पूंजीवादी संचय का सामान्य नियम कर लेता है। पूंजी के विकास के साथ-साथ अधिकाधिक उपम धारण करने के बजाय इन परिस्थितियों में पराधीनता का यह सम्बंध केवल अधिक विस्तार प्राप्त कर लेता है, अर्थात् पूंजी का शोषण और शासन का क्षेत्र स्वयं पूंजी के प्राकार तथा उसकी प्रजा की संख्या के बढ़ने के - 11 . मैदेवील और क्वेजने जैसे डाक्टर। यहां तक कि १८ वीं सदी के मध्य में भी अपने काल के प्रमुख अर्थशास्त्री, पादरी मि• टुकर ने धन-देवता के क्षेत्र में टांग अड़ाने के लिये अमा- याचना की थी। बाद को, और सच पूछिये, तो जन-संख्या के इस सिद्धान्त के सामने माने के साथ-साप, प्रोटेस्टेंट पादरियों के लिये अपने जौहर दिखाने की घड़ी भा पहुंची। पेटी जन- संख्या को धन का माधार समझते थे और ऐडम स्मिथ की तरह वह भी पादरियों का विरोध करने में कभी नहीं हिचकिचाते थे। उन्होंने जो कुछ लिखा है, उससे ऐसा लगता है, जैसे उनको पहले से ही यह भन्देशा था कि पादरी लोग उनके क्षेत्र में अनाड़ियों की तरह टांग भड़ायेंगे। उन्होंने कहा है कि "धर्म सबसे अधिक उस समय फलता-फूलता है, जब पादरी लोग सबसे अधिक दबे रहते हैं, जैसा कि कभी कानून के बारे में कहा गया था कि वह उस वक्त सबसे ज्यादा पनपता है, जब वकीलों के करने के लिये कम से कम काम होता है। इसलिये, पेटी ने पादरियों को सलाह दी है कि यदि उन्होंने एक बार सदा के लिये सन्त पाल का अनुसरण न करने और ब्रह्मचर्य का कष्ट न उठाने का निश्चय कर लिया है, तो उन्हें कम कम इतना तो ज्याल करना चाहिये कि “देश में जितने पादरियों का गुजारा हो सकता है, उससे ज्यादा पादरी न पैदा हो जायें ("not to breed more Churchmen"); यानी यदि इंगलैण्ड और वेल्स में बारह हजार पादरियों के लिये स्थान है, तो पाल-पोसकर २४,००० पादरी तैयार कर देना खतरे से खाली नहीं है ( it will not be safe to breed up 24,000 ministers"), क्योंकि तब बारह हजार की जीविका का कोई प्रबंध न होगा और उनको किसी न किसी ढंग से जीविका कमाने की फ़िक पड़ जायेगी, और उसका सबसे मासान तरीका उनको यही दिखाई देगा कि जनता को यह समझाने की कोशिश करें कि जीविका कमा पाने वाले वे बारह हजार पादरी लोगों की पात्माओं में विष घोल रहे है या उनको माध्यात्मिक दृष्टि से भूबा मार रहे हैं और उनको स्वर्ग का मार्ग दिखाने के बजाय गुमराह कर रहे है" (पेटी, 'करों और अनुदानों के विषय में एक प्रबंध', London, 1667, पृ. ५७।) ऐडम स्मिथ के बारे में उनके काल के प्रोटेस्टेंट पादरियों की राय निम्नलिखित उदाहरण से स्पष्ट हो जाती है। नोरविच के विशप डा० होने ने “A Letter to A. Smith, L. L. D. On the Life, Death, ana Philosophy of his Friend, David Hume. By one of the People called Christians" ['ऐ० स्मिथ, एल. एल. सी., के नाम उनके मित्र , विड एम के जीवन , मृत्यु दर्शन के विषय में एक पत्र । ईसाई कहलाने वाले लोगों में से एक के द्वारा लिखित'] (चौथा संस्करण, Oxford, 1784) में ऐडम स्मिथ को इस बात के लिये. फटकारा है कि उन्होंने मि० स्ट्रैहेन के नाम प्रकाशित एक पत्र में "अपने मित्र विर" (अर्थात् एम) की "स्मृति को अमर बना दिया था" और दुनिया को बताया था कि किस प्रकार "मृत्युशय्या पर भी एम लुसियन की रचनाएं पढ़कर और ताश खेलकर अपना दिल बहलाया करते थे," और उन्होंने बम के बारे में यह तक लिखने की भी जुरमत की थी कि "मैंने उनके जीवन-काल में तथा उनकी मृत्यु के बाद सदा यह समझा है कि मानव-दुर्वलतामों के स्वरूप को देखते हुए जहां तक सम्भव हो सकता है, पम एक पूर्णतया बुद्धिमान एवं सदाचारी मनुष्य . - .
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