माल . . में। हमें यह बतलाने के लिये कि खुद उसके मूल्य को मम ने मानव-श्रम के अपने प्रमूर्त रूप में उत्पन्न किया है, वह कहता है कि जिस हब तक कोट की वही क्रीमत है, जो कपड़े की है, और इसलिये जिस हद तक वह मूल्य है, उस हब तक वह भी उसी श्रम से बना है, जिससे कपड़ा बना है। हमें यह बतलाने के लिये कि मूल्य के म में उसकी उदात्त वास्तविकता वह नहीं है, जो उसके बकरम के शरीर की है, वह कहता है कि मूल्य की शकल कोट की है और इसलिये जिस हब तक कपड़ा मूल्य है, उस हब तक वह और कोट ऐसे हैं, जैसे मटर के दो बाने। यहां हम यह भी बता दें कि मालों की भाषा की, यहूदियों की इबरानी के मलावा, और भी बहुत सी कमोवेश सही बोलियां हैं। उदाहरण के लिये, जर्मन शब्द "Werthsein", अर्थात् "कीमत का होना Tharait IT facut "valere", "valer", "valoir" की अपेक्षा कुछ कम बोर के साथ यह विचार व्यक्त करता है कि 'क' नामक माल के साथ 'ख' नामक माल का समीकरण करना 'क' नामक माल का अपना मूल्य प्रकट करने का खास डंग है। Paris vaut bien une messel (पेरिस की कीमत इतनी खबर है कि एक बार स्त्रीष्ट-भोज की प्रार्थना में शामिल हो लिया जाये! ) इसलिये, हमारे समीकरण में मूल्य का जो सम्बंध व्यक्त किया गया है, उसके द्वारा 'ख' नामक माल का शारीरिक रूप 'क नामक माल का मूल्य-रूप बन जाता है, अपना 'ख' नामक माल का शरीर 'क' नामक माल के मूल्य के लिये दर्पण का काम करता है। मूल्य in propria persona (मूर्त मूल्य) के रूप में, अथवा उस पदार्थ के रूप में, जिसकी शकल में मानव-श्रम ने मूर्त रूप धारण किया है, 'ख' नामक माल के साथ सम्बंध स्थापित नामक माल 'ब' नामक उपयोग-मूल्य को उस तत्व में बदल गलता है, जिसमें वह अपना-खुद 'क' का मूल्य व्यक्त करता है। 'क' का मूल्य जब इस प्रकार 'ब के उपयोग-मूल्य के रूप में व्यक्त होता है, तब यह सापेक्ष मूल्य का रूप धारण कर लेता है। . (ब) सापेक्ष मूल्य का परिमाणात्मक निर्धारण . हर वह माल, जिसका हमें मूल्य व्यक्त करना होता है, एक निश्चित मात्रा की उपयोगी वस्तु होता है, जैसे १५ बुशेल अनाज या १०० पॉर कहवा। और किसी भी माल की एक खास मात्रा में मानव-श्रम की एक निश्चित मात्रा होती है। इसलिये, मूल्य-रूप को न केवल सामान्य तौर पर मूल्य को व्यक्त करना चाहिये, बल्कि उसे किसी निश्चित मात्रा के मूल्य को व्यक्त करना चाहिये। प्रतएव, 'ख' नामक माल के साथ 'क' नामक माल का-या कोट के साथ कपड़े का-पो मूल्य का सम्बंध है, उसमें कोट न सिर्फ पाम तौर पर मूल्य के रूप 1 एक ढंग से, जो बात मालों के लिये सच है, वह इनसानों के लिये भी सच है। इनसान चूंकि न तो हाथ में दर्पण लेकर इस दुनिया में पाता है और न ही फ़िलतेवादी दार्शनिक बनकर, जिसके लिये "मैं मैं है" कह देना ही पर्याप्त होता है, इसलिये इनसान अपने को पहले दूसरे इनसानों में देखकर पहचानता है। पीटर जब पहले अपने ही प्रकार के प्राणी के रूप में पौल से अपनी तुलना कर लेता है, तभी वह अपने पापको इनसान के रूप में पहचान पाता है। और तब पौल अपने समस्त पीलीय व्यक्तित्त्व को लिये हुए पीटर के लिये मनुष्य-जाति का प्रतिनिधि रूप बन जाता है। . 5.
पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/७०
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।