श्रम-शक्ति के दाम में और अतिरिक्त मूल्य में होने वाले परिमाणात्मक परिवर्तन ५८५ ४ घन्टे में जीवन के लिये प्रावश्यक उतनी ही वस्तुएं तैयार होने लगे, जितनी पहले ६ घण्टे में तैयार होती थी। दूसरी ओर, भम-शक्ति का मूल्य तीन शिलिंग से बढ़कर चार शिलिंग उस बात तक नहीं हो सकता, जब तक कि मम की उत्पादकता में इतनी कमी नहीं मा माती, जिससे पहले घण्टे में जीवन के लिये प्रावश्यक जितनी वस्तुएं तैयार हो जाया करती थी, उनको तैयार करने में पाठ घन्टे लगने लगे। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि अब मम की उत्पादकता में वृद्धि होती है, तब मन-शक्ति के मूल्य में गिराव पा जाता है और उसके फलस्वरूप अतिरिक्त मूल्य बढ़ जाता है। और, दूसरी ओर, बब श्रम की उत्पादकता कम हो जाती है, तब भम- शक्ति का मूल्य बढ़ जाता है और अतिरिक्त मूल्य में गिराव पा जाता है। इस नियम की स्थापना करते हुए रिकार्ग एक बात को भूल गये थे। वह यह कि यद्यपि अतिरिक्त मूल्य प्रथवा अतिरिक्त मम के परिमाण में परिवर्तन होने से भम-शक्ति के मूल्य के परिमाण में अथवा प्रावश्यक श्रम की मात्रा में उल्टी दिशा में परिवर्तन हो जाता है, परन्तु इससे यह निष्कर्ष हरगिज नहीं निकलता कि दोनों परिवर्तन एक अनुपात में होते हैं। उनमें एक ही मात्रा की घटा-पढ़ी होती है। परन्तु उनकी प्रानुपातिक वृद्धि या कमी इस बात पर निर्भर करती है कि मम की उत्पादकता में परिवर्तन होने के पहले उनके मूल परिमाण क्या थे। यदि श्रम-शक्ति का मूल्म ४ शिलिंग हो अथवा प्रावश्यक बम-काल ८ घण्टे का हो और अतिरिक्त मूल्य २ शिलिंग हो अथवा अतिरिक्त मम ४ घन्टे का हो, और अगर बम की उत्पादकता में वृद्धि हो जाने के फलस्वरूप मम-पाक्ति का मूल्य गिरकर ३ शिलिंग रह जाये या पावश्यक मम घटकर ६ घण्टे का हो जाये, तो अतिरिक्त मूल्य बढ़कर ३ शिलिंग का हो जायेगा, या यूं कहिये कि अतिरिक्त श्रम बढ़कर ६ घण्टे का हो जायेगा। परिवर्तन की मात्रा एक ही है। एक में १ शिलिंग या २ घण्टे की वृद्धि हो जाती है। दूसरे में उतनी ही कमी या जाती है। पर हर अवस्था में परिमाण का मानुपातिक परिवर्तन भिन्न है। जहां भम-शक्ति का मूल्य ४ शिलिंग से गिरफर ३ शिलिंग हो जाता है, यानी उसमें जहां या २५ प्रतिशत की कमी माती है, . w वहाँ अतिरिक्त मूल्य २ शिलिंग से बढ़कर ३ शिलिंग हो जाता है, यानी उसमें या. ५० प्रतिशत की वृद्धि हो जाती है। प्रतएव इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि बम की उत्पारकता में परिवर्तन होने पर अतिरिक्त मूल्य में जो पानुपातिक वृद्धि या कमी पाती है, वह इस बात पर निर्भर करती है कि शुरू में काम के दिन का वह हिस्सा कितना बड़ा बा, जिसने अतिरिक्त मूल्म में मूर्त समारण किया है। यह हिस्सा बितना छोटा होता है, मानुपातिक परिवर्तन उतना ही बना होता है। यह हिस्सा जितना बड़ा होता है, मानुपातिक परिवर्तनः उतनाही छोटा होता है। (२) अतिरिक्त मूल्य में दो वृद्धि या कमी माती है, वह सदा बम-शक्ति के मूल्य की सबमुल्क कमी या बुद्धि का परिणाम ही होती है, उसका कारण कमी नहीं होती।' इस तीसरे नियम में अन्य बातों के मनाया. मैक्कुलक ने यह बेतुकी बात भी मौर. घोड़ को कि पूंजीपतिको जो कर देने होते है, यदि उनको :मंसूब कर दिया जाये, तो. श्रम- भक्ति के मूल्य में किसी गिराव के बिना भी प्रतिखित मूल्य में वृद्धि हो सकती है। इस प्रकार केकरों को मंसूबर कर देने से उस प्रतिकित मूल्य की मात्रा में कोई भी परिवर्तन नहीं .माता. जिसे पूंजीपति पहली ही बार में मजदूर से विकंवल. लेता..है। उससे तो केवल वह अनुपात
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