पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/६६४

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अतिरिक्त मूल्य का पूंजी में रूपान्तरण . . है कि संचित धन या तो वह होता है, जिसे उसके वर्तमान रूप में नष्ट कर दिये जाने से- पानी खर्च कर दिये जाने से बचा लिया जाता है, और या वह होता है, जिसको परिचलन के क्षेत्र से हटा लिया जाता है। यदि मुद्रा को परिचलन से हटा लिया जायेगा, तो पूंजी के रूप में उसके प्रात्म-विस्तार की तनिक भी सम्भावना नहीं रहेगी और मालों के रूप में धन का अपसंचय करना तक परले बर्षे की मूर्खता होगी। बहुत बड़े परिमाणों में मालों का संचय या तो उस समय होता है, जब अति-उत्पादन होने लगता है, और या उस समय होता है, जब परिचलन बीच में रुक जाता है। यह सच है कि जन-साधारण के दिमाग पर इस दृश्य का बड़ा प्रभाव पड़ता है कि एक तरफ धनिकों ने बहुत सारा सामान क्रमिक उपभोग करने के लिये जमा कर रखा है और दूसरी तरफ़ बिक्री के मालों के रिसवं स्टाक जमा किये जा रहे हैं। यह बाव बाली बीज उत्पादन की सभी प्रणालियों में होती है, और जब हम परिचलन का विश्लेषण करने बैठेंगे, तब हम एक क्षण के लिये उसपर भी विचार करेंगे। इसलिये, प्रामाणिक अर्थशास्त्र का यह दावा बिल्कुल सही है कि अनुत्पादक मजदूरों के बजाय उत्पादक मजदूरों द्वारा अतिरिक्त पैदावार का उपभोग संचय की क्रिया को एक चरित्रगत विशेषता है। लेकिन इसी बिंदु पर गलतियां भी शुरू हो जाती है। ऐग्म स्मिथ ने संचय को उत्पादक मजदूरों द्वारा अतिरिक्त पैदावार के उपभोग के सिवा कुछ और न समझने का फैशन बना दिया है। यह तो यह कहने के समान है कि अतिरिक्त मूल्य का पूंजीकरण केवल अतिरिक्त मूल्य को भम-शक्ति में बदल देना है। मिसाल के लिये, देखिये कि रिकार्गे क्या कहते हैं : "हमें यह समझ लेना चाहिये कि किसी भी देश को समस्त पैदावार खर्च कर दी जाती है। लेकिन उसका उपभोग क्या वे लोग करते हैं, को पुनरुत्पादन करते हैं, या थे, जो किसी और मूल्य का पुनरुत्पादन नहीं करते, इस बात से बहुत ही बड़ा फर्क पड़ जाता है। जब हम यह कहते हैं कि प्राय बचा ली जाती है और पूंजी में जोर दी जाती है, तब वास्तव में हमारा यह मतलब होता है कि प्राय का वह हिस्सा , जिसके बारे में यह कहा जाता है कि वह पूंजी में जोड़ दिया जाता है, उसका उपभोग अनुत्पादक मजदूरों के बजाय उत्पादक मजदूर करते हैं। यदि कोई यह समझता है कि अनुपभोग से पूंजी में वृद्धि होती है, तो इससे बड़ी गलती कोई और नहीं हो सकती। हां, उससे बड़ी गलती कोई और नहीं हो सकती, जो रिकार्गे तथा बाद के सभी प्रशास्त्रियों . कोई भिन्न उपयोग किया जाता है, जो कि उसके द्वारा पोषित श्रम के विभिन्न प्रकारों के बीच पाये जाने वाले वास्तविक भेद पर भाधारित होता है" (Malthus, उप० पु०, पृ० ३८, ३९)। 1मिसाल के लिये, बालजाक ने , जिन्होंने हर प्रकार के लोभ का बहुत ही गहरा अध्ययन किया था, बढे सूदखोर गोबसेक के बारे में लिखा है कि जब उसने मालों को बटोरना शुरू किया था, तब वह एकदम सठिया गया था। "मालों का जमा हो जाना...विनिमय का न होना... अति-उत्पादन का होना" (Th. Corbet, उप० पु. , पृ० १०४) । 'इस अर्थ में नेकर ने "objets de faste de somptuosité" की चर्चा की है, जिन

  1. # "le temps a grossi l'accumulation” ata o “les lois de propriété ont

rassemblés dans une seule classe de la société" (Oeuvres de M. Necker, Paris और Lausanne, 1789, ग्रंथ १, पृ० १९१)। • Ricardo, उप० पु०, पृ. १६३, नोट । .