कार्यानुसार मजदूरी ६१६ . - तीव्रता और निपुणता के साथ काम करता है और वो इसलिये किसी वस्तु के उत्पादन में केवल सामाणिक दृष्टि से मावश्यक श्रम लगाता है, वह १२ घण्टे में २४ प्रबद तैयार करता है, जो या तो अलग-अलग वस्तुएं होते हैं और या किसी एक सतत इकाई के मापे जाने लायक अंश होते हैं। इन २४ प्रवद का मूल्य उनमें निहित स्थिर पूंजी के अंश को घटा देने के बाद ६ शिलिंग होता है और एक प्रवन का मूल्य ३ पेन्स बैठता है। मजबूर को हर प्रदव के लिये पेन्स मिलते हैं, और इस तरह वह १२ घण्टे में ३ शिलिंग कमा लेता है। जिस तरह समयानुसार मजबूरी में हम चाहे यह मान लें कि मजदूर ६ घण्टे अपने लिये काम करता है और ६ घण्टे पूंजीपति के लिये, और चाहे यह मान लें कि वह हर घण्टे में पाषा घण्टा अपने लिये और भाषा घण्टा पूंजीपति के लिये काम करता है, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता, उसी तरह कार्यानुसार मजदूरी में चाहे हम यह कहें कि हर मदद की भाषी उजरत मखदूर को दे दी गयी है और भाषी नहीं दी गयी, और चाहे यह कहें कि श्रम-शक्ति का मूल्य केवल १२ प्रबद के दाम में निहित है और बाकी १२ प्रबद में अतिरिक्त मूल्य निहित है, बात एक ही रहती है। कार्यानुसार मजदूरी का रूप समयानुसार मजदूरी के रूप के समान ही प्रयुक्तिसंगत है। हमारे उदाहरण में दो प्रवद माल की कीमत उनके उत्पादन में खर्च कर दिये गये उत्पादन के सापनों का मूल्य घटा देने के बाद ६ पेंस होती है, क्योंकि वे एक घण्टे की पैदावार होते हैं। परन्तु मजदूर को उनके एवज में केवल ३ पेन्स ही मिलते हैं। कार्यानुसार मजदूरी वास्तव में मूल्य के किसी सम्बंध को स्पष्टतापूर्वक अभिव्यक्त नहीं करती। इसलिये, यहाँ माल के किसी प्रवद का मूल्य उसमें निहित प्रम-काल के द्वारा नहीं नापा जाता, बल्कि, इसके विपरीत, मजदूर ने जो श्रम-काल खर्च किया है, वह इस बात से नापा जाता है कि उसने कितने प्रदर माल तैयार किया है। समयानुसार मजदूरी में श्रम को उसकी तात्कालिक अवषि के द्वारा मापा जाता है, कार्यानुसार मजदूरी में उसे उन उत्पादित वस्तुओं की मात्रा से मापा जाता है, जिनमें बह श्रम एक निश्चित समय के भीतर समाविष्ट हो गया है।' जुब भम-काल का.वाम अन्त में इस समीकरण के द्वारा निर्धारित होता है: एक दिन के श्रम का मूल्य-अम-शक्ति का दैनिक मूल्य । इसलिये, कार्यानुसार मजदूरी केवल समयानुसार मजदूरी का ही एक परिविर्तत स्म होती है। पाइये, अब कार्यानुसार मजदूरी को चरित्रगत विशेषतामों पर घोड़ा निकट से विचार करें। यहाँ श्रम के गुणगत स्तर पर काम खुद नियंत्रण रखता है, क्योंकि कार्यानुसार पूरा वाम उसी बात मिलेगा, जब काम पोसत निपुणता का होगा। इस दृष्टि से कार्यानुसार मजदूरी बेतन में कटौती करने और पूंजीवादी बोलेबाजी में बहुत मददगार साबित होती है। कार्यानुसार मजदूरी के रूप में पूंजीपति को श्रम की तीव्रता की एक अचूक माप मिल जाती है। केवल वही भम-काल सामाजिक दृष्टि से भावश्यक प्रम-काल माना जाता है और . - 1 "Le salaire peut se mesurer de deux manières: ou sur la durée du travail, ou sur son produit" ("मजदूरी को दो.तरह से मापा जा सकता है : या तो श्रम की अवधि के द्वारा पौर या श्रम की पैदावार के द्वारा") ("Abrége elementaire des prin. cipes de "Economie Politique", Paris, 1796, पृ०.३२)। इस गुमनाम रचना के लेखक है जी० गार्नियर।
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