पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/५७५

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भाग ५ निरपेक्ष और सापेक्ष अतिरिक्त मूल्य का उत्पादन सोलहवां अध्याय निरपेक्ष और सापेक्ष अतिरिक्त मूल्य . भम-प्रक्रिया पर हमने पहले (देखिये सातवां अध्याय ) अमूर्त ढंग से, उसके ऐतिहासिक पों से उसको अलग करके, मनुष्य और प्रकृति के बीच चलने वाली एक प्रक्रिया के रूप में विचार किया था। वहाँ, पृ० २०६ पर, हमने कहा था: "यदि हम पूरी प्रक्रिया पर उसके फल के दृष्टिकोण से विचार करें, तो यह बात स्पष्ट है कि श्रम के प्राचार और मन को विषय- बस्तु दोनों उत्पादन के साधन होते हैं और मम खुब उत्पादक मम होता है।" और उसी पृष्ठ के दूसरे कुटनोट में हमने यह पोर बोड़ा पाः "अकेले भम-प्रक्रिया के दृष्टिकोण से यह निर्धारित करना कि उत्पादक श्रम क्या होता है,-यह तरीका उत्पादन की पूंजीवादी प्रक्रिया पर प्रत्यक्ष रूप से हरगिल लागू नहीं होता।" अब हम इस विषय की प्रागे व्याख्या करते हैं। मन-प्रक्रिया यहां तक विशुद्ध रूप से व्यक्तिगत होती है, वहाँ तक वही एक मजदूर उन सारे कार्यों को करता है, जो बार को अलग-अलग हो जाते हैं। जब कोई व्यक्ति अपनी जीविका के लिये किन्हीं प्राकृतिक वस्तुओं को हस्तगत कर लेता है, तब उस पर उसका केवल अपना ही नियंत्रण रहता है, और किसी का नहीं। बाद को दूसरे लोग उसका नियंत्रण करने लगते है। एक अकेला पादमी खुद अपने मस्तिष्क के नियंत्रण में अपनी मांस-पेशियों से काम लिये बिना प्रकृति पर कोई प्रभाव नहीं गल सकता। जिस प्रकार शरीर में मस्तिष्क और हाच एक दूसरे की सेवा करते हैं, उसी प्रकार भम-प्रक्रिया में हार का मन मस्तिष्क के मन के साथ पा रहता है। बाद में उनका साथ छूट जाता है, और वे एक दूसरे के जानी दुश्मन तक हो जाते हैं। तब पैदावार प्रत्यक्ष रूप में एक व्यक्ति की पैदावार न रहकर सामाजिक पैदावार बन जाती है, जिसे एक सामूहिक मजदूर, यानी बहुत से मजदूरों का योग, सामूहिक ढंग से पैदा करता है, और इनमें से प्रत्येक मजदूर का अपने मन की विषय-वस्तु के हस्त-साधन में कम या स्थावा केवल एक भाग होता है। जैसे-जैसे मन-प्रक्रिया का सहकारी स्वल्प अधिकाधिक स्पष्ट होता जाता है, जैसे-मैले उसके एक अनिवार्य परिणाम के म में उत्पादक श्रम तवा उसके कर्ता - उत्पादक मजबूर-के विषय में हमारी अवधारणा विस्तृत होती जाती है। उत्पादक ढंग से मन करने के लिये अब यह पावश्यक नहीं रहता कि पाप पर अपने हाथ से काम करें।