५५४ पूंजीवादी उत्पादन . 118 नियंत्रण लगा दिया जाता है, तो तुरन्त ही वह अन्य बिंदुओं पर और भी जोर-शोर से इस मति की पूर्ति करने लगती है। दूसरे, पूंजीपति यह शोर मचाते है कि प्रतियोगिता की शर्ते सब के लिये बराबर होनी चाहिये, अर्थात् मम के सभी प्रकार के शोषण पर समान नियंत्रण लगाया जाना चाहिये। इस सम्बंध में दो टूटे हुए दिलों की चीख-पुकार सुनिये। बिस्टल के मैसर्स कुक्सले ने, जो कीलें, वीरें पावि तैयार करते हैं, अपने कारखाने में अपने पाप फैक्टरी-कानून के नियमों को लागू कर दिया है। "मास-पड़ोस के कारखानों में चूंकि अभी तक पुरानी अनियमित प्रणाली हो चली पाती है, इसलिये मैसर्स कुक्सले को इस कठिनाई का सामना करना पड़ता है कि उनके यहां काम करने वाले लड़कों को शाम को बजे के बाद लोग किसी और कारखाने में काम करने के लिये असला (enticed) ले जाते हैं। ऐसी स्थिति में वेस्वभावतया यह कहते है कि 'यह बड़ी बेइन्साफ़ी है और इससे हमारा बहुत नुकसान होता है, क्योंकि इससे लड़के की ताकत का एक हिस्सा खर्च हो जाता है, जब कि हमें उससे पूरा फायदा उठाने का मौका होना चाहिये (लन्दन के काग्रत के बक्स और मैले बनाने वाले) मि० सिम्पसन ने Ch. Empl. Comm. (बाल-सेवायोजन पायोग) के सदस्यों के सामने कहा था कि "मैं" (कानूनी हस्तक्षेप की मांग करते हुए) "किसी भी प्रावेदन-पत्र पर हस्ताक्षर करने को तैयार हूं... जो स्थिति इस समय है, उसके अनुसार शाम को अपना कारखाना बन्द करने के बाद मुझे रात को हमेशा यह बयाल परेशान किया करता है ("he always felt restless at night") कि कहीं दूसरे कारखानेवार ज्यादा देर तक न काम कर रहे हों और कहीं ऐसा न हो कि इस तरह वे मेरे पार छीन ले इस सवाल से ताल्लुक रखने वाली गवाहियों का सार निकालते हुए Ch. Empl. Comm. (बाल-सेवायोजन प्रायोग) ने लिखा है: "यदि बड़े मालिकों की फेक्टरियों पर कानून का नियंत्रण लागू कर दिया जाता है, मगर व्यवसाय की उसी शाला के अपेक्षाकृत छोटे कारखानों में मम के घरों पर कोई कानूनी प्रतिबंध नहीं लगाया जाता, तो यह बड़े मालिकों के साथ अन्याय होगा, और श्रम के घण्टों के सम्बंध में प्रसमान परिस्थितियों में प्रतियोगिता होने से जो अन्याय होगा, उसके अतिरिक्त बड़े-बड़े कारखानेवारों को एक यह नुकसान भी होगा कि उनके यहां काम करने के बजाय लड़के लड़कियां और स्त्रियां उन कारखानों में चले जायेंगे, जिनको कानून के नियमों से छूट मिली हुई है। इसके अलावा, छोटे कारखानों की संख्या में बड़ी तेजी से वृद्धि होने लगेगी, हालांकि लोगों के स्वस्थ्य, पाराम, शिक्षा तथा सामान्य सुधार की दृष्टि से ये कारखाने लगभग अनिवार्य रूप से सबसे कम उपयुक्त होते हैं।" जायें। . . 1“Rep. Insp. Fact., 31st October, 1865" ('फैक्टरियों के इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १८६५'), पृ. २७-३२। "Rep. of Insp. of Fact.” ('फैक्टरियों के इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट') में इसके अनेक उदाहरण मिलेंगे। I“Ch. Empl. Comm. V Rep," ('बाल-सेवायोजन प्रायोग की ५ वीं रिपोर्ट'), १. x (दस), अंक ३५। • "Ch. Empl. Comm. V Rep." ('बाल-सेवायोजन प्रायोग की ५ वीं रिपोर्ट'), पृ• IX (नौ), अंक २८॥ 'उप. पु., पृ.xxV (पच्चीस), अंक १६५-१६७। छोटे पैमाने के उद्योगों की तुलना में बड़े पैमाने के उद्योगों से जो लाभ होते है, उनके लिये देखिये “Ch. Empl. Comm. .
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