१५२ पूंजीवादी उत्पादन अब तक फ्रक्टरी-कानून फेक्टरियों, हस्तनिर्माणशालाओं प्रावि में श्रम का नियमन करने तक ही सीमित रहते हैं, तब तक केवल इतना ही समझा जाता है कि इन कानूनों के द्वारा पूंजी के शोषण करने के अधिकार में हस्तक्षेप किया जा रहा है। मगर जब तथाकषित "घरेलू भम" का भी नियमन किया जाने लगता है तब तुरन्त ही यह विचार चोर पकड़ता है कि इस तरह तो patria potestas पर- मां-बाप के अधिकारों पर-प्रत्यक्ष प्रहार किया जा पहा है। इंगलम की बयालु-हदय संसद बहुत दिनों तक यह कदम उनने में हिचकिचाती रही। परन्तु तथ्यों के प्रभाव ने उसे प्रातिर इस बात को स्वीकार करने के लिये मजबूर कर ही दिया कि माधुनिक उद्योग ने उस मार्षिक साधार को उलटकर, जिसपर परम्परागत परिवार और उस व्यवस्था के लिये उपयुक्त पारिवारिक श्रम टिके हुए थे, परम्परा से चले पाये तमाम पारिवारिक बंधनों को भी डीला कर दिया है। बच्चों के अधिकारों की घोषणा करना पावश्यक हो गया। १८६६ के Ch. Empl. Comm. (बाल-सेवायोजन पायोग) की अन्तिम रिपोर्ट में कहा गया है: "हमारे सामने जितनी गवाहियां हुई है, दुर्भाग्य से उन सभी से यह बात स्पष्ट है और इतनी अधिक स्पष्ट है कि देखकर तकलीफ होती है-कि बच्चों और बच्चियों दोनों को उनके मां-बापों से बचाने की जितनी मावश्यकता है, उतनी और किसी व्यक्ति से बचाने की नहीं।" बच्चों के मन का अनियंत्रित शोषण करने की प्रणाली माम तौर पर और तथाकषित घरेलू मम की प्रथा खास तौर पर "केवल इसीलिये कायम है कि मां-बापों को अपनी कम-उन्न और सुकुमार सन्तान पर निरंकुश और घातक अधिकार प्राप्त है और वे बिना किसी रोक-टोक के उनका दुरुपयोग करते है मां-बापों को अपने बच्चों को महब हर सप्ताह इतना पैसा कमाने वाली मशीनों में बदल देने का अनियन्त्रित अधिकार नहीं होना चाहिये इसलिये नहीं कहीं ऐसी स्थिति हो, वहां बच्चों और लड़के- ... शिक्षा की वर्तमान व्यवस्था तथा श्रम-विभाजन का अन्त करना अत्यन्त आवश्यक है, जो समाज के दो विरोधी छोरों पर प्रतिपुष्टिता और पपुष्टिता पैदा कर देते हैं। अन्य बातों के साथ-साथ बैलेस ने यह भी लिखा है : “निकम्मा पांडित्य काहिली की शिक्षा से कोई खास अच्छा नहीं होता... शारीरिक श्रम ईश्वर की बनायी हुई एक मादिम प्रथा है ... श्रम करना शरीर के स्वास्थ्य के लिये उतना ही पावश्यक है, जितना उसको जिन्दा रखने के लिये भोजन करना, क्योंकि प्रादमी पाराम से रहकर जिन तकलीफ़ों से बचने की कोशिश करता है, वे सब उसे बीमारियों की शकल में मा घेरती है जीवन के दीप में श्रम स्नेह का काम करता है पौर चिन्तन उसे प्रज्वलित करता है यदि बच्चों से केवल कोई शिशु-तुल्य, मूर्खतापूर्ण काम ही लिया जाता है" (यहां पर मानों भविष्य की माशंका से चिन्तित होकर बेजडो और उसके माधुनिक नाकालों की करतूतों के विरुख पहले ही से चेतावनी दी जा रही है ) "तो funt tend to be one I" ("Proposals for Raising a Colledge of Industry of all Useful Trades and Husbandry ['सभी उपयोगी घंधों और खेती के लिये उद्योग का एक कालिज बोलने के सम्बंध में कुछ सुझाव'], London, 1696, पृ० १२, १४, १८1) जैसा कि हम जैस बनाने और सूची पास की चुनी हुई वस्तुएं तैयार करने के धंधों में देख चुके हैं, इस प्रकार का श्रम प्रायः छोटे-छोटे कारखानों में कराया जाता है। शेफ़ील्ड, विर्मिघम मादि के धातु के धंधों में इस तरह के श्रम का मधिक विस्तार के साथ अध्ययन किया जा सकता है।
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