पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/६६५

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पूंजीवादी उत्पादन . - . ने ऐग्म स्मिथ को यह बात दुहराकर की है कि "पाय का वह हिस्सा, जिसके बारे में यह कहा जाता है कि वह पूंजी में जोड़ दिया जाता है, उसका उपभोग... उत्पादक मजबूर करते हैं। इस मत के अनुसार तो यह सारा अतिरिक्त मूल्य, बो पूंजी में बदल जाता है, अस्थिर पूंजी बन जाता है। असल में यह नहीं होता, बल्कि मूल पूंजी की भांति अतिरिक्त मूल्य भी स्थिर पूंजी और अस्थिर पूंजी में, उत्पादन के साधनों और मम-शक्ति में विभाजित हो जाता है। श्रम- शक्ति बह रूप है, जिसमें अस्थिर पूंची उत्पादन की प्रक्रिया के दौरान में पायी जाती है। इस प्रक्रिया में खुद मम-शक्ति का उपभोग तो पूंजीपति कर गलता है, और अपना कार्य करने के बौरान में, यानी श्रम करने के दौरान में, उत्पादन के साधनों का भम-शक्ति उपभोग कर गलती है। साथ ही, भम-शक्ति को खरीदने के लिये बी गयी मुद्रा बीवन के लिये पावश्यक वस्तुओं में बदल दी जाती है, जिनका "उत्पादक श्रम" नहीं, बल्कि "उत्पावक श्रमजीवी" उपभोग करता है। ऐग्न स्मिय बुनियादी तौर पर गलत विश्लेषण करके इस बेतुके नतीजे पर पहुंच जाते हैं कि यचपि प्रत्येक अलग-अलग पूंची स्थिर और अस्थिर भागों में बंट जाती है, तथापि पूरे समाज की पूंजी केवल अस्थिर पूंजी में परिणत हो जाती है, अर्थात् वह महब मजबूरी प्रदा करने पर खर्च की जाती है। उदाहरण के लिये, मान लीजिये कि कपड़े की किसी मिल का मालिक २,००० पौण की रकम को पूंजी में बदल देता है। उसका एक भाग वह बुनकरों को खरीदने में लगाता है और दूसरा भाग ऊनी पागा, मशीनें प्रादि खरीदने पर खर्च करता है। परन्तु वह जिन लोगों से पागा और मशीनें खरीदता है, उनको अपने माल की बिक्री से वो मुद्रा मिलती है, उसका एक भाग वे भम पर खर्च करते हैं, और इसी तरह अन्य लोग भी करते गाते हैं,-यहाँ तक कि अन्त में जाकर २,००० पोड की पूरी राम मनदूरी देने में खर्च हो जाती है, अर्थात् अन्त में उस पूरी पैदावार का, जिसका प्रतिनिधित्व २,००० पौण की वह राम करती पी, उत्पादक मजदूर उपभोग कर गलते हैं। यह स्पष्ट है कि इस मुक्ति का सारा तत्व इन शब्दों में निहित है: "पौर इसी तरह अन्य लोग भी करते जाते हैं"। ये शन हमें धोबी का कुत्ता बना देते हैं। सच पूछिये, तो ऐग्म स्मिथ नेक उसी जगह पर अपनी छानबीन बन्द कर बेते हैं, जहां कठिनाइयां पारम्भ होती है।' जब तक हम केवल वर्ष भर की कुल पैदावार के दृष्टिकोण से उसपर विचार करते हैं, तब तक पुनरुत्पावन को वार्षिक क्रिया को मासानी से समझा जा सकता है। लेकिन इस पैदावार के प्रत्येक संघटक को अलग-अलग माल के रूप में मन्दी में लाना होता है, और बस यहीं से कठिनाई प्रारम्भ हो जाती है। अलग-अलग पूंजियों और व्यक्तिगत मामदनियों की गतियां एक दूसरे को काटती हुई चलती हैं और आपस में घुल-मिल जाती हैं और सामान्य स्थान परिवर्तन में 1-समाज के धन के परिचलन में-को बाती हैं। इससे देखने वाले की पावें चकाचौंध हो जाती है, और उसे बहुत ही जटिल समस्याओं को हल करना पड़ता है। दूसरी पुस्तक के तीसरे भाग . - 'जब जान स्टुअर्ट मिल के पूर्वज इस प्रकार का विश्लेषण करते हैं, तब उसमें इतनी बुटियां होने पर भी मिल अपने 'तर्कशास्त्र' के बावजूद उसको कभी पकड़ नहीं पाते, हालांकि विज्ञान के पूंजीवादी दृष्टिकोण से भी उसमें संशोधन की भारी भावश्यकता है। एक शिष्य की रूढ़िवादिता के साथ वह सदा अपने गुरु के उलझे हुए विचारों की ही नकल करते हैं। चुनांचे उन्होंने लिखा है : “पूंजी स्वयं अन्त में जाकर पूर्णतया मजदूरी बन जाती है, और जब पैदावार की बिक्री के द्वारा उसका स्थान पर दिया जाता है, तब वह फिर मजदूरी बन जाती है।"