अतिरिक्त मूल्य का पूंजी में रूपान्तरण में में तयों के वास्तविक स्वरूप का विश्लेषण करूंगा। क्रिविमोकेटों का यह एक बड़ा गुण है कि उन्होंने अपनी “Tablean economique ('पार्षिक तालिका') में सबसे पहले वार्षिक पैदावार को उस शकल में पेश करने की कोशिश की थी, जिस शकल में वह परिचलन की प्रक्रिया में से गुजरने के बाद हमारे सामने पाती है। बाक़ी, यह बात स्वतःस्पष्ट है कि पूंजीपति-वर्ग का हित-साधन करते हुए अर्थशास्त्र ऐग्म स्मिय के इस सिद्धान्त से लाभ उठाने से नहीं चूका है कि अतिरिक्त पैदावार का जो भाग पूंजी में रूपान्तरित हो जाता है, वह सारे का सारा मजदूर-वर्ग द्वारा खर्च कर दिया जाता है। अनुभाग ३ - अतिरिक्त मूल्य का पूंजी तथा आय में विभाजन । -परिवर्जन का सिद्धान्त - पिछले अध्याय में हम अतिरिक्त मूल्य (या अतिरिक्त पैदावार) को केवल पूंजीपति के व्यक्तिगत उपभोग की पूर्ति का कोष मानकर चले थे। इस अध्याय में हम अभी तक उसको केवल संचय का कोष मानकर चले हैं। किन्तु वह न तो केवल पूंजीपति के व्यक्तिगत उपभोग की पूर्ति का कोष होता है और न केवल संचय का कोष होता है। वह तो ये दोनों काम करता है। उसके एक भाग को पूंजीपति माय के म में खर्च कर देता है। दूसरा भाग पूंजी की तरह इस्तेमाल किया जाता है, यानी दूसरे भाग का संचय हो जाता है। यदि अतिरिक्त मूल्य की कुल राशि पहले से निश्चित हो, तो इन दोनों भागों में एक जितना बड़ा होगा, दूसरा उतना ही छोटा होगा। यदि अन्य बातें ज्यों की त्यों रहती हैं, तो 1 . , पुनरुत्पादन तथा संचय की क्रियाओं का ऐडम स्मिथ ने जो वर्णन किया है, उसमें वह अपने वंजों और विशेष कर फ़िजिमोक्रेटों से न केवल जरा भी आगे नहीं बढ़ पाये है, बल्कि यहां तक कि वह कई प्रकार से उनसे पीछे ही रह गये हैं। हमारी पुस्तक के मूल पाठ में जिस भ्रांति का जिक्र किया गया है, उससे सम्बंधित एक सचमुच आश्चर्यजनक रूढ़ि ऐडम स्मिथ एक विरासत के रूप में अर्थशास्त्र के लिये छोड़ गये हैं। वह रूढ़ि यह है कि मालों का दाम मजदूरी, मुनाफे (ब्याज) और लगान से-यानी मजदूरी और अतिरिक्त मूल्य से-मिलकर बनता है। इस रूढ़ि से प्रारम्भ करते हुए, स्तोत्रं बड़े भोलेपन के साथ यह स्वीकार करता है कि "मावश्यक दाम को उसके सरलतम तत्वों में परिणत करना असम्भव है" (Storch, उप० पु०, Peter- sbourg का संस्करण, 1815, ग्रंथ २, पृ० १४१, नोट)। खूब है यह अर्थशास्त्र का विज्ञान भी, जो घोषित कर देता है कि माल को उसके सरलतम तत्वों में परिणत करना असम्भव है। तीसरी पुस्तक के सातवें भाग में इस मामले की और छानबीन की जायेगी। 'पाठक ने इस बात की पोर ध्यान दिया होगा कि शब्द "revenue" ("पाय") का दोहरे अर्थ में प्रयोग किया जाता है। एक तो जिस हद तक कि अतिरिक्त मूल्य पूंजी से पैदा होने वाला नियतकालिक फल है, उस हद तक उसे प्राय कहा जाता है; दूसरे, इस फल के उस भाग को यह नाम दिया जाता है, जिसका पूंजीपति नियतकालिक ढंग से उपभोग कर डालता है, या जो उस कोष में जुड़ जाता है, जिससे पूंजी के निजी उपभोग की पूर्ति होती है। शब्द का इस. दोहरे अर्थ में मैंने इसलिये प्रयोग किया है कि वह अंग्रेज और फ्रांसीसी अर्थशास्त्रियों की भाषा से मेल खाता है।
पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/६६६
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।