पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/७१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६८ पूंजीवादी उत्पादन में गुणात्मक दृष्टि से कपड़े के बराबर हो जाता है, बल्कि कोट की एक निश्चित मात्रा (१ कोट) कपड़े की एक निश्चित मात्रा (२० गज) का सम-मूल्य बन जाती है। २० गज कपड़ा १ कोट या २० गज कपड़े की क्रीमत है एक कोट, इस समीकरण का मतलब यह है कि दोनों में मूल्य-तत्त्व (जमे हुए श्रम) की एक सी मात्रा निहित है, अर्थात् बोनों मालों में श्रम को बराबर मात्रा अथवा बराबर श्रम-काल खर्च हुमा है। लेकिन बुनाई या सिलाई के श्रम की उत्पादकता में पाने वाले प्रत्येक परिवर्तन के साथ २० गज कपड़े या १कोट के उत्पादन के लिये प्रावश्यक श्रम-काल बदलता रहता है। जब हमें इसपर विचार करना है कि ऐसे परिवर्तनों का मूल्य की सापेन अभिव्यंजना के परिमाणात्मक पहलू पर क्या प्रभाव . . क १) मान लीजिये कि कोट का मूल्य स्थिर रहता है, मगर कपड़े का मूल्य बदल जाता है। जैसे कि यदि सन पैदा करने वाली परती की उर्वरता नष्ट हो जाये और उसके परिणामस्वरूप सन के बने कपड़े के उत्पादन के लिये प्रावश्यक प्रम-काल दुगना हो जाये, तो उस कपड़े का मूल्य भी दुगना हो जायेगा। तब इस समीकरण के बजाय कि २० गज कपड़ा- १ कोट, यह समीकरण होगा कि २० गत कपड़ा = २ कोट, क्योंकि २० गज कपड़े में अब जितना धम-काल निहित होगा, १ कोट में उसका महज पाषा होगा। दूसरी तरफ़, यदि मान लीजिये कि उन्नत ढंग के करयों के परिणामस्वरूप यह श्रम-काल पाषा रह जाये, तो कपड़े का मूल्य भी पाषा रह जायेगा। और तब यह समीकरण होगा कि २० गज कपड़ा-१/२ कोट। अतएव यदि 'ख' नामक माल का मूल्य स्थिर मान लिया जाये, तो 'क' नामक माल का सापेक्ष मूल्य - अर्थात् 'ख' नामक माल के रूप में व्यक्त किया गया उसका मूल्य के मूल्य के अनुलोम अनुपात में घटता-बढ़ता है। २) मान लीजिये कि कपड़े का मूल्य स्थिर रहता है, मगर कोट का मूल्य बदल जाता है। ऐसी परिस्थिति में, उदाहरण के लिये यदि ऊन की फसल अच्छी न होने के कारण कोट के उत्पादन के लिये प्रावश्यक श्रम-काल पहले से दुगना हो जाता है, तो इस समीकरण के बदले कि २० गब कपड़ा-१ कोट, समीकरण यह हो जायेगा कि २० गब कपड़ा - १/२ कोट । दूसरी तरक, यदि कोट का मूल्य प्रापा रह जाता है, तो समीकरण यह हो जायेगा कि २० गत कपड़ा = २ कोट। इसलिये, यदि 'क' नामक माल का मूल्य स्थिर रहता है, तो 'ख' नामक माल के रूप में व्यक्त होने वाला उसका सापेक्ष मूल्य 'ख' के मूल्य के प्रतिलोम अनुपात में घटता-बढ़ता है। यदि हम १ और २ दृष्टान्तों में दिये हुए अलग-अलग उदाहरणों का मुकाबला करें, हम देखेंगे कि सापेक्ष मूल्य के परिमाण में सर्वपा विरोधी कारणों से एक सा परिवर्तन हो सकता है। इस प्रकार, जब २० गत कपड़ा-१ कोट का समीकरण २० गड कपड़ा-२ कोट में बदलता है, तो उसके दो कारण हो सकते हैं-या तो यह कि कपड़े का मूल्य पहले से दुगना हो गया है, पौर या यह कि कोट का मूल्य पहले से भाषा रह गया है। और अब वही समीकरण २० गव कपड़ा - १/२ कोट का रूप लेता है, तब उसके भी दो कारण हो सकते हैं-या तो यह कि कपड़े 1 . इसके पहले के पृष्ठों में यदा-कदा और यहां पर भी "मूल्य" शब्द का उस मूल्य के पर्व में प्रयोग हुमा है जिसकी मात्रा निर्धारित हो चुकी है, अथवा यह कहिये कि मूल्य के परिमाण के पर्थ में उसका प्रयोग हुआ है।