श्रम-शक्ति के दाम में और अतिरिक्त मूल्य में होने वाले परिमाणात्मक परिवर्तन ५८६ मूल्य गिर सकता है। वहां कहीं मन-शक्ति के दाम में होने वाली वृद्धि से उसकी पहले से अधिक पिसाई की क्षति-पूर्ति नहीं होती, वहां सदा यही होता है। हम जानते हैं कि कुछ स्थिर अपवादों को छोड़कर भम की उत्पादकता में पाने वाली किसी भी तबदीली से अम-शक्ति के मूल्य में और इसलिये अतिरिक्त मूल्य के परिमाण में उस बात तक कोई परिवर्तन नहीं होता, जब तक कि इस तबदीली का जिन उद्योगों पर प्रभाव पड़ता है, उनमें वे बस्तुएं न तैयार होती हों, जिनको मजबूर पावतन इस्तेमाल करते हैं। लेकिन हम जिस सूरत पर विचार कर रहे हैं, उसमें यह शर्त लागू नहीं होती। कारण कि जब परिवर्तन या तो मम की अवधि में होता है और या उसकी तीवता में, तब उस श्रम से पैदा होने वाले मूल्य के परिमाण में सवा तदनुरूप परिवर्तन हो जाता है, जो उस वस्तु के स्वरूप से स्वतंत्र होता है, जिसमें यह मूल्य. निहित है। यदि भम की तीव्रता उद्योग की प्रत्येक शाला में एक साथ और समान मात्रा में बढ़ जाये, तो नयी और पहले से बढ़ी हुई. तीव्रता समाज की साधारण तीव्रता बन जायेगी, और तब उसकी मोर कोई ध्यान नहीं दिया जायेगा। परन्तु, फिर भी, ऐसा होने पर भी, अलग-अलग देशों में श्रम की तीव्रता अलग-अलग होगी और उससे अन्तरराष्ट्रीय क्षेत्र में मूल्य का नियम जिस ढंग से व्यवहार में पाता है, उसमें कुछ परिवर्तन हो जायेगा। एक देश का काम का दिन प्रषिक तीन मम का होगा, और मुद्रा की एक अपेक्षाकृत बड़ी रकम उसका प्रतिनिधित्व करेगी। दूसरे देश का काम का दिन अपेक्षाकृत कम तीन श्रम का होगा, और मुद्रा की एक अपेक्षाकृत छोटी रकम उसका प्रतिनिधित्व करेगी। . . ३. श्रम की उत्पादकता और तीव्रता स्थिर रहती हैं, काम के दिन की लम्बाई · बदलती रहती है काम का दिन दो तरह से बदल सकता है। उसको पहले से प्रषिक लम्बा या पहले से छोटा कर दिया जा सकता है। इस बात हमारे पास जो सामग्री मौजूद है, उसके माधार पर और पु० ५८३-५८४ पर हमने जो बातें पहले से मान ली है, उनकी सीमाओं के भीतर रहते हुए नीचे लिले नियन हमारे सामने पाते हैं: (१) काम के दिन की लम्बाई जितनी होती है, वह उसी के अनुपात में कम या ज्यादा मात्रा में मूल्य पैरा करता है। इस प्रकार वह मूल्य की एक स्थिर मात्रा नहीं, बल्कि अस्थिर मात्रा पैदा करता है। 1"अन्य बातों के समान रहते हुए अंग्रेज कारखानेदार एक निश्चित समय में किसी भी विदेशी कारखानेदार के मुकाबले में ज्यादा काम निकाल सकता है, जिससे यहां तक कि भिन्न- भिन्न प्रकार के काम के दिनों-जैसे इंगलैण्ड ६० घण्टे और अन्य देशों में ७२ या ८० घण्टे प्रति सप्ताह-से पैदा होनेवाला अन्तर भी पूरा हो जाता है।" ("Rep. of Insp. of Fact. for 31st Oct. 1855n.[ 'फैक्टरियों के इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १८५५'], पृ० ६५) इंगलैर के काम के घण्टे और योरप के काम के घण्टे में जो यह गुणात्मक अन्तर पाया जाता है, उसे कम करने का. सबसे अचूक तरीका यह है कि एक कानून बनाकर योरप की फैक्टरियों में काम के दिन की लम्बाई परिमाणात्मक ढंग से कम कर दी जाये। -
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