६२२ पूंजीवादी उत्पादन . . . की प्रतिक्रिया होती है, जिस प्रकार की प्रतिक्रिया का हम समयानुसार मजदूरी के सम्बंध में वर्जन कर चुके हैं। यदि कार्यानुसार मजदूरी स्थिर रहती है, तब भी काम के दिन के और लम्बा कर दिये जाने के फलस्वरूप श्रम के दाम में अनिवार्य रूप से जो गिराव पा जाता है, वह इस सब से अलग रहता है। समयानुसार मजदूरी की प्रणाली में कुछ अपवादों को छोड़कर कुछ तरह के काम के लिये सवा एक सी मजदूरी दी जाती है, पर कार्यानुसार मजदूरी की प्रणाली में हालांकि श्रम- काल का दाम पैदावार को एक निश्चित मात्रा के द्वारा मापा जाता है, फिर भी दैनिक या साप्ताहिक मजदूरी मखदूरों के व्यक्तिगत भेवों के साथ-साथ घटती-बढ़ती जायेगी। एक मजदूर एक निश्चित समय में केवल अल्पतम मात्रा में पैदावार तैयार करेगा, दूसरा पोसत मात्रा पैदा कर देगा और तीसरा पोसत से ज्यादा पैदा कर देगा। इसलिये, जहां तक मजदूरों की वास्तविक पाय का सम्बंध है, वह अलग-अलग मजदूरों की अलग-अलग निपुणता, शक्ति, क्रियाशीलता, काम में जुटने की क्षमता प्रावि के अनुसार कम या स्यावा अनेक प्रकार की हो सकती है। जाहिर है, इससे पूंजी और मजबूरी के बीच पाये जाने वाले सामान्य सम्बंधों में कोई परिवर्तन नहीं होता। एक तो पूरी वर्कशाप में अलग-अलग व्यक्तिगत भेव एक दूसरे का पलड़ा बराबर कर देते हैं और इस तरह एक निश्चित समय में वर्कशाप मौसत पैदावार तैयार कर देती है, और सब मजदूरों को मिलाकर जो मजदूरी दी जाती है, वह उद्योग की उस खास शाला की पोसत मजदूरी होती है। दूसरे, मजदूरी और अतिरिक्त मूल्य बीच का अनुपात ज्यों का त्यों रहता है, क्योंकि हर अलग-अलग मजदूर अतिरिक्त मम की जो मात्रा देता है, वह उसको मिलने वाली मजदूरी के अनुरूप होती है। परन्तु कार्यानुसार मजदूरी की प्रणाली में व्यक्तित्व के विकास की प्रषिक सम्भावना रहती है, और उससे एक पोर तो उस व्यक्तित्व का और उसके साथ-साथ मजदूरों को स्वतंत्रता, स्वाधीनता तथा प्रात्म-नियंत्रण की भावना का विकास होता है और दूसरी मोर उनके बीच प्रतियोगिता बढ़ जाती है। इसलिये कार्यानुसार मजदूरी की प्रणाली में जहां एक तरफ अलग-अलग व्यक्तियों की मजदूरी को प्रोसत मजदूरी के ऊपर उठाने की प्रवृति होती है, वहां उसमें इस पोसत को नीचे गिराने की प्रवृति भी पायी जाती है। परन्तु वहां कहीं बहुत दिनों से कार्यानुसार मजदूरी की एक खास बर परम्परा से निश्चित हो गयी है और इसलिये उसे नीचे गिराना विशेष रूप से कठिन प्रतीत - बड़ा लाभ होता है ... नौजवान बर्तन बनाने वालों को चार या पांच बरस तक कार्यानुसार मजदूरी की प्रणाली के अनुसार नौकर रखा जाता है, पर मजदूरी की दर बहुत नीची होती है। इस प्रणाली से प्रत्यक्ष रूप में ऐसे मजदूरों को इन पूरे चार-पांच वर्षों तक अत्यधिक परिश्रम करने के लिये प्रोत्साहन मिलता है ... बर्तन बनाने वालों के बुरे स्वास्थ्य का यह भी एक बड़ा कारण है।" ("Child. Empl. Com. I Rept." ['बाल-सेवायोजन पायोग की पहली रिपोर्ट'], पृ. XIII [तेरह]।) 'जब किसी धंधे में मजदूरी कार्यानुसार दी जाती है, तो मजदूरी की मात्रा में बहुत काफ़ी फ़र्क हो सकता है लेकिन यहां दिन के हिसाब से काम लिया जाता है, वहां प्राम तौर पर एक सी दर होती है . . . जिसे मालिक और नौकर दोनों उस धंधे में काम करने वाले साधारण मजदूरों की मजदूरी का मानदण्ड मानते है।" (Dunning, उप. पु०, पृ. १७।) 1 " --
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