पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/५४०

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मशीनें और माधुनिक उद्योग ५३७ . कराया जाता है और मानव-जीवन का अनियमित उंग से अपव्यय किया जाता है, वहां यदि काम के स्वरूप के कारण काम के डंग को सुधारने में खरा सी भी कठिनाई महसूस होती है, तो उसे लोग शीघ्र ही प्रकृति को बनायी हुई एक शाश्वत बापा समाने लगते हैं। इस प्रकार की शाश्वत बापानों को फ्रक्टरी-कानून बिस निश्चित रूप से हटा देता है, उससे अधिक निश्चित रूप में कोई बहर हानिकारक कीड़ों को नहीं मारता। असम्भव बातों" के बारे में हमारे मित्र, मिट्टी के बर्तनों के कारखानों के मालिकों के समान अन्य किसी में इतना अधिक शोर नहीं मचाया था। किन्तु १८६४ में उनपर भी कानून लागू हो गया, और सोलह महीने के अन्दर ही सारी "असम्भव बातें" सम्भव हो गयीं। इस कानून के लागू होने के फलस्वरूप "वर्तनों पर रोगन बढ़ाने का मसाला (slip) तैयार करने के लिये सुखाने के बजाय रवाने बाला तरीका इस्तेमाल होने लगा, वो पहले तरीके से बेहतर है। वर्तनों को कच्ची हालत में ही सुनाने के लिये नये रंग की भट्ठियां बनायी जाने लगी ; इत्यादि इत्यादि। ऐसी प्रत्येक घटना का मिट्टी के बर्तन बनाने की कला के लिये भारी महत्व है, और यह एक ऐसी प्रगति की सूचक है, जिसका पिछली शताब्बी कतई मुकाबला नहीं कर सकती थी. इससे खुब भट्ठियों तक का तापमान कम हो गया है, जिससे धन में बहुत काकी बचत होने लगी है और वर्तन पहले से पच्छे पकते हैं। तमाम भविष्यवाणियों के बावजूद फेक्टरी-कानून लागू होने के परिणामस्वरूप बर्तनों की लागत नहीं बढ़ी, मगर पैदावार की मात्रा अवश्य बह गयी, तो भी इस हर तक कि दिसम्बर १८६५ के साथ पूरे होने वाले बारह महीनों में बो निर्यात हुमा, उसका मूल्य पिछले तीन वर्षों के प्रोसत निर्यात के मूल्य से १,३८,६२८ पौग त्यावा बैन । वियासलाइयों के हस्तनिर्माण में यह बात नितान्त पावश्यक समती जाती थी कि लड़के अपना भोवन भसकने के समय भी दियासलाइयों को गली हुई फासफरोस में बोएबोकर रखने का काम बराबर करते रहें, हालांकि इससे कासकोरत का विषैला वाम उनकी नाक और मुंह में घुसता रहता था। फैक्टरी-कानून (१८६४) ने इस उद्योग में समय की बचत को बरी बना दिया, और चुनाचे दियासलाइयां फासफरोस में बोने के लिये एक मशीन (dipping machine) का माविष्कार करना मावश्यक हो गया। इस मशीन से पो भाप उठती है, वह मजदूरों के सम्पर्क में नहीं पा सकती है।' इसी तरह लैस के हस्तनिर्माण की उन शाखामों में, जिनपर अभी फ़ैक्टरी- कानून लागू नहीं हुमा है, यह कहा जाता है कि विभिन्न प्रकार के लेसों को सुखाने के लिये चूंकि अलग-अलग समय की पावश्यकता होती है और चूंकि यह समय तीन मिनट से लेकर एक घन्टा या उससे त्याना तक कुछ भी हो सकता है, इसलिये जाने की पट्टी किसी एक निश्चित समय पर नहीं दी जा सकती। Children's Employment Commission (बाल-सेवायोजन पायोग) ने इस बलील का यह बवाब दिया है: "इस धंधे में जो परिस्थितियां पायी जाती है, में ठीक उन परिस्थितियों के अनुरूप है, जो कायम रंगने वालों के पंधे में पायी जाती है, - - 1 "Reports of Insp. of Fact., 31st Oct., 1865" ($acfcat HTET रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १८६५'), पृ० ६६ और १२७ । दियासलाई बनाने के व्यवसाय में इस मशीन के तथा अन्य मशीनों के उपयोग का यह परिणाम हुआ कि अकेले एक विभाग में २३० लड़के-लड़कियों का स्थान १४ से १७ वर्ष तक की मायु के ३२ लड़के-लड़कियों ने ले लिया। इस तरह श्रम की जो बचत हुई, उसे १८६५ में भाप की शक्ति का प्रयोग करके और भी आगे बढ़ा दिया गया।