निरपेक्ष : और सापेक्ष अतिरिक्त मूल्य
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. . . कष्ट उगना पड़ता है और इस काम में उनका इतना कम होता है कि विश्वास नहीं किया जा सकता । उनको यो भोजन सबसे ज्यादा प्रासानी से मिल जाता है, वे उसी को पकाकर अपने बच्चों के लिये तैयार कर देते हैं। साथ ही ये भीपत्र के तने का निचला हिस्सा, जहां तक वह भाग में भूना जा सकता है, और बलदल में उगने वाले पौधों की जड़ें उबालकर तथा भूनकर बच्चों को खाने को दे देते हैं। अधिकतर बच्चे नंगे पर और उघारे बदन घूमते है, क्योंकि यहां की वायु बड़ी शान्त-मन्न होती है। इसलिये, बच्चे के बड़े होने तक मां-बाप को उसके ऊपर कुल मिलाकर बीस विरम से ज्यादा नहीं खर्च करने पड़ते। यही वह मुख्य कारण है, जिसके फलस्वरूप मिम की भावादी इतनी ज्यादा है और इसीलिये वहां निर्माण के इतने बड़े-बड़े कार्य किये जा सकते हैं। फिर भी प्राचीन मिम के विशाल निर्माण कार्यों का मुख्य कारण उसकी बड़ी पाबादी नहीं, बल्कि यह है कि इस मावारी का एक बड़ा हिस्सा किसी भी काम में लगाये जाने के लिये प्रासानी से उपलब्ध पा। जिस तरह किसी एक मजदूर को जितना कम पावश्यक मम करना पड़ता है, वह उतना ही अधिक अतिरिक्त श्रम कर सकता है। उसी प्रकार किसी भी देश को काम करने वाली मावादी को भी जितना कम प्रावश्यक श्रम करना पड़ता है, वह उतना ही अधिक प्रतिरिक्त मम कर सकती है। जीवन-निर्वाह के पावश्यक साधनों के उत्पादन के लिये देश की पावादी के जितने ही छोटे भाग की परत होती है, उसके उतने. ही बड़े भाग को और कामों में लगाया जा सकता है। इसलिये, हम अब एक बार पूंजीवावी.उत्पादन का अस्तित्व मान लेते हैं और अगर काम के दिन की लम्बाई पहले से मालूम हो तथा अन्य सब बातें ज्यों की त्यों रहें, तो अतिरिक्त श्रम की मात्रा श्रम की भौतिक परिस्थितियों के साथ-साथ और खास तौर पर भूमि. की उबरता के साथ-सायं. घटती-बढ़ती जायेगी। लेकिन इससे यह निष्कर्ष कदापि नहीं निकलता कि सबसे प्रषिक उपजाऊ भूमि उत्पादन की पूंजीवादी प्रणाली के विकास के लिये सबसे अधिक 'उपयुक्त होती है। यह प्रणाली, तो प्रकृति पर मनुष्य के प्राषिपत्य पर प्राधारित . है। यहां प्रकृति बहुत मुक्तहस्त होती है, वहां तो वह “मनुष्य को सदा हाप पकाकर चलाती है, वैसे बच्चे को चलाया जाता है।" वहां मनुष्य को अपना विकास करने की कोई मावस्यकता ही प्रतीत नहीं होती। पूंजी की मातृभूमि उष्ण कटिबंध नहीं, वहाँ बनस्पति का बाहुल्य होता है, . iDiodorus, उप० पु०, ग्रंथ १, अध्याय ८०(पृ. १२६ ) । "इनमें से पहला तत्व (अर्थात् प्राकृतिक सम्पदा) जितना अधिक श्रेष्ठ और हितकारी होता है, वह लोगों को उतना ही अधिक लापरवाह और घमण्डी बना देता है और उनमें ज्यादती करने की प्रवृत्ति पैदा कर देता है, जब कि दूसरा तत्व सतर्कता, साहित्य, कलाभों at fifa pit of dat." ("England's Treasure by Foreign Trade. Or the Balance of our Foreign Trade is the Rute of our Treasure. Written by Thomas Mun of London, merchant, and now published for the common good by his son John Mun" ['इंगलैण्ड को विदेशी व्यापार से मिलने वाला धन, अथवा हमारे विदेशी व्यापार से होने वाला लाभ ही हमारे खजाने का मूल है। लन्दन-निवासी टोमस मुन, सौदागर, वारा लिखित और उसके पुत्र जान मुन द्वारा सब की भलाई के उद्देश्य से
- प्रकाशित'], London, 1669, पृ० १८१,..१५२१) “किसी भी काम के लिये में इससे
बड़े और किसी अभिशाप की कल्पना नहीं कर सकता कि वह भूमि के किसी ऐसे टुकड़े 37-45