पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/५२९

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५२६ पूंजीवादी उत्पादन घ) माधुनिक घरेलू उद्योग अब मैं तथाकषित घरेलू उद्योग पर पाता हूं। इस क्षेत्र में पूंजी माधुनिक यांत्रिक उद्योग की पृष्ठभूमि में अपना शोषण-पक चलाती है। वहां कैसी-कैसी रोंगटे खड़े कर देने वाली बातें पायी जाती है, उनका कुछ भाभास पाने के लिये हमें कीलें बनाने के व्यवसाय की पोर मुड़ना पड़ेगा, जो इंगलैण्ड के बन्द दूर के गांवों में केन्द्रित है और जो ऊपर से देखने में एक काफी सुन्दर और मनोरम धंधा प्रतीत होता है। किन्तु यहाँ पर लैस बनाने और सूली पास की बुनी हुई ची बनाने के उद्योगों की उन शालानों से ही कुछ उदाहरण दे देना काफी होगा, जिनमें प्रभी मशीनें इस्तेमाल नहीं की जाती और जिनकी प्रभी उन शालाओं से प्रतियोगिता नहीं होती, जो फैक्टरियों अथवा हस्तनिर्माणशालामों में केलित हो गयी है। इंगलेज में कुल १,५०,००० व्यक्ति लैस के उत्पादन में लगे हुए हैं। १८६१ का फैक्टरी- कानून इनमें से लगभग १०,००० पर लागू होता है। बाकी १,४०,००० प्रायः स्त्रियां, लड़के- लड़कियां और बच्चे-बच्चियां है। परन्तु लड़कियों और बच्चियों की अपेक्षा लड़कों और बच्चों की संख्या कम है। शोषण की इस सस्ती सामग्री के स्वास्थ्य का क्या हाल था, यह नीचे बी गयी तालिका से साफ हो जायेगा। यह तालिका नौटिंघम के General Dispensary (सामान्य अस्पताल ) के चिकित्सक ग.दू मैन की तैयार की हुई है। उनके यहां ६८६ लैस बनाने वाली मजदूरिने इलाज कराने पाती थीं, जिनमें से अधिकतर की उन्न १७ और २४ वर्ष के बीच पी। इन ६८६ स्त्रियों में तपेविक की बीमारों की संख्या इस प्रकार थी: १९५२-४५ में १ १८५७-१३ में १ १८५३-२८ में १ १८५८-१५ में १ १८५४-१७ में १ १८५६- १ में १ १८५५-१८ में १ १८६०-८ में १ १८५६ -१५ में १ १८६१- ८ में तपेविक की बीमारों की संख्या ने जिस तरह प्रगति की है, उससे प्रगतिवादियों में सबसे प्रषिक पाशावादी व्यक्तियों का और जर्मनी के स्वतंत्र व्यापार के फेरीवालों में मूठ के अपेक्षाकृत बड़े सौदागरों का भी मुंह बंद हो जाना चाहिये। १८६१ का फ़ैक्टरी-कानून सचमुच लैस बनाने के श्रम का उस हद तक नियमन करता है, जिस हद तक कि यह मम मशीनों के द्वारा किया जाता है, और इंगलंच में पाम तौर वह तो इन लोगों के कारण बढ़ जाती है, पर उसके अनुपात में मौतों की संख्या नहीं बढ़ती। इन नौजवानों में से अधिकतर, असल में, देहात को लौट जाते हैं, और जब कोई गम्भीर बीमारी उन्हें प्रा धेरती है, तब तो खास तौर पर वे ऐसा ही करते हैं। ( उप . पु०।) 'मेरा मतलब यहां पर हपौड़े से पीट-पीटकर बनायी जाने वाली कीलों से है, न कि उनसे , जो मशीनों के द्वारा काटकर बनायी जाती है। देखिये "Child. Empl. Comm. Third Rep." ('बाल-सेवायोजन पायोग की तीसरी रिपोर्ट'), पृ० XI (ग्यारह), पृ. XIX (उन्नीस), अंक १२५-१३०, पृ. ५२, अंक ११, पृ० ११४, अंक ४८७; पृ. १३७, अंक ६७४ । “Ch. Empl. Comm. II. Rep." ('बाल-सेवायोजन पायोग की दूसरी रिपोर्ट'), पृ. XXII (बाईस), अंक १६६ । .