श्रम-शक्ति के मूल्य (पौर क्रमशः दाम) का मजदूरी में रूपान्तरण ६०३ बाबार-भावों के उतार-चढ़ावों पर विचार किया जाता है, तब पता चलता है कि वे एक दूसरे का असर बराबर कर देते हैं और इस तरह एक मध्यक पोसत मात्रा बच रहती है, जो अपेक्षाकृत कम से एक स्थिर मात्रा होती है। इस मात्रा में एक दूसरे की पति-पूर्ति करने वाले जो परिवर्तन पाते रहते हैं, स्वभावतया उनके सिवा किसी और तत्व के द्वारा इस मात्रा को निर्धारित करना आवश्यक था। यह दाम, बो बम के प्राकस्मिक बाजार-भावों पर अन्त में हमेशा हावी हो जाता है और जिसे फ्रिविमोन्टों ने भम का "पावश्यक दाम" कहा था और ऐग्न स्मिथ ने "स्वाभाविक नाम" का नाम दिया था, वह अन्य तमाम मालों के दामों की तरह मया केस में मम के मूल्य की अभिव्यंजना के सिवा और कुछ नहीं हो सकता। प्रशास्त्र ने इस तरह श्रम के पाकस्मिक दामों की तह में पेठकर श्रम के मूल्य तक पहुंच पाने की भाषा की। अन्य मालों की तरह बम का यह मूल्य उत्पादन की लागत से निर्धारित होता था। परन्तु मजदूर के उत्पावन की-प्रर्यात् खुब मजदूर का उत्पावन अबवा पुनरुत्पादन करने को-लागत क्या होती है? अचेतन ढंग से इस प्रश्न ने प्रशास्त्र में मौलिक प्रश्न का स्थान ले लिया, क्योंकि खुद मम के उत्पादन के खर्चे की तलाश सदा एक अंध-कूप में चक्कर लगाती रही और उसके बाहर वह कभी न निकल सकी। इसलिये, प्रशास्त्री जिसे मम का मूल्य कहते हैं, वह असल में श्रम- पाक्ति का मूल्य होता है, जिसका अस्तित्व मजदूर के व्यक्तित्व में होता है। यह श्रम शक्ति अपने कार्य से, अर्थात् श्रम से, उतनी ही भिन्न होती है, जितनी मशीन, वह जो काम करती है, उससे भिन्न होती है। प्रशास्त्रियों का ध्यान चूंकि इस प्रकार के प्रश्नों पर केनित था, जैसे यह कि श्रम के बाजार-भाव और उसके तथाकषित मूल्य में क्या अन्तर होता है, इस मूल्य का मुनाफ़े की बर से पौर श्रम के साधनों द्वारा उत्पादित मालों के मूल्य से क्या सम्बंध होता है, इत्यादि, इत्यादि, इसलिये उनको यह कभी पता न चला कि अपने विश्लेषण के दौरान में न सिर्फ श्रम के बाबार-भाव से उसके तथाकषित मूल्य पर पहुंच गये हैं, बल्कि यम का यह मूल्य खुब श्रम-शक्ति के मूल्य में परिणत हो गया है। प्रामाणिक प्रर्षशास्त्र खुद अपने विश्लेषण के परिणामों के बारे में सजग न हो पाया। श्रम का मूल्य", "मम का स्वाभाविक दाम" मावि परिकल्पनामों को उसने पनि बन्द करके विचाराधीन मूल्य-सम्बंध की अन्तिम और पर्याप्त अभिव्यंजना के रूप में स्वीकार कर लिया था, और जैसा कि हम बाब को देखेंगे, इसके फलस्वरूप वह एक अचीव उलमा पौर प्रसंगतियों में फंस गया था और साथ ही प्रामाणिक प्रशास्त्रियों को, बो सिद्धान्ततः केवल विनावटी बातों की ही पूजा करते हैं, उसने उनके छिछलेपन के उपयोग के लिये एक मजबूत प्राधार दे दिया था। पाइये, अब हम यह देखें कि भम-शक्ति का मूल्य और नाम इस स्पान्तरित अवस्था में अपने को मजबूरी के म में कैसे पेश करते हैं। हम जानते हैं कि भम-शक्ति के बैनिक मूल्य का हिसाब लगाने के लिये हम मजदूर के बीवन की एक खास प्रषि मानकर चलते हैं और उसके अनुरूप काम के दिन को भी एक खास लम्बाई मान ली जाती है। मान लीजिये कि प्रचलित काम का दिन १२ घन्टे का और श्रम- शाक्ति का वैनिक मूल्य ३ शिलिंग है, वो मुद्रा केस में एक ऐसे मूल्य की अभिव्यंजना है, जिसमें ६ घरे का मम निहित है। जब मजदूर को ३ शिलिंग मिलते है, तो वह १२ घण्टे तक काम करने वाली अपनी मम-शक्ति का मूल्य पा जाता है। अब यदि एक दिन की श्रम- शापित के इस मूल्य को पुर एक दिन के मन का मूल्य मान लिया जाये, तो यह सूत्र सामने माता है कि १२ घन्टे के भन का मूल्य ३ शिलिंग है। इस प्रकार, भम-शक्ति का मूल्य बम . - .
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