सत्रहवां अध्याय श्रम-शक्ति के दाम में और अतिरिक्त मूल्य में होने वाले परिमाणात्मक परिवर्तन . . श्रम-शक्ति का मूल्य बीवन के लिये भावश्यक उन वस्तुओं के मूल्य से निर्धारित होता है, जिनकी प्रोसत ढंग के मजदूर को प्रादतन बरूरत होती है। किसी भी खास समाज के एक खास युग में इन मावश्यक वस्तुओं की मात्रा पहले से मालूम होती है, और इसलिये उसे हम एक स्बिर मात्रा मान सकते हैं। परिवर्तन इस मात्रा के मूल्य में होता है। इसके अलावा, दो चीजें पौर है, वो मम-शक्ति का मूल्य निर्धारित करने में भाग लेती हैं। उनमें से एक है श्रम-शक्ति का विकास करने का बर्च, जो उत्पादन की प्रणाली साब बदलता रहता है। दूसरी बीच है श्रम-शक्ति की प्राकृतिक विविषल्पता, अर्थात् पुरुषों और स्त्रियों, बच्चों और वयस्कों के बम में पाया जाने वाला भेद। उत्पादन की प्रनाली यह परी बना देती है कि विभिन्न प्रकार की श्रम-शक्तियों से काम लिया जाये, और अलग-अलग तरह की भम-शाक्तियों से काम लेने पर मजबूर के परिवार के भरण-पोषण के पर्चे में और पपरक पुरुष की मम शक्ति के मूल्य में बहुत अन्तर पड़ जाता है। लेकिन नीचे बो विश्लेषण किया गया है, उसमें इन दोनों चीजों को अलग रखकर समस्या की छानबीन की गयी है।' मैं यह मानकर चलता हूं कि (१) माल अपने मूल्य पर विकते हैं और (२) भम-शक्ति का नाम कमी-कभार उसके मूल्य के ऊपर तो उठ जाता है, पर उसके नीचे कभी नहीं गिरता। हम यह देख पुके हैं कि इन दो बातों को मान लेने के बाद अतिरित मूल्य और मम- शक्ति के नाम के सापेक्ष परिमान तीन बातों से निर्धारित होते हैं: (१) काम के दिन की लम्बाई, या मम के विस्तार का परिमाण; (२) मम की सामान्य तीवता, या उसकी तीव्रता का परिमान, पिसके फलस्वरूप एक निश्चित समय में मन की एक निश्चित मामा सर्च हो जाती है, और (३) मन की उत्पादकता, जिसके फलस्वरम मन की एक निश्चित प्रमात्रा एक निश्चित समय में पैराचार की कम या प्रषिक प्रमाणा पैदा कर सकती है, जो इस पर निर्भर करती है कि उत्पादन की परिस्थितियों का जितना विकास हो गया है। इन तीनों तत्वों में से एकतत्व स्विर है और बाकी दो तत्व बदलते रहते हैं, या दो तत्व सिर और एक बदलता रहता है पौर या तीनों एक साप बलते पाते हैं, इसके अनुसार, बाहिर है, तीनों तत्वों के बहुत तीसरे वर्णन संस्करण पाडलोटा पृ. ३०-३५ पर जिस उदाहरण पर विचार किया गया था, उसको, पाहिर है, यहां छोड़ दिया गया है।- एं . .
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