पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/५६३

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५६. पूंजीवादी उत्पादन - . . बिल्कुल मनाही कर दी जाये?" "हो।" (नं० १०७-११०।) विवियन : "मान लीजिये कि १४ वर्ष से कम उम्र के बच्चों से काम लेने की मनाही करते हुए एक कानून बना दिया जाता है। तब क्या इसकी सम्भावना नहीं है कि...बच्चों के मां-बाप अपनी सन्तान के लिये किसी पौर क्षेत्र में, उदाहरण के लिये, हस्तनिर्माण में,-नौकरी तलाश करने लगेंगे?" "मैं समझता हूं कि आम तौर पर ऐसा नहीं होगा।" (नं० १७४।) किन्ने : "कुछ लड़के दरवाजों की देख- भाल करते हैं न?" "जी, हाँ।" "क्या ऐसा नहीं होता कि जब कमी दरवाजा खोला या बन्द किया जाता है, तब हर बार हवा का एक बहुत तेज मोका माता है ? " "जी हां, माम तौर पर ऐसा ही होता है।" "सुनने में तो यह बहुत मासान लगता है, पर, असल में, तो यह बहुत तकलीफ़देह चीन है न?" ". 'लड़का वहां इस तरह कैद रहता है, जैसे बेललाने की कोठरी में बन्द हो। ।" पूंजीपति विवियन : “जब कभी किसी लड़के को मोमबत्ती मिल जाती है, तब क्या बह पढ़ नहीं सकता?" "वी हां, वह पड़ सकता है, बशर्ते कि उसके पास मोमबत्तियां हों... मेरा खयाल है, यदि उसे पढ़ते हुए पाया गया, तो उसपर गंट पर पायेगी। वह खान में काम करने के लिये पाता है। उसे अपना एक फर्ष पूरा करना होता है और सबसे पहले अपने काम में ध्यान लगाना पड़ता है। नहीं, मैं समझता हूं, उसे खान में पढ़ने की इजाजत नहीं मिलेगी।" (नं० १३६, १४१, १४३, १५८, १६०१) २) शिक्षा-फेक्टरियों की तरह जानों में काम करने वाले मजदूर भी अपने बच्चों की अनिवार्य शिक्षा के लिये एक कानून बनवाना चाहते हैं। उनका कहना है कि १८६० के कानून की वह पारा बिल्कुल निरक है, जिसके अनुसार १० और १२ वर्ष के लड़कों को नौकर रखने के पहले स्कूल के प्रमाण-पत्र की पावश्यकता होती है। इस विषय में गवाहों से जो जिरह की गयी है, वह सचमुच बड़ी अजीब है। "इसकी (कानून की) मावश्यकता मालिकों या मां- बापों के खिलाफ यावा है?" "मैं समझता हूं, इसकी दोनों के खिलाफ प्रावश्यकता है।' 'क्या आप यह नहीं कह सकते कि दोनों में से किसके खिलाफ इसकी ज्यादा पावश्यकता है?" "नहीं, इस सवाल का जवाब देना मेरे लिये मुश्किल है।" (नं० ११५, ११६।) मालिकों की तरफ से इस इच्छा का कोई पाभास मिलता है कि लड़कों से इतने समय काम कराया जाये, जिससे वे स्कूल भी जा सकें?" "नहीं, इसके लिये काम के समय में कभी कोई कमी नहीं की जाती।" (नं० १३७१) मि० किन्ने: “मापके विचार में क्या कोयला-सानों के मजदूर पाम तौर पर अपनी शिक्षा में प्रगति कर लेते हैं? क्या मापको कुछ ऐसे लोगों की मिसाल मालूम है, जिन्होंने बानों में काम शुरू करने के बाद शिक्षा के मामले में बहुत प्रगति की हो? और क्या इसकी अपेक्षा यह नहीं देखा जाता कि वे उल्टे पिन पाते हैं और उन्होंने को कुछ पढ़ा-लिला होता है, वह भी भूल जाते हैं ?" "वे पाम तौर पर और खराब हो जाते हैं। उनमें सुधार नहीं होता, बल्कि पुरी मारतें मा पाती है। शराब पीना और पमा खेलना शुरू कर देते हैं और इसी तरह की पार पावतें सील जाते हैं और फिर एकदम चौपट हो जाते हैं।" (नं० २११) “पया वे इस तरह की (मजदूरों को शिक्षा देने की) कोई कोशिश रात के स्कूल तुलवाकर करते हैं? " 'कुछ इनी-गिनी कोयना-साने ही ऐसी है, वहां पर रात के स्कूल पलते हैं। शायद यहां कुछ लड़के इन स्कूलों में जाते हैं। मगर उस बात तक लड़के शारीरिक दृष्टि से इतना अधिक पक जाते हैं कि स्कूल में बैठने से कोई नाम नहीं होता।" (नं० ४५४।) पूंजीपति निष्कर्ष निकालता है: "तो इसका मतलब यह हमा कि पाप शिना के खिलाफ है ? 'हरगिज नहीं, मगर," वगैरह-वगैरह। (io ms) "मगर क्या उनके लिये (मालिकों के 11 66 . 91