुका है। यद्यपि पिछले पचास वर्षों में इंगलड की जनसंख्या में बहुत बड़ी निरपेक्ष वृद्धि हुई है। तवापि उसकी सापेक्ष वृद्धि, या वृद्धि की दर, लगातार कम होती गयी है, जैसा कि जन- गणना से ली गयी निम्न तालिका से स्पष्ट हो जाता है: . इंगलैण और वेल्स की जनसंख्या में हर वर्ष की प्रोसत प्रतिशत वृद्धि (बशकों के अनुसार) १८११-१८२१ १.५३३ प्रतिशत १८२१-१८३१ १.४४६ १८३१-१०४१ १.३२६ १८४१-१८५१ १.२१६ १८५१-१९६१ 91 दूसरी पोर, यह देखिये कि धन में कितनी वृद्धि हुई है। यहां हमारी जानकारी का सबसे पाका प्राचार है उन मुनाफ़ों, खमीन के लगान प्रादि का उतार-चढ़ाव, जिसपर पाय-कर लगता है। इंगलैग में जिन मुनाफों पर माय-कर लगता है (इनमें काश्तकारों और कुछ अन्य लोगों के मुनाफे शामिल नहीं हैं), उनमें १८५३ और १८६४ के बीच ५०.४७ प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, जिसका वार्षिक पासत ४.५८ प्रतिशत बैठता है। इसी काल में जनसंख्या की वृद्धि १२ प्रतिशत रही है। जमीन के जिस लगान या किराये पर कर लगता है (जिसमें मकानों, रेलों, सानों, मीन-क्षेत्रों मादि का लगान और किराया भी शामिल है), उसमें १८५३ से १९६४ 1 "Tenth Report of the Commissioners of H. M. Inland Revenue" ('महामहिम सम्राट के कमिश्नरों की दसवीं रिपोर्ट। अन्तर्देशीय प्राय'), London, 1866, पृ. ३८।
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