मशीनें और माधुनिक उद्योग ... के समानान्तर चलती है। मशीन का बचन, प्राकार और विशेष बनावट कैसी है, इसके अनुसार नयी मरिन उसे या तो हाथों और पैरों दोनों से पलाती हैं और या केवल हाथों से, वे कभी बैठकर मशीन चलाती है, तो कभी बड़ी होकर, और इस तरह बहुत भारी भम-शक्ति सर्च कर गलती है। काम के लम्बे घण्टों के कारण उनका पंचा स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होता है, हालांकि अधिकतर बगहों में उनको पुरानी व्यवस्था के समान देर तक काम नहीं करना पड़ता। उन संकरी और तंग कोठरियों में, जिनमें पहले ही से बहुत ज्यादा भीड़ थी, जहां कहीं सिलाई की मशीन भी गाखिल हो जाती है, वहां स्वास्थ्य के लिये पहले से भी अधिक हानिकारक परिस्थितियां पैदा हो जाती हैं। मि. लोई ने कहा है: "नीची छत वाले उन कमरों में, जिनमें ३० से ४० तक मजबूर मशीनों पर काम करते रहते हैं, घुसना भी असहनीय होता है. वहाँ की गरमी खौफनाक होती है। कुछ हद तक वह गैस के उन चूल्हों के कारण होती है, वो इस्तरी को गरम करने के लिये इस्तेमाल किये जाते हैं. ऐसी जगहों में जब मजदूरों के काम के घण्टे सामान्य रंग के होते है, अर्थात् जब उन्हें सुबह ८ बजे से शाम के ६ बजे तक काम करना होता है, तब भी ३ या ४ व्यक्ति रोजाना नियमित रूप से बेहोश हो जाते हैं।" उत्पादन के मौवारों में क्रान्ति हो जाने के एक सासिनी मतीने के तौर पर मोचोगिक तरीकों में जो कान्ति होती है, यह नाना प्रकार के परिवर्तनकालीन रूपों के द्वारा सम्पन्न होती है।कहाँ कौनसा म सामने पाता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि सिलाई की मशीन का उद्योग की इस शाखा में या उस शाला में किस सीमा तक प्रसार हुमा है, वह कितने समय से इस्तेमाल हो रही है, उसके इस्तेमाल होने के पहले मजदूरों की क्या हालत थी, उस शाला में हस्तनिर्माण का बोर पाया बस्तकारियों का अपना घरेलू उद्योग का, और जिन कमरों में काम होता है, उनका क्या किराया है' इत्यादि इत्यादि। मिसाल के लिये, पोशाक तैयार करने की शाला में, वहां बम प्रायः पहले से ही मुख्यतया सरल सहकारिता के अनुसार संगन्ति वा, सिलाई की मशीन ने शुरू-शुरू में हस्तनिर्माण करने वाले इस उद्योग में केवल एक नवीन तत्व का काम किया था। बीगीरी, क्रमीचे बनाने और बूते बनाने प्रावि के , 'एक मिसाल देखिये । “Registrar-General" की २६ फ़रवरी १८६४ की मौतों की साप्ताहिक रिपोर्ट में भूख से होने वाली ५ मौतों का जिक्र है। इसी दिन "The Times' ने इस तरह की एक और मौत का समाचार छापा था। यानी एक सप्ताह में ६ व्यक्ति भूब के शिकार हुए!
- "Child. Empl. Comm., Second Rep., 1864" ('artearea uruter
दूसरी रिपोर्ट, १८६४'), पृ. LXVII (सड़सठ), अंक ४०६-६; पृ०१४, अंक १२४; पृ. LXXII (तिहत्तर), अंक ४१; पृ०.६८, मंक ६, पृ. ६४, अंक १२६, पृ० ७८, अंक ८५; पृ० ७६, अंक ६९; पृ. LXXII (बहत्तर), अंक ४८३ । "मालूम होता है कि पाखिर में जाकर यह बात इसी से से होती है कि इन कमरों का कितना किराया देना पड़ता है। और इसलिये छोटे-छोटे मालिकों और परिवारों को ठेके पर काम देने की पुरानी प्रणाली सबसे ज्यादा देर तक राजधानियों में कायम रहती है और वहां जल्दी से जल्दी उसकी पोर कदम लौटाया जाता है।" (उप० पु०, पृ० ८३, अंक १२३ ।) इस उद्धरण की अन्तिम बात केवल जूते बनाने के व्यवसाय पर लागू होती है। .