५४४ पूंजीवादी उत्पादन &6 . उत्पादन की पूंजीवादी प्रणाली का प्रतली स्वम इसकी अपेक्षा और किस बात से अधिक स्पष्ट हो सकता था कि सफाई रखने और मजदूरों की स्वास्थ्य-रक्षा के लिये बहुत ही मामूली से उपकरण लगवाने के लिये भी संसद द्वारा कानून बनवाकर उसके साप बस्ती करनी पड़ती है। यहां तक मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कारखानों का सम्बंध है, १८६४ के पटरीमानून में '२०० से अधिक कारखानों में सफाई और सऊदी करवा दी है। इनमें से बहुत से कारखानों में २० पर्व से सफाई नहीं हईपी और कुछ को तो कभी भी साफ नहीं किया गया पा (यह है पूंजीपति का "परिवन"I)। इन कारखानों में २७,८०० कारीगर काम करते हैं, वो अभी तक मेहनत के लम्बे दिन और प्रसर लम्बी रातें इस सड़ाव से भरे वातावरण में बितायाकरते के, जिसने इस पोको, बोपोरों की तुलना में कम हानिकारक पंचा है, बीमारियों और मौत का कारण बना रखा पार कानून से साफ हवा के इन्तजाम में बहुत सुधार हो गया है। इसके साथ-साथ कानून के इस हिस्से से यह बात भी एकवन साफ हो जाती है कि उत्तान की पूंजीवावी प्रणाली का स्वरूप ही ऐसा है कि उसमें एक विन्दु के पागे कोई विवेकसंगत सुधार नहीं किया जा सकता। यह बात बारबार कही बाकी है कि अंग्रेस गपटरों की यह सर्वसम्मत राय है कि वहां पर काम लगातार होता हो, वहां पर हर व्यक्ति के लिये कम से कम ५०० धन-फूड स्वान होना चाहिये। इन फैक्टरी-कानूनों से उनकी अनिवार्य पारामों के कारण अप्रत्यन ससे छोटे-छोटे कारखानों के पटरियों में बदल जाने की क्रिया में तेली मा माती है और इस तरह छोटे पूंजीपतियों के स्वामित्व के अधिकारों पर प्रत्यक्ष रूम में प्रहार होता है तथा बड़े पूंजीपतियों को एकाधिकार प्राप्त हो जाता है। अब यदि हर कारखाने में प्रत्येक मजदूर के लिये समुचित स्थान रखना अनिवार्य बना दिया जाये, तो एक झटके में हजारों की संख्या में छोटे मालिकों की सम्पत्ति का प्रत्यन म से अपहरण हो पायेगा! उत्पादन की पूंजीवावी प्रणाली की बड़-प्रति मम-शक्ति की स्वतंत्र परीवारी और उपभोग के द्वारा छोटी या बड़ी, हर प्रकार की पूंजी के प्रात्म-विस्तार-परही चोट होगी। चुनांचे ५०० वर्ग-फूट के स्थान के इस मक्य तक पहुंचने के पहले ही पटरी-कानूनों में गतिरोष पैदा हो जाता है। सफाई-विभाग के अफसर, पांचोगिक बांध-कमिश्नर, पटरीनस्पेक्टर, सब बारबार यही राग अलापते हैं कि ५०० वर्ग- स्वान अत्यन्तावश्यक है, और यह रोना रोते है कि पूंजी से यह स्थान पाना असम्भव है। इस प्रकार, प्रतल में यह घोषणा करते हैं कि मजदूरों में तपेविक और फेफड़े की अन्य बीमारियों का होना पूंजी के अस्तित्व की एक प्रावश्यक शर्त है।' 1 "Rep. Insp. Fact., 31st October, 1865" ("फैक्टरियों के इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, . ३१ अक्तूबर १९६५'), पृ० १२७ । 'प्रयोग करके यह पता लगाया गया है कि जब कोई मौसत किस्म का तंदरुस्त भादमीनासत तीव्रता का सांस लेता है, तो वह लगभग २५ घन-मंच हवाव कर गलता है, और एक मिनट में लगभग २० बार सांस ली जाती है। इसलिये प्रत्येक व्यक्ति २४ घण्टे में ७,२०,... धन- इंच, या ४१६ धन-फूट हवा अपने अन्दर ले जाता है। किन्तु यह बात सष्ट है कि जो हवा एक बार मनुष्य के शरीर के अन्दर चली जाती है, वह उस वक्त तक फिर सांस लेने के काम नहीं पा सकती, जब तक कि वह प्रकृति विराट कारखाने में शुर नहीं कर दी जाती। बैगॅटिन पार गुमेर के प्रयोगों के सार, स्वस्थ पादमी हर घंटा १,३०० धन-संच कार्बोनिक एसिड हवा में छोड़ता है, यानी २४ घण्टे में एक भावनी के फेफड़े पास गेस कार्बन हमा में फेंक देते है। "हर पादमी के पास कम से कम ८०० धन-फट स्वान होना चाहिये।" (Huxley, पु. १०५)
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