पूंजीवादी उत्पादन २) मूल्य का सापेक्ष रूप (क) इस रूप की प्रकृति और उसका पर्व . . इसका पता लगाने के लिए कि किसी माल के मूल्य की प्राथमिक अभिव्यंजना दो मालों के मूल्य सम्बंध में कैसे छिपी रहती है, हमें सबसे पहले इस मूल्प-सम्बंध को उसके परिमाणात्मक पहलू से बिल्कुल अलग करके उसपर विचार करना चाहिए। साधारणतया उसकी उल्टी कार्य- विधि अपनायी जाती है, और मूल्य-सम्बंध को दो अलग-अलग ढंग के मालों की उन निश्चित मात्रामों के अनुपात के सिवा और कुछ नहीं समझा जाता, जिनको एक दूसरे के बराबर माना जाता है। बहुषा यह भुला दिया जाता है कि अलग-अलग वस्तुओं के परिमाणों की परिमाणात्मक तुलना केवल उसी सूरत में की जा सकती है, जब ये परिमाण एक ही इकाई के रूप में व्यक्त किये गये हों। इस प्रकार की किसी इकाई की अभिव्यंजनाओं के रूप ही ये परिमाण एक भेषी के होते हैं, और इसलिये उनको एक मापदण्ड से नापा जा सकता है।' चाहे २० गव कपड़ा= १ कोट के, या = २० कोट के, या = 'क' कोट के, अर्थात् कपड़े की किसी निश्चित मात्रा का मूल्य चाहे तो घोड़े से कोट हों और चाहे बहुत सारे कोट हों, ऐसे हर कपन का यह मतलब होता है कि मूल्य के परिमाणों के रूप में कपड़ा और कोट एक ही इकाई की अभिव्यंजनाएं हैं, एक ही किस्म की चीखें हैं। कपड़ा-कोट-समीकरण का यही मूल प्राधार है। लेकिन ये दो माल, हम इस प्रकार जिनके गुण की एकरूपता मान कर चल रहे हैं, एक सी भूमिका नहीं प्रदा करते। मूल्य केवल कपड़े का ही व्यक्त होता है। और किस तरह ? कोट का अपने सम-मूल्य के रूप में हवाला देकर, यानी ऐसी चीन के रूप में, जिसके साथ उसका विनिमय किया जा सकता है। इस पारस्परिक सम्बंध में कोट मूल्य के अस्तित्व की अवस्था है, वह मूल्य का मूर्त रूप है, क्योंकि केवल इसी तरह तो वह वही है, जो कपड़ा है। दूसरी मोर, कपड़े का जुद अपना मूल्य सामने पाता है, स्वतंत्र अभिव्यक्ति प्राप्त करता है, क्योंकि मूल्य होने के कारण ही तो उसका समान मूल्य की चीन के रूप में कोट के साथ मुकाबला किया जा सकता है या कोट के साथ उसका विनिमय किया जा सकता है। हम रसायन-विज्ञान का एक उदाहरण लें। ब्यूटीरिक अम्ल प्रोपिल फ्रामेंट से अलग पदार्य है। फिर भी वे दोनों एक से रासायनिक तत्वों से बने हैं-कार्बन (C), हाइड्रोजन (H) और प्रॉक्सिजन (O), और दोनों में इन तत्वों का अनुपात भी एक सा है-CHORI अब यदि हम ब्यूटीरिक अम्ल का प्रोपिल फ्रामेंट के साथ समीकरण करते हैं, तो इस सम्बंध में एक तो प्रोपिल फामट CH,O, . 1जिन चन्द अर्थशास्त्रियों ने मूल्य के रूप का विश्लेषण करने में दिलचस्पी दिखायी है,- और उनमें से एक एस. बेली हैं,-वे भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके हैं। एक तो इसलिए कि वे मूल्य के रूप को खुद मूल्य के साथ गड़बड़ा देते हैं, और दूसरे इसलिए कि वे व्यावहारिक पूंजीवादियों के कुप्रभाव में प्राकर इस सवाल के केवल परिमाणात्मक पहलू पर ही अपना सारा ध्यान केन्द्रित कर देते हैं। "परिमाण प्राप्त करने की क्षमता ही... मूल्य होती $1" ("Money and its vicissitudes" [ FET at sa gar-a1979 "), London, 1837, पृ० ११। लेखक S. Bailey [एस. बेली]1)
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