कार्यानुसार मजदूरी ६२५ . . क्रियाएं बहुधा उन लोगों के द्वारा सम्पन्न होती है, जिनको दिन भर के लिये या कार्यानुसार मजदूरी पर नौकर रखा जाता है। इन लोगों की साप्ताहिक मजदूरी १२ शिलिंग के लगभग होती है, और हालांकि यह माना जा सकता है कि कार्यानुसार मजदूरी पर काम करने वाले पादमी को चूंकि प्रषिक श्रम करने की प्रेरणा मिलती रहती है, इसलिये वह साप्ताहिक मजदूरी पर काम करने वाले मादमी की अपेक्षा १ शिलिंग या २ शिलिंग ज्यादा कमा लेता होगा, परन्तु उसकी कुल ग्रामवनी का हिसाब लगाने पर पता चलता है कि साल भर में उसे जितने दिन बेकार रहना पड़ता है, उन दिनों का नुकसान इस लाम से कहीं ज्यादा होता है...इसके अलावा, माम तौर पर हम यह भी पायेंगे कि इन लोगों की मजदूरी का जीवन-निर्वाह के प्रावश्यक साधनों के दाम के साथ एक विशेष अनुपात होता है, जिसके फलस्वरूप दो बच्चों वाला मजदूर बिना वर्ष की अोर से सार्वजनिक सहायता लिये अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकता है।"1 संसद ने जो तस्य प्रकाशित किये थे, उनका हवाला देते हुए माल्यूस ने उस समय कहा था: "मैं यह स्वी- कार करता हूं कि कार्यानुसार मखदूरी की प्रथा का चलन जितना बढ़ गया है, उसे देखकर मुझे भय होता है। दिन में १२ या १४ घण्टे , या उससे भी ज्यादा देर तक सचमुच कड़ी मेहनत करते जाना किसी भी मनुष्य के लिये हानिकारक सिद्ध होगा। जिन कारखानों पर फैक्टरी-कानून लागू है, उनमें कार्यानुसार मजदूरी एक सामान्य नियम बन जाती है, क्योंकि वहां पूंजी केवल मम की तीव्रता को बढ़ाकर ही काम के दिन को प्रषिक लाभदायक बना सकती है।' जब श्रम की उत्पादकता बदल जाती है, तो पैदावार को वही प्रमात्रा पहले से भिन्न श्रम-काल का प्रतिनिधित्व करने लगती है। इसलिये कार्यानुसार मजदूरी भी घटती-बढ़ती रहती है, क्योंकि वह पहले से निश्चित एक श्रम-काल की मुद्रा के रूप में अभिव्यंजना होती है। ऊपर हमने जो उदाहरण दिया था, उसमें १२ पच्छे में २४ प्रबद तैयार हो जाते थे और १२ घन्टे की पैदावार का मूल्य ६ शिलिंग पा, मम-शक्ति का वैनिक मूल्य ३ शिलिंगपा, मम के एक पडे का नाम ३ पेन्स पा और फ्री प्रबद मखदूरी पेन्स पी। एक प्रबद में प्राधे घण्टे का श्रम समाविष्ट हो जाता था। अब यदि श्रम की उत्पादकता दुगुनी हो जाये और उसके फलस्वरूप १२ घण्टे के काम के दिन में २४ के बजाय ४८ प्रदर तैयार होने लगें और अन्य सब परिस्थितियां ज्यों की त्यों रहें, तो कार्यानुसार मजदूरी पेंस से घटकर पेनी रह जायेगी, --- 1 "A Defence of the Landowners and Farmers of Great Britain" ('fare at के जमींदारों और काश्तकारों की सफ़ाई'), London, 1814, पृ० ४,५॥
- Malthus, „Inquiry into the Nature and Progress of Rent” (HTEYST,
'लगान के स्वरूप एवं प्रगति की समीक्षा'), London, 1815। " फैक्टरियों में काम करने वाले मजदूरों का शायद ८० प्रतिशत भाग . .. उन लोगों का है, जिनको कार्यानुसार मजदूरी मिलती है।" ("Reports of Insp. of Fact., 30th April 1858" ['फैक्टरियों के इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३० अप्रैल १८५८'], पृ. ६।) 40-45