६७८ पूंजीवादी उत्पादन . पूंजी के संचय का एक और महत्वपूर्ण तत्व सामाजिक श्रम की उत्पादकता की मात्रा होती है। भम की उत्पादक शक्ति के साथ उत्पादित वस्तुओं की राशि बढ़ जाती है, जिसमें एक जास मूल्य और इसलिये एक खास परिमाण का अतिरिक्त मूल्य निहित होता है। यदि अतिरिक्त मूल्य की पर ज्यों की त्यों रहे या यदि वह गिरती भी जाये, तो जहां तक उसके गिरने की गति श्रम की उत्पादक शक्ति के बढ़ने की गति की अपेक्षा मन्द रहती है, वहां तक अतिरिक्त पैदावार की राशि बढ़ती ही जाती है। इसलिये यदि इस पैदावार का प्राय तथा अतिरिक्त पूंजी में पहले के ही अनुपात में विभाजन होता रहे, तो भी यह मुमकिन है कि पूंजीपति का उपभोग बढ़ जाये, पर संचय के कोष में कोई कमी न पाये। बल्कि यह भी सम्भव है कि उपभोग-कोष में कुछ कमी आ जाये और संचय-कोष के तुलनात्मक परिमाण में कुछ वृद्धि हो बाये और फिर भी मालों के सस्ते हो जाने के फलस्वरूप पूंजीपति को पहले के समान या उनसे भी अधिक भोग के साधन मिलते रहें। परन्तु, जैसा कि हम ऊपर देख चुके हैं, पसल मजदूरी के बढ़ते जाने पर भी श्रम की उत्पादकता के बढ़ने के साथ-साथ मजदूर पहले से सस्ता होता जाता है और इसलिये अतिरिक्त मूल्य की बर ऊपर उठती जाती है। असल मजदूरी कभी श्रम की उत्पादक शक्ति की वृद्धि के अनुपात में नहीं बढ़ती। इसलिये, अस्थिर पूंजी के रूप में पहले जितना ही मूल्य पहले से अधिक श्रम शक्ति को और इसलिये पहले से अधिक प्रम को गतिमान बना देता है। स्थिर पूंजी के रूप में पहले जितना ही मूल्य अब पहले से अधिक उत्पादन के साधनों में, अर्थात् पहले से अधिक श्रम के प्राचारों, श्रम की सामग्री और सहायक सामग्री में निहित होता है। और इसलिये स्थिर पूंजी के रूप में पहले जितना ही मूल्य प्रव उपयोग-मूल्य और मूल्य दोनों के उत्पादन के पहले से अधिक तत्वों को और इसलिये पहले से अषिक श्रम के अवशोषकों को प्रस्तुत करता है। इसलिये, यदि अतिरिक्त पूंजी का मूल्य ज्यों का त्यों रहे या यहां तक कि कुछ कम भी हो जाये, तो भी पहले से ज्यादा तेज संचय होता है। न केवलं पुनरुत्पादन का पैमाना भौतिक दृष्टि से बढ़ जाता है, बल्कि प्रतिरिक्त मूल्य के उत्पादन में अतिरिक्त पूंजी के मूल्य की अपेक्षा स्यादा तेजी के साथ वृद्धि होती है। श्रम की उत्पादक शक्ति के विकास का उस मूल पूंजी पर भी प्रभाव पड़ता है, जो पहले से उत्पादन की क्रिया में लगी हुई है। कार्यरत स्थिर पूंजी का एक भाग मशीनों प्रावि का, अर्थात् मम के ऐसे पोवारों का होता है, जो अब तक काफी लम्बा समय नहीं बीत जाता, तब तक बर्ष नहीं होते, और इसलिये उस समय तक उनका पुनरुत्पादन करना या उसी प्रकार के पौधारों के द्वारा उनका रिक्त स्थान भरना मावश्यक नहीं होता। लेकिन मम के प्राचारों का एक भाग हर साल नष्ट हो जाता है, या अपने उत्पादक कार्य की अन्तिम सीमा पर पहुंच जाता है। इसलिये, प्रति वर्ष इन पौवारों के नियतकालिक पुनरुत्पादन का या उनके रिक्त स्थान को उसी प्रकार के प्राचारों से भरने का समय मा जाता है। यदि भनके इन प्रोवारों के खर्च होने के दौरान में श्रम की उत्पादकता बढ़ जाती है (और वह विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी की प्रवाष प्रगति के साथ लगातार बढ़ती जाती है), तो अधिक कार्यक्षम और (उनकी बढ़ी हुई कार्यक्षमता को देखते हुए) अधिक सस्ती मशीने पुराने पोवारों और उपकरणों का स्थान मे लेती हैं। मम के नो प्रोबार पहले से इस्तेमाल में पा रहे हैं, उनमें जो तफसीली सुमार बराबर होते रहते हैं, उनके अलावा पुरानी पूंजी का तब अधिक उत्पारक म में पुनरुत्पादन होता है। स्थिर पूंजी के दूसरे भाग का-कच्चे माल और सहायक पदानों का-पुनरुत्पादन एक . .
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