पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/६१

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पूंजीवादी उत्पादन . . में उसे प्रकृति की शक्तियों से बराबर मवर मिलती रहती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि अकेला बम ही भौतिक सम्पत्ति का, अषवा मम के पैदा किये हुए उपयोग-मूल्यों का एकमात्र मोत नहीं है। जैसा कि विलियम पेटी ने कहा है, मम उसका बाप है और पन्नी उसकी मां है। माइये, अब उपयोग- मूल्य के रूप में माल पर विचार करना बन करके मालों के मूल्य पर विचार करें। हम यह मानकर चल रहे हैं कि कोट की कीमत कपड़े की दुगनी है। लेकिन यह महब एक परिमाणात्मक अन्तर है, जिससे फिलहाल हमारा सम्बंध नहीं है। किन्तु हम यह याद रखते हैं कि यदि कोट का मूल्य १० गव कपड़े के मूल्य का दुगना है, तो २० गव कपड़े का अवश्य वही मूल्य होना चाहिए, जो एक कोट का है। जहां तक कोट और कपड़ा दोनों मूल्य है, वहां तक समान तत्व की पीयें है, मूलतया समान भम के बोबस्तुगत प हैं। लेकिन सिलाई और बुनाई गुणात्मक दृष्टि से दो अलग-अलग ढंग के मम है। किन्तु कुछ ऐसी समाज-व्यवस्थाएं भी होती है, जिनमें एक ही पावमी सिलाई और बुनाई का काम बारी-बारी से करता है। इस सूरत में मम के ये दो म एक ही व्यक्ति के मन के दो स्वम मात्र होते हैं और वे अलग-अलग व्यक्तियों के अलग और निश्चित काम नहीं होते। यह उसी तरह की बात है, जैसे हमारा बी यदि एक रोख कोट बनाता है और दूसरे रोख पतलून, तो उससे महज एक ही व्यक्ति के भम का परिवर्तित स्वल्प हमारे सामने पाता है। इसके अलावा, एक ही नबर में हमको यह भी मालूम हो पाता है कि हमारे पूंजीवादी समाज में मानव-श्रम का एक निश्चित भाग घटती-बढ़ती मांग के अनुसार कमी सिलाई के रूप में इस्तेमाल होता है और कभी बुनाई के रूप में। यह परिवर्तन सम्भवतया बिना संघर्ष के नहीं होता, मगर उसका होना बरी है। यदि हम उत्पादक किया के विशेष रूम की मोर, अर्थात् मम के उपयोगी स्वल्म की मोर, ध्यान न दें, तो उत्पादक किया मानव-श्रम-शक्ति को सर्च करने के सिवा और कुछ नहीं है। सिलाई और बुनाई गुणात्मक दृष्टि से अलग-अलग रंग की उत्पादक किया है, फिर भी उन दोनों में मानव मस्तिष्क, स्नायुओं और मांस-पेशियों का उत्पादक ढंग से खर्च होता है, और इस पर्व में दोनों मानव-श्रम है। मानव-यम-शक्ति को सर्च करने की महब दो भिन्न पत्तियां हैं। भम-शक्ति अपने तमाम स्वरूपों में एक सी रहती है। पर वाहिर है कि इसके पहले कि वह अलग-अलग रंग की बहुत सी पत्तियों में वर्ष की बाये, उसका विकास के एक निश्चित स्तर पर पहुंचना बनी है। लेकिन किसी भी माल का मूल्य प्रमूर्त मानव-वन का, अर्थात् सामान्य मसे मानव-मन के पर्व का प्रतिनिधित्व करता है। और जिस प्रकार समाज में एक सेनापति अपना एक साहूकार की भूमिका तो महान होती है, लेकिन उसके मुकाबले में मामूली पावनी की . . . मूल्य, हालांकि क्रिषियोक्रेट्स के मत का बण्डन करते हुए बेरी ने जो यह अंश लिया है, उसमें पर उसके मन में भी यह बात पूरी तरह साफ नहीं है कि वह किस प्रकार के मूल्य की पर्चा कर रहा है) अथवा धन के पुनरुत्पादन के सम्बन्ध में भी लागू होती है, जब मनुष्य द्वारा पृथ्वी, वायु और पल को भनाज में रूपान्तरित कर दिया जाता है, या एक कीड़े के पदार साव को रेशम में, या धातु के अलग-अलग टुकड़ों को एक घड़ी में बदल दिया जाता है।"] - Pietro Verri, "Meditazioni sulla Economia Politica" (Tetit 9002 of प्रकाशित), Custodi के इटली के प्रशास्त्रियों के संस्करण-Parte Moderna-का १५ वा भाग, पृष्ठ २२॥