६१४ पूंजीवादी उत्पादन 1 नहीं होती, तो उसके फलस्वरूप श्रम का दाम कम हो जायेगा। लेकिन जिन बातों के कारण पूंजीपति काम के दिन को. लम्बा करने में सफल होता है, वे ही बातें पहले उसे इस बात की इजाजत देती है और अन्त में फिर उसको इसके लिये विवश कर देती है कि वह मन के बाम को नाम मात्र के लिये उस समय तक कम करता चला जाये, जब तक कि घण्टों की पहले से बढ़ी हुई संख्या का कुल बाम और इसलिये दैनिक प्रयवा साप्ताहिक मजदूरी भी कम न हो जाये। यहां दो बातों का हवाला देना कानी होगा। यदि एक मादमी १ या २ भादमियों का काम करने लगता है, तो मम की पूर्ति बढ़ जाती है, हालांकि मण्डी में श्रम- शक्ति की पूर्ति ज्यों की त्यों बनी रहती है। इस प्रकार मजदूरों के बीच जो प्रतियोगिता प्रारम्भ हो जाती है, उससे पूंजीपति को श्रम के बाम को खबर्दस्ती नीचे गिराने और, दूसरी मोर, श्रम के दाम के गिर जाने से काम के समय को और भी बढ़ाने का अवसर मिल जाता है। किन्तु शीघ्र ही असामान्य मात्रामों में, अर्थात् प्रोसत सामाजिक मात्रा से अधिक मात्रामों में, प्रवेतन श्रम से काम लेने के इस अधिकार का यह फल होता है कि खुद पूंजीपतियों के बीच भी प्रतियोगिता छिड़ जाती है। माल के नाम का एक भाग मम के दाम का होता है। श्रम के दाम के प्रवेतन हिस्से को माल के दाम में गिनने की जरूरत नहीं होती। वह खरीदार को मुफ्त भेंट किया जा सकता है। यह पहला कदम है, जो प्रतियोगिता के कारण उनया जाता है। प्रतियोगिता के अनिवार्य फल के रूप में दूसरा कदम यह उठाया जाता है कि काम के दिन का विस्तार करने से जो असामान्य प्रतिरिक्त मूल्य पैदा होता है, उसका भी कम से कम एक हिस्सा माल की बिक्री के दाम से अलग कर दिया जाता है। इस तरह माल असामान्य रूप से कम दाम पर बिकने लगता है। शुरू में इक्के-चुपके यह बात होती है, फिर यह एक स्थायी चीज बन जाती है। माल की विक्री का यह गिरा हुमा दाम भविष्य के लिये बहुत ही कम मजदूरी देकर प्रत्यधिक समय तक काम लेने का एक स्थायी भाषार बन जाता है, हालांकि शुरू में बह ठीक इन्हीं बातों से पैदा हुमा था। इस पूरी क्रिया की भोर यहाँ पर हमने संकेत भर किया है, क्योंकि प्रतियोगिता का विश्लेषण हमारे विषय के वर्तमान भाग का अंश नहीं है। फिर भी एक क्षण के लिये हम पूंजीपति को खुद अपनी बात कहने का अवसर देंगे। “विभिधम में मालिकों के बीच ऐसी भयानक प्रतियोगिता चल रही है कि उनमें से बहुतों को मालिकों के रूप में ऐसी-ऐसी हरकतें करनी पड़ती हैं, जिनको किसी दूसरी स्थिति में करते हुए उनको शर्म पाती। और फिर भी वे कुछ ज्यादा पैसा नहीं कमा पाते (and yet no more money मिसाल के लिये , यदि कोई मजदूर प्रचलित लम्बे घण्टों तक काम करने से इनकार कर दे, तो "शीघ्र ही उसके स्थान पर ऐसा भादमी नौकर रख लिया जायेगा, जो कितनी भी देर तक काम करने को तैयार होगा, और इस तरह पहले प्रादमी को नौकरी से जवाब मिल जायेगा।" ("Reports of Inspectors of Fact. 30th April, 1848" ['फैक्टरी-इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३० अप्रैल, १८४८], गवाहियां, पृ० ३६, अंक ५८1) “यदि एक मादमी दो भाद- मियों का काम करने लगता है, तो... श्रम की अतिरिक्त पूर्ति के कारण श्रम का वाम घट पाने के फलस्वरूप... मुनाफ़ों की दर सामान्यतया ऊंची हो जायेगी।" (Senior, उप० पु., पृ. १५) , .
पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/६१७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।