पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/६२३

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६२० पूंजीवादी उत्पादन उसी रूप में उसकी उजरत दी जाती है, जो मालों की एक खास प्रमात्रा में निहित होता है। यह बास प्रमात्रा अनुभव के द्वारा पहले ही सेतै हो जाती है। इसलिये, लन्दन के बर्षियों की अपेक्षाकृत बड़ी वर्कशापों में कोई खास कार्य- उदाहरण के लिये, एक वासकट- एक घन्टा या पाषा घण्टा कहलाता है, और एक घन्टे की मजदूरी ६ पेन्स होती है। प्रयास से यह मालूम हो जाता है कि एक घण्टे की मौसत परावार कितनी होती है। नये कंशन का या मरम्मत पादि का काम होता है, तो मालिक और मजदूर के बीच में इस प्रश्न को लेकर मगड़ा शुरू हो जाता है कि अमुक विशिष्ट कार्य एक घण्टे के बराबर है या नहीं, और जब तक यह प्रश्न भी अनुभव के आधार पर से नहीं हो जाता, तब तक यह मगड़ा चलता ही रहता है। लन्दन की फर्नीचर बनाने वाली बर्कशापों मादि में भी यही बीच होती है। यदि मजबूर में प्रोसत वर्षे की योग्यता नहीं होती और यदि इसके फलस्वरूप वह प्रति दिन एक निश्चित अल्पतम मात्रा में काम नहीं कर पाता, तो उसे काम से बर्खास्त कर दिया जाता है।' यहां काम के स्तर पर और उसकी तीवता पर चूंकि खुब मजबूरी के म का नियंत्रण लगा रहता है, इसलिये मम पर निगाह रखने के कार्य का अधिकांश अनावश्यक हो जाता है। इसलिये कार्यानुसार मजदूरी उस मानिक “घरेलू भम" की नीव गाल देती है, जिसका ऊपर वर्णन किया जा चुका है, और साथ ही एक पद-सोपान के अनुसार संगठित शोषण और उत्पीड़न की व्यवस्था कायम कर देती है। इस व्यवस्था के दो बुनियादी म होते हैं। कार्यानुसार मजदूरी से एक तरफ तो पूंजीपति और मजदूरी पर काम करने वाले मजदूर के बीच कुछ परजीवियों को गल देने और "श्रम के शिकमी" बना देने ("sub-letting of labour") में सहायता मिलती है। पूंजीपति मम का जो नाम देता है और इस बाम का जो हिस्सा सचमुच मजबूर तक पहुंचने दिया जाता है, उनके बीच के अन्तर से ही इन शिकमियों का पूरा मुनाफ़ा निकलता है। इंगलैड में यह व्यवस्था "Sweating system" ("प्रस्वेदन-प्रणाली") कहलाती है, को बड़ा प्रर्षपूर्ण नाम है। दूसरी तरफ, कार्यानुसार मजदूरी से पूंजीपति को मजदूरों के मेट के साथ की मदद के हिसाब से मजदूरी का करार करने का मौका मिल जाता है। हस्तनिर्माण में यह मेट मखदूरों के किसी बल का मुखिया होता है, कोपला-सानों में वह कोयला सोदने बाला होता है और फ्रेटरी में यह करार र मशीन पर काम करने वाले मजदूर के साप हो 1" उसको (कताई करने वाले को) कपास की निश्चित मात्रा सौंप दी जाती है, और उसे एक निश्चित समय के भीतर उसके एवज में एक निश्चित वजन और एक निश्चित दर्जे की बारीकी का सूत या लच्छी तैयार करके देनी पड़ती है। उसके बदले में उसे फ्री पौण्ड के हिसाब से कुछ रकम मिल जाती है। यदि उसके काम में कोई दोष नपर माता है, तो उसका खमियाजा मजदूर को भुगतना पड़ता है। यदि पैदावार मात्रा में एक निश्चित समय के लिये निर्धारित अल्पतम मात्रा से कम होती है, तो कताई करने वाले को बर्खास्त कर दिया जाता है और कोई अधिक योग्य मजदूर रख लिया जाता है।" (Ure, उप० पु०, पृ. ३१७।) 'जब काम कई हाथों से गुजरता है, जिनमें से हर हाप मुनाफे में हिस्सा बंटाता है, मगर काम केवल पाविरी हाप करता है, तब मारिन के पास जो मजदूरी पहुंचती है, वह अनुपात में बहुत ही कम रह पाती है।" ("Child. Emp. Com. II Report" [ 'बाल- सेवायोजन प्रायोग की दूसरी रिपोर्ट'], पृ. Lxx [सत्तर], अंक ४२४।) -