५७८ पूंजीवादी उत्पादन . बल्कि समशीतोष्ण कटिबंध है। सामाजिक प्रम-विभाजन का भौतिक मापार केवल भूमि की बरता से नहीं, बल्कि भूमि की विभिन्मता, प्राकृतिक पैदावार की विविधता और मौसमों की मदना-पवनी से तैयार होता है। और ये ही पीयें प्राकृतिक वातावरण में परिवर्तन पैरा करके मादमी को अपनी प्रावश्यकतामों, अपनी समतामों और मम करने के अपने साधनों और प्रणालियों को बढ़ाने के लिये अंकुश लगाती रहती हैं। किसी प्राकृतिक शक्ति को मनुष्य के हाथों के द्वारा समान के नियंत्रण में लाने , उसका मितव्ययिता के साथ उपयोग करने, उसको हस्तगत करने या उसको बड़े पैमाने पर अपने प्राचीन बनाने की मावश्यकता ही उद्योग के इतिहास में पहले-पहल निर्णायक भूमिका अदा करती है। इसके उदाहरण हैं मिया लोम्बार्ग और हालेज की सिंचाई की व्यवस्थाएं या हिन्दुस्तान और ईरान, वहाँ इनसान की बनापी हुई नहरों के द्वारा सिंचाई की ऐसी व्यवस्था की गयी है कि न केवल भूमि को उसके लिये नितान्त पावश्यक पानी मिल जाता है, बल्कि पहाड़ों से लापी हुई तलछट के रूप में उसको सनिज बाद भी प्राप्त हो जाती है। परवों के राज्य में स्पेन और सिसिली में यदि उद्योग इतना फल-फूल रहा था, तो इसका रहस्य परवों की सिंचाई की व्यवस्था में निहित था।' पर फेंक दी जाये, जहां भरण-पोषण और भोजन की वस्तुओं का उत्पादन ज्यादा हद तक स्वयंस्फूर्त ढंग से होता हो और जहां का जलवायु ऐसा हो कि कपड़े पहनने और मोढ़ने की न तो भावश्यकता हो और न उनके बारे में कोई खास चिन्ता ही जरूरी हो . दूसरी दिशा में भी ज्यादती हो सकती है। जो धरती बहुत श्रम करने पर भी कुछ नहीं पैदा करती, वह भी बिना किसी श्रम के बहुत कुछ पैदा करने वाली धरती के समान ही खराब gleit & L" "An Enquiry into the Causes of the Present High Price of Provisions” (['बाय-पदार्थों के मौजूदा ऊंचे दामों के कारणों की जांच'], London, 1767, पृ० १०१) 1 नील नदी में पानी कब चढ़ेगा और कब उतरेगा, इसकी भविष्यवाणी करने की मावश्यकता से मिश्री ज्योतिष का जन्म हुमा, और उसके साथ-साथ वहां खेती के संचालकों के रूप में पुरोहितों का माधिपत्य कायम हो गया। “Le solstice est le moment de l'année où commence la crue du Nil, et celui que les Egyptiens ont da obser- ver avec le plus d'attention... C'était cette année tropique qu'il leur importait de marquer pour se diriger dans leurs opérations agricoles. Ils durent donc chercher dans le ctel un signe apparent de son retour." ["भयनान्त वह समय होता है, जब नील नदी में पानी चढ़ना शुरू होता है, और मिश्रवासी इस क्षण की सबसे अधिक ध्यानपूर्वक बाट जोहते थे . . . अपनी खेती की क्रियाओं को ठीक समय पर शुरू पौर ख़तम करने के लिए उनको इस सायन वर्ष का पंचांग बनाने की मावश्यकता पी। प्रतएव सायन वर्ष के फिर लौटने की स्पष्ट सूचना उनको प्राकाश में बोजनी पड़ी"] (Cuvier, “Discours sur les révolutions du globe", Hoefer 7 iacut, Paris, 1863, q° 989), 'हिन्दुस्तान के छोटे-छोटे , असम्बर, उत्पादक संघटनों के ऊपर राज्य की सत्ता का एक भौतिक प्राधार सिंचाई की जल-पूर्ति का नियमन था। हिन्दुस्तान के मुसलमान शासक इस बात को अपने अंग्रेज उत्तराधिकारियों की अपेक्षा ज्यादा अच्छी तरह समझते थे। इस सिलसिले में १८६६ के अकाल को याद कर लेना काफ़ी है, जिसमें बंगाल प्रेसीडेंसी के उड़ीसा डिस्ट्रिक्ट में दस लाख से ज्यादा हिन्दुओं की जान चली गयी थी।
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